आपने शुतुरमुर्ग तो जरूर देखा होगा. काफी हद तक उससे मिलता-जुलता एक पक्षी होता है, जिसका नाम है एमू (EMU). यह शुतुरमुर्ग के बाद दूसरा सबसे बड़ा पक्षी होता है. यह ऑस्ट्रेलिया का राष्ट्रीय पक्षी भी है, जो इंसान जितना बड़ा हो सकता है और उसका वजन 30-35 किलो तक हो सकता है. इसकी रफ्तार 50 किलोमीटर प्रति घंटा तक होती है. अब आप सोच रहे होंगे कि आखिर आज इस पक्षी का बात क्यों की जा रही है तो आज हम आपको Startup Scam सीरीज के तहत जिस स्कैम की कहानी बताने जा रहे हैं, उसका मुख्य किरदार है एमू पक्षी.

2005-2015 के बीच हुए ये स्कैम

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ये स्कैम साल 2005 से 2015 के बीच में हुआ था. इसे करने वाला भी कोई एक नहीं, बल्कि कई लोग थे. किसी ने छोटे लेवल पर स्कैम किया, तो किसी ने बड़े लेवल पर स्कैम किया. यह स्कैम कितना बड़ा था, इसका अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि आज तक इस स्कैम की जांच चल ही रही है और हर कुछ महीने बाद एक नया आंकड़ा सामने आता है. साल 2011 में पीटीआई की एक रिपोर्ट आई थी, जिसके अनुसार महाराष्ट्र सरकार ने नासिक जिले में हुए करीब 200 करोड़ रुपये के एमू फार्मिंग स्कैम की सीआईडी जांच के आदेश दिए थे. इसमें Anubhav group का नाम सामने आया था. यह स्कैम सिर्फ महाराष्ट्र तक सीमित नहीं था, बल्कि कोलकाता और तमिलनाडु समेत देश के कई हिस्सों में अलग-अलग लेवल पर किया जा रहा था.

पिछले ही साल फरवरी के महीने में कोयम्बटूर की एक स्पेशल टीएनपीआईडी कोर्ट ने एमू स्कैम के कुछ दोषियों को सजा सुनाई थी. खबरों के मुताबिक Queen Emu Farms (P) Ltd के खिलाफ केस में दोषी P. Mayilsamy और Sakthivel को 10 साल की जेल की सजा सुनाई गई थी. यह सजा दो अलग-अलग मामलों में सुनाई गई थी. इस मामले में कोर्ट ने करीब 34.38 करोड़ रुपये का जुर्माना भी लगाया था.  

कैसे हुआ ये स्कैम?

भारत में एमू पक्षी की फार्मिंग की शुरुआत साल 1990 के बाद हुई, जब ऑस्ट्रेलिया में इसे काटने पर प्रतिबंध लग गया. भारत में इसकी फार्मिंग को लेकर अलग-अलग जगह पर अलग-अलग रणनीति अपनाई गई. अगर बात करें Queen Emu Farms की उसने दो स्कीमें चलाईं. पहली स्कीम के तहत कंपनी लोगों को 6-20 तक एमू के चूजे देती थी. साथ ही उनका खाना उनके लिए शेड की व्यवस्था करती थी. इसमें 1-5 लाख रुपये तक का निवेश होता था. कंपनियां दावा करती थीं कि इन पक्षियों का मांस, चमड़ा, अंडा और इनसे निकला तेल तक काफी महंगा बिकता है.

पैसे लगाने वालों को वादा किया जाता था कि उन्हें हर महीने 6-10 हजार रुपये मंथली मेंटेनेंस और 20-30 हजार रुपये तक का सालाना बोनस दिया जाएगा. यह सब दो-तीन साल तक जारी रहने का वादा किया गया. दूसरी स्कीम में लोगों को सिर्फ पैसे लगाने थे, जबकि बाकी सारा काम कंपनी खुद करती और लोगों को उनके पैसों पर रिटर्न देती. इसमें बहुत सारे लोगों ने पैसे लगाए, लेकिन कंपनी अपना वादा पूरा करने में नाकामयाब रही. इसी के बाद उनकी शिकायत हुई, जांच हुई और मामला कोर्ट तक जा पहुंचा. इस स्कैम का स्केल करीब 150 करोड़ रुपये का बताया जाता है.

करोड़ों रुपयों का था ये स्कैम

साल 2018 में एक मीडिया रिपोर्ट से पता चला था कि देश के अलग-अलग हिस्सों में हुए एमू स्कैम का स्केल करीब 250 करोड़ रुपये का था. इसमें 40 से भी ज्यादा कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग फर्मों के शामिल होने की बात सामने आई थी. एक सरकारी अधिकारी ने बताया था कि सिर्फ तमिलनाडु के इरोड जिले में ही तगड़े रिटर्न का लालच देकर करीब 42 एमू फर्म ने 224.43 करोड़ रुपये जनता से जुटाए हैं. पूरे तमिलनाडु से करीब 9500 लोगों ने शिकायत दर्ज की थी. पुलिस ने तमाम शिकायतों के आधार पर उस वक्त करीब 150 लोगों को गिरफ्तार किया था. Susi Emu Firm ने ही करीब 2590 लोगों से 74.62 करोड़ रुपये ठगे थे. जांच के बाद फर्म की करीब 28 करोड़ रुपये की प्रॉपर्टी सीज की गई थी. Rabis Emu Farms, Suriya Emu Farms, Suvi Emu Farms, TVS Emu Farms और Nidhi Emu Farms जैसे फार्म्स पर भी आरोप लगे, जो देखते ही देखते गायब हो गए.

रिजर्व बैंक ने भी जताई थी चिंता

भारतीय रिजर्व बैंक के उस वक्त के प्रमुख जनरल मैनेजर वी वसंतन ने कहा था कि एमू फार्म्स की तरफ से इतनी आकर्षक स्कीमें दी गईं कि लोग उसमें फंस गए. अगस्त 2013 में आए आरबीआई के सर्वे के अनुसार इस स्कैम में फंसने वाले अधिकतर लोग पढ़े-लिखे थे, जो लालच में आकर फंस गए. वह सर्वे तमिलनाडु के इरोड जिले के करीब 22 गांवों में हुआ था, जिसमें 800 से भी अधिक लोगों से बात की गई थी. उसमें बताया गया कि हजारों लोगों ने एमू कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग में अपने हाथ जलाए और करोड़ों का नुकसान उठाया. बता दें कि इरोड जिले को एमू फॉर्मिग स्कैम का गढ़ माना जाता है, जहां पर यह स्कैम सबसे ज्यादा बड़े लेवल पर हुआ.

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