Startup Funding: कितने तरह की होती है फंडिंग, स्टार्टअप शुरू करने से पहले जान लीजिए इसके फायदे-नुकसान
आजकल भले ही फंडिंग (Startup Funding) को गलत नजरिए से देखा जाने लगा है, लेकिन यह उन लोगों के लिए किसी वरदान से कम नहीं जिनके पास आइडिया (Business Idea) तो गजब का होता है, लेकिन उसके हकीकत बनाने के लिए पैसे नहीं होते.
स्टार्टअप (Startup) ईकोसिस्टम में सबसे अहम बात है फंडिंग, जिसके बिना बहुत ही कम स्टार्टअप आगे बढ़ पाते हैं. आजकल भले ही फंडिंग (Startup Funding) को गलत नजरिए से देखा जाने लगा है, लेकिन यह उन लोगों के लिए किसी वरदान से कम नहीं जिनके पास आइडिया (Business Idea) तो गजब का होता है, लेकिन उसके हकीकत बनाने के लिए पैसे नहीं होते. जब भी बात फंडिंग की आती है तो अक्सर लोग इस बात को लेकर कनफ्यूज होते हैं कि यह लोन (Debt) होता है या कुछ और. आइए समझते हैं.
क्या होती है फंडिंग?
फंडिंग का सीधा सा मतलब है कि जब किसी स्टार्टअप को अपना बिजनेस बढ़ाने के लिए पैसे चाहिए होते हैं तो वह या तो लोन लेता है या फिर हिस्सेदारी बेचता है. इन दोनों ही तरीकों से मिले पैसे फंडिंग के तहत आते हैं. यहां तक कि ग्रांट भी एक तरह की फंडिंग ही होती है.
कितने तरह की होती है फंडिंग?
किसी भी स्टार्टअप को मिलते वाली फंडिंग 3 तरह की होती है, जिनसे वह स्टार्टअप अपनी जरूरत को पूरा करता है. आइए जानते हैं इसके बारे में.
1- इक्विटी फाइनेंसिंग/फंडिंग
किसी भी स्टार्टअप के लिए पैसे जुटाने का सबसे पहला तरीका होता है इक्विटी फाइनेंसिंग. इसके तहत स्टार्टअप अपने बिजनेस की कुछ हिस्सेदारी निवेशक को दे देता है और बदले में उससे पैसे ले लेता है. इस तरह बिजनेस में पैसे लगाने वाला निवेशक उसे मिली इक्विटी जितना कंपनी का हिस्सेदार बन जाता है. अधिकतर छोटे स्टार्टअप इक्विटी फाइनेंसिंग के जरिए ही फंडिंग उठाना पसंद करते हैं, क्योंकि ब्याज चुकाने के लिए उनके पास अतिरिक्त पैसे नहीं होते हैं.
2- डेट फाइनेंसिंग/फंडिंग
जैसा की नाम से ही समझ आ रहा है कि यह एक तरह का कर्ज है. जब कोई स्टार्टअप अपने बिजनेस की इक्विटी किसी को नहीं देना चाहता है तो वह डेट फाइनेंसिंग के जरिए फंडिंग उठाता है. जिस तरह हम एक कर्ज लेकर उसे एक तय अवधि में ब्याज समेत लौटाते हैं, वैसे ही डेट फाइनेंसिंग में भी पैसे लौटाने होते हैं.
3- ग्रांट/अवॉर्ड
ग्रांट एक तरह का पुरस्कार होता है, जो सरकार या फिर किसी बड़ी संस्था के जरिए स्टार्टअप के अच्छे काम के लिए उसे दिया जाता है. यह पैसा स्टार्टअप को इसलिए मुहैया कराया जाता है, ताकि वह अपने बिजनेस को और बेहतर बनाने के लिए रिसर्च कर सके, प्रोडक्ट या प्रोटोटाइप बना सके या दूसरे काम कर सके. इसके तहत मिला हुआ पैसा स्टार्टअप को वापस चुकाने की जरूरत नहीं होती है.
फंडिंग के क्या हैं फायदे-नुकसान?
अगर बात करें इक्विटी फाइनेंसिंग तो इसमें स्टार्टअप फाउंडर को यह फायदा होता है कि अपने बिजनेस का एक छोटा सा हिस्सा देकर वह बड़ी फंडिंग हासिल कर सकता है, जिसे वापस भी चुकाना नहीं होता. साथ ही एक फायदा यह भी होता है कि ज्यादातर मामलों में निवेशक अपने नेटवर्क का इस्तेमाल करते हुए स्टार्टअप का बिजनेस बढ़ाने में मदद करता है. अगर नुकसान देखें तो इसके तहत स्टार्टअप फाउंडर को अपने बिजनेस की कुछ हिस्सेदारी दूसरे को देनी पड़ती है.
इक्विटी फाइनेंसिंग का जो नुकसान है, वहीं डेट फाइनेंसिंग का सबसे बड़ा फायदा है. डेट फाइनेंसिंग में आपको अपने बिजनेस की हिस्सेदारी किसी को देनी नहीं होती है, बल्कि आप खुद ही पूरी हिस्सेदारी के मालिक होते हैं. डेट फाइनेंसिंग सिर्फ उन्हीं बिजनेस के लिए अच्छी होती है, जो मुनाफे में होते हैं. ऐसा नहीं होगा तो स्टार्टअप कर्ज के जाल में फंस सकते हैं. तो अगर आपका बिजनेस पहले से ही घाटा झेल रहा है, तो डेट फाइनेंसिंग आपके लिए नुकसान का सौदा बन जाएगा. अगर डेट फाइनेंसिंग किसी बैंक या एनबीएफसी से लेते हैं तो उसमें आपको निवेशकों के नेटवर्क का फायदा नहीं मिलेगा, जबकि किसी एंजेल निवेशक या वीसी से डेट फाइनेंसिंग लेने पर आपको फायदा होगा.
इसके अलावा अगर बात ग्रांट की करें तो इसके तो सिर्फ फायदे ही हैं, क्योंकि यह आपको एक पुरस्कार की तरह मिलती है. हालांकि, इसे पाने के लिए आपको कई सारे कॉम्पटीशन लड़ने पड़ सकते हैं या दूसरे स्टार्टअप्स से मुकाबला झेलना पड़ सकता है, उसके बाद आपको ग्रांट मिलता है.