जरा सोच कर देखिए एक पूरा दिन अगर आपको एक कुर्सी पर बैठे रहने को कहा जाए तो आपको कैसा महसूस होगा. यकीनन आप बैठे-बैठे परेशान हो जाएंगे. वहीं अगर आपको महीनों या सालों तक इसी तरह बैठे रहना हो तब तो आपको जिंदगी ही बोझ लगने लगेगी. कुछ ऐसा ही महसूस होता है उन लोगों को, जिनके पैर नहीं होते या जिनके पैर काम नहीं करते. इसी समस्या को समझा एक स्टार्टअप नियो मोशन ने और उनके लिए एक ऐसी व्हीलचेयर बनाई है, जो ना सिर्फ उनकी जिंदगी को आसान बना रहा है, बल्कि उन्हें कमाने के मौके भी दे रहा है. देखा जाए तो अब दिव्यांग अपने परिवार को पाल पा रहे हैं यानी अपने पैरों पर खड़े होने काबिल हो गए हैं.

COMMERCIAL BREAK
SCROLL TO CONTINUE READING

नियो मोशन की शुरुआत 2016 में चेन्नई में सिद्धार्थ डागा, सुजाता श्रीनिवासन, स्वास्तिक सौरभ दास और आशीष मोहन शर्मा ने की थी. सिद्धार्थ, स्वास्तिक और आशीष ने आईआईटी मद्रास से मैकेनिकल इंजीनियरिंग की है और सुजाता इन लोगों की मेंटॉर हैं. नियो मोशन असल में को-फाउंडर्स का कॉलेज प्रोजेक्ट था, जिसने बाद में एक स्टार्टअप की शक्ल ले ली. मौजूदा वक्त में यह कंपनी पूरे देश में प्रोडक्ट डिलीवर करती है. अभी तक कंपनी के करीब 5500 यूजर है. इसके प्रोडक्ट नेपाल और बांग्लादेश में भी डिलीवर हुए हैं.

2 साल की नौकरी, फिर छोड़कर शुरू किया बिजनेस

आईआईटी मद्रास की लैब को टीटीके ग्रुप से फंडिंग मिली थी. इसके तहत टीटीके सेंटर फॉर रीहैबिलिटेशन रिसर्च एंड डिवाइस डेवलपमेंट कार्यक्रम चलाया गया था. आईआईटी मद्रास की लैब को सुजाता श्रीनिवासन हेड करती हैं. वहां पर सिद्धार्थ व्हीलचेयर और प्रोस्थैटिक बनाते थे. जब कॉलेज पूरा हो गया तो 2013 में ग्रेजुएट होकर वह नौकरी करने लगे. 2 साल नौकरी के बाद सुजाता श्रीनिवासन ने सिद्धार्थ को फोन किया और बताया कि टीटीके ग्रुप रिसर्च के लिए फिर से फंडिंग दे रहा है तो आप अपने प्रोजेक्ट को आगे बढ़ा सकते हो. बता दें कि नौकरी छोड़ने के बाद सिद्धार्थ ने SBI Youth for India में फेलोशिप भी की थी, जिससे उन्हें अपने करियर में आगे बढ़ने में काफी मदद मिली.

सिद्धार्थ के लिए यह एक बड़ा मौका था और वह रिसर्च के लिए वापस चले गए. वहां पर वह रिसर्च ऑफिसर की तरह काम करने लगे और रिसर्च के दौरान मिलने वाले स्टाइपेंड से रोजमर्रा के खर्चे चलाते रहे. अपने प्रोजेक्ट के लिए वह देश भर के करीब 300 व्हीलचेयर यूजर्स से मिले और समझा कि उनकी चुनौतियां क्या हैं. उन्हें पता चला कि लोगों को हर काम के लिए किसी ना किसी के सपोर्ट की जरूरत पड़ रही है. यह भी पता चला कि करीब 95 फीसदी व्हीलचेयर तो वैसी हैं, जो अस्पतालों में होती हैं. यानी लोगों के हिसाब से अलग-अलग साइज की व्हीलचेयर नहीं हैं.

कस्टमाइज व्हीलचेयर का आइडिया

इसके बाद सिद्धार्थ ने दोस्तों के साथ मिलकर व्हीलचेयर को कस्टमाइज करने का फैसला किया और उसे बेहतर बनाया. कस्टमाइज व्हीलचेयर की वजह से लोगों को अधिक घंटों तक व्हीलचेयर में बैठने में परेशानी नहीं होती है. वहीं अगर कहीं बाहर जाना हो तो या तो ऐसे लोगों को किसी ना किसी की मदद की जरूरत होती है या फिर स्कूटर में दो पहिए लगाकर लोग उसका इस्तेमाल करते हैं. हालांकि, स्कूटर पर बैठाने और उससे नीचे उतारने में भी किसी ना किसी की मदद चाहिए होती है. ऐसे में नियो मोशन के तहत एक ऐसा अटैचमेंट भी बनाया गया, जिसे व्हीलचेयर में लगाकर उसे चलता-फिरता स्कूटर बनाया जा सकता है. अभी कंपनी के दो प्रोडक्ट हैं.

1- नियो फ्लाई

यह कस्टम मेड व्हील चेयर है, जिसे अलग-अलग लोगों के शरीर के हिसाब से डिजाइन किया जाता है. ये बनाने के लिए ग्राहक के 8 मेजरमेंट लेकर  व्हीलचेयर की सेटिंग डिजाइन की जाती है और फिर असेंबल कर के डिलीवर कर दिया जाता है. यह व्हीलचेयर पारंपरिक व्हीलचेयर की तुलना में छोटी और कंफर्टेबल होती है. इसकी कीमत 45 हजार रुपये से शुरू होती है.

2- नियो बोल्ट

यह एक तरह का स्कूटर अटैचमेंट है. जिसे कोई भी शख्स बिना किसी की मदद के ही अपनी व्हीलचेयर में फिट कर सकता है. यह एक ईवी है, जिसमें लीथियम आयन बैटरी होती है. व्हीलचेयर से अटैच करने से बाद आप इसे एक बाइक की तरह कहीं भी ले जा सकते हैं. वहीं इसे बड़ी आसानी से डिटैच भी किया जा सकता है, जिसमें किसी की मदद की जरूरत नहीं होती है. यह अटैचमेंट 3 घंटे में पूरा चार्ज हो जाता है और 25 किलोमीटर तक की रेंज देता है. एक अच्छी बात ये भी है कि इसे नॉर्मल प्वाइंट में चार्ज किया जा सकता है. इसकी बैटरी निकाल कर अलग से भी चार्ज कर सकते हैं, दो बैटरी भी रख सकते हैं. यह बैटरी 15 हजार किलोमीटर तक चल सकती है. इसकी कीमत करीब 1.05 लाख रुपये से शुरू होती है.

पीएम मोदी भी कर चुके हैं तारीफ

कंपनी कुछ और प्रोडक्ट लॉन्च कर रही है. इनमें से एक पैरा एथलीट के लिए बनाई जा रही हल्की व्हीलचेयर हैं, वहीं दूसरी एक ऐसी व्हील चेयर है, जिससे इंसान 80 डिग्री के एंगल तक खड़ा हो सकता है. पीएम मोदी जब आईआईटी मद्रास गए थे, तो वहां पर उन्होंने भी यह व्हीलचेयर देखी थी. उन्होंने कहा था यह एक ऐसी चीज है जो भारत को दूसरे देशों के लिए तोहफा होना चाहिए. सिद्धार्थ कहते हैं कि अभी सर्टिफिकेशन पर काम चल रहा है, जिसके बाद दूसरे देशों तक इसे लेकर जाएंगे और ग्लोबल रीच हासिल करेंगे.

यूं लोगों की जिंदगी बदल रहा ये स्टार्टअप

  • कुछ वक्त पहले चेन्नई में मद्रास डे के मौके पर एक बाइकिंग इवेंट हुआ था, जिसमें 100 लोग बाइक चला रहे थे. उसमें 12 व्हील चेयर यूजर्स ने भी हिस्सा लिया, जो उनके लिए एक अलग ही अनुभव था.
  • पैरा एथलीट गेम्स में काफी यूजर हैं, जो इसे इस्तेमाल करते हैं.
  • महाराष्ट्र के शख्स हैं, जिन्होंने कारगिल का युद्ध लड़ा था. वह इसी व्हील चेयर से खेत जाते हैं, खेत देखते हैं और लंच के लिए घर भी आते हैं, जिससे उन्हें फायदा होता है.
  • यह व्हील चेयर मैट्रो में भी ले जाई जा सकती है और कई जगह मेट्रो में इसे ले जाने की इजाजत भी मिल गई है. मुंबई में निरंजन नाम के एक शख्स मेट्रो से ऑफिस जानते हैं.
  • नागपुर में हर्षा नाम की एक लड़की इसी व्हीलचेयर से कॉलेज जाती है. कई सारे स्टूडेंट इससे अब स्कूल-कॉलेज जा पा रहे हैं.
  • तेलंगाना में एक यूजर हैं, जो इसकी मदद से पोस्टमैन की तरह काम करते हैं. वह 5-6 गांव के लेटर डिलीवर करते हैं.
  • चेन्नई में एक शख्स हैं, जो दूध के पैकेट डिलीवर करते हैं और अपनी रोजमर्रा की कमाई करते हैं.

जोमैटो के साथ किया कोलैब, 300 लोगों की बदली जिंदगी

नियो मोशन ने 2 साल पहले जोमैटे से कोलैब किया था, जिसके तहत बहुत से लोग अब जोमैटो डिलीवरी का काम कर रहे हैं. यह उनकी इनकम का सोर्स भी बन गया है. व्हीलचेयर यूजर्स को पास के ऑर्डर मिलते हैं और कस्टमर को मैसेज जाता है कि डिलीवरी पार्टनर व्हीलचेयर पर है. ऐसे में लोग भी आगे बढ़कर मदद करते हैं. इसके लिए सिद्धार्थ ने पहले खुद को जोमैटो में रजिस्टर किया, व्हीलचेयर पर डिलीवरी की, लोगों का भरोसा जीता और 11 डिलीवरी भी की. सिद्धार्थ ने बनाया कि अभी 300 से भी ज्यादा लोग  व्हीलचयेर पर जोमैटो की डिलीवरी कर रहे हैं और पैसे कमा रहे हैं. अब तक नियो मोशन के व्हीलचेयर की मदद से दिव्यांग लोग करीब 3 लाख ऑर्डर डिलीवर कर चुके हैं और करीब 1.5 करोड़ रुपये कमा चुके हैं. 

बूटस्ट्रैप्ड है कंपनी, मिला ₹3 करोड़ का ग्रांट

अब तक कंपनी करीब 3 करोड़ रुपये का ग्रांट हासिल कर चुकी है. कंपनी को SBI YFI Sahyog- The Pitch fest की तरफ से 6 लाख रुपये की सीड फंडिंग मिल चुकी है. यह कंपनी अभी तक पूरी तरह से बूटस्ट्रैप्ड है यानी किसी को भी हिस्सेदारी नहीं बेची है और पूरी हिस्सेदारी को-फाउंडर्स के ही पास है. शार्क टैंक इंडिया में भी यह कंपनी जा चुकी है, लेकिन वहां भी निवेश का अच्छा ऑफर नहीं मिलने के चलते कोई डील नहीं हो सकी. कंपनी अब अमेजन के साथ ही डिलीवरी के ट्रायल कर रही है.