मुंबई के फूड डिलीवरी स्टार्टअप Thrive ने अपने कंज्यूमर ऐप को चार साल बाद बंद करने का फैसला किया है. कंपनी ने यह कदम फूड टेक क्षेत्र में तेजी से बढ़ते कॉम्पटीशन के बीच उठाया है, जहां जोमैटो (Zomato) और स्विग्गी (Swiggy) जैसे मजबूत और फंडेड स्टार्टअप्स (Startup) का दबदबा है. बता दें कि इस स्टार्टअप में डोमिनोज की पैरेंट कंपनी जुबिलेंट फूड्स और कोका-कोला ने भी पैसे लगाए हुए हैं.

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Thrive के को-फाउंडर कृषि फगवानी ने लिंक्डइन पर एक पोस्ट में बताया कि कंपनी ने अपने कंज्यूमर ऐप को बंद करने का "कठिन फैसला" किया है. उन्होंने यह भी कहा कि Thrive ONDC, Thrive Direct और Thrive Marketing Suite जैसे अन्य सेक्टर्स को "सही इंडस्ट्री पार्टनर्स" के पास ट्रांजिशन किया जाएगा. फगवानी ने यह भी साफ किया कि भुगतान, टैक्स कम्प्लायंस, रिपोर्टिंग और इनवॉइसिंग में कोई दिक्कत नहीं होगी.

उन्होंने अपनी पोस्ट में यह भी लिखा- 'हमारे रेस्टोरेंट पार्टनर्स, कस्टमर्स, निवेशकों और टीम को धन्यवाद, जिन्होंने हम पर विश्वास जताया. यह हमारे लिए गर्व की बात रही कि हम इस मिशन को साथ मिलकर आगे बढ़ा पाए और हम जो कुछ भी बना पाए हैं, उस पर हमें बहुत गर्व है.'

दिग्गज कंपनियों ने लगाए हैं पैसे

बता दें कि इस स्टार्टअप में कई दिग्गज कंपनियों ने पैसे लगाए हुए हैं. 2021 में डोमिनोज़ और पॉपायेस जैसे ब्रांड्स की पैरेंट कंपनी ज्यूबिलेंट फूडवर्क्स ने Thrive में 35% हिस्सेदारी खरीदी थी. इसके बाद, 2023 में, कोका कोला ने Thrive में 15% हिस्सेदारी ली थी.

कंपनी की पोस्ट से यह भी साफ होता है कि Thrive को फूड टेक स्पेस में बढ़ते कॉम्पटीशन का सामना करना पड़ा. जोमैटो और स्विग्गी जैसी कंपनियां महामारी के दौरान रणनीतिक अधिग्रहण और अपने व्यापार मॉडल में बदलाव करके उबर पाई हैं. इसके अलावा, दोनों कंपनियों ने क्विक कॉमर्स सेक्टर में भी कदम रख दिया है. फगवानी ने अपनी पोस्ट में लिखा, "मौजूदा वक्त में बाजार पर कुछ बड़े और फंडेड दिग्गजों का दबदबा है, जिससे छोटे और मिशन-ड्रिवन प्लेटफार्म्स के लिए अपने आकार में बढ़ना और रेस्टोरेंट्स की जरूरतों को पूरा करना बहुत ही चुनौतीपूर्ण हो गया है."

अब तक उठाई कितनी फंडिंग

डेटा वेबसाइट Tracxn के अनुसार Thrive ने अब तक तीन राउंड्स में कुल $2.5 मिलियन की इक्विटी फंडिंग जुटाई थी. कंपनी ने FY23 में अपने रेवेन्यू में मामूली बढ़ोतरी दर्ज की, जो 2.5 करोड़ रुपये थी, जबकि उससे पिछले साल यह 2.3 करोड़ रुपये थी. हालांकि, स्टार्टअप का शुद्ध घाटा बढ़कर 7.4 करोड़ रुपये हो गया, जो पहले 2.8 करोड़ रुपये था.