भारत के सूक्ष्म, लघु और मझोले उद्यमों (MSME) को “व्यापक विनियमन’ और अनुपालन आवश्यकताओं का सामना करना पड़ रहा है. इसके अलावा सस्ते और समय पर वित्तपोषण तक पहुंच में बड़ी बाधाएं ‘मुख्य चिंताओं’ में से एक हैं. संसद में सोमवार को पेश आर्थिक समीक्षा (Economic Survey) 2023-24 में कहा गया है कि एमएसएमई के लिए अनुपालन बोझ में और कमी किए जाने से उनकी वृद्धि संभावनाओं में काफी सुधार आएगा. 

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समीक्षा में ‘मंजूरी के लिए एकल खिड़की तंत्र के साथ अनुपालन आवश्यकताओं को उत्तरोत्तर आसान बनाने, प्रक्रियाओं के डिजिटलीकरण और एमएसएमई को इन प्रक्रियाओं को सुगमता से संभालने के लिए तैयार करने’ का सुझाव दिया गया है. समीक्षा में एमएसएमई उत्पादों तक बाजार पहुंच सुनिश्चित करने के लिए जमीनी स्तर पर सुविधाएं प्रदान करने का भी आह्वान किया गया है. 

समीक्षा में इस बात पर प्रकाश डाला गया है कि एमएसएमई में कारोबार बढ़ाने, नए बाजार तलाशने, वित्तपोषण प्राप्त करने और श्रमिकों को नियुक्त करने के लिए प्रबंधन क्षमता सीमित है, जिसे अनुपालन पर असंगत रूप से खर्च किया जाता है. समीक्षा में कहा गया है कि इसके अलावा, कई एमएसएमई को विभिन्न कारणों से अपना कारोबार शुरू करने, संचालित करने या विस्तार करने के लिए आवश्यक धनराशि जुटाने में संघर्ष करना पड़ता है. इनमें ‘क्रेडिट प्रोफाइल’ की कमी, उच्च ब्याज दरें, जटिल दस्तावेजीकरण जरूरतें और प्रक्रियाओं में लगने वाला लंबा समय शामिल हैं. 

भारत के एमएसएमई क्षेत्र को मजबूत करना आने वाले साल में देश की वृद्धि के लिए महत्वपूर्ण है. एमएसएमई भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ़ हैं, जो देश के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में लगभग 30 प्रतिशत, विनिर्माण उत्पादन में 45 प्रतिशत का योगदान करते हैं और 11 करोड़ लोगों को रोजगार प्रदान करते हैं. 

एमएसएमई क्षेत्र की वृद्धि को बढ़ावा देने के लिए सरकार ने एमएसएमई सहित विभिन्न कारोबार क्षेत्रों के लिए पांच लाख करोड़ रुपये की आपातकालीन ऋण सुविधा गारंटी योजना (ईसीएलजीएस) का आवंटन, एमएसएमई आत्मनिर्भर भारत कोष के माध्यम से 50,000 करोड़ रुपये की इक्विटी डालना, एमएसएमई के वर्गीकरण के लिए नए संशोधित मानदंड आदि पहल की हैं. ये पहल इस क्षेत्र के समक्ष आने वाली प्रमुख चुनौतियों, मुख्य रूप से समय पर और किफायती ऋण तक पहुंच को ध्यान में रखते हुए तैयार की गई हैं.