DPIIT Recognition मिलने से Startups को होते हैं ये 7 फायदे, Income Tax में भी मिलती है भारी छूट
जो स्टार्टअप इस DPIIT के तहत रजिस्टर्ड होते हैं, उन्हें केंद्र सरकार की तरफ से बहुत सारे फायदे मिलते हैं. यही वजह है कि हर स्टार्टअप चाहता है कि उसे DPIIT Recognition मिल जाए.
हर स्टार्टअप (Startup) चाहता है कि वह DPIIT Recognition हासिल करे. हालांकि, हर किसी को यह हासिल नहीं होता, क्योंकि इसके लिए आपको कुछ शर्तें पूरी करनी होती हैं. जो स्टार्टअप इस DPIIT के तहत रजिस्टर्ड होते हैं, उन्हें केंद्र सरकार की तरफ से बहुत सारे फायदे मिलते हैं. यही वजह है कि हर स्टार्टअप चाहता है कि उसे DPIIT Recognition मिल जाए. अब सवाल ये उठता है कि आखिर इससे क्या-क्या फायदे होते हैं स्टार्टअप को? आपको बता दें कि ऐसे स्टार्टअप्स को टैक्स में छूट से लेकर बिजनेस करने में आसानी जैसे फायदे होते हैं. आइए जानते हैं ऐसे ही 7 फायदों के बारे में.
1- Angel Tax में छूट
हाल ही में CBDT ने टैक्स अधिकारियों के लिए एंजेल टैक्स से जुड़े कुछ अहम दिशा-निर्देश जारी किए हैं. इसके बाद ब टैक्स (Tax) अधिकारी नए एंजल टैक्स नियमों के तहत उन स्टार्टअप की तरफ से जुटाए फंड की स्क्रूटनी नहीं कर सकेंगे, जो DPIIT रिकॉग्नाइज्ड हैं. यानी पहला फायदा तो यही है कि DPIIT Recognition वाले स्टार्टअप की फंडिंग की स्क्रूटनी नहीं होगी. इस तरह एंजेल टैक्स में छूट मिलना पहला फायदा है. बता दें कि स्टार्टअप इंडिया की वेबसाइट के मुताबिक 99,380 स्टार्टऐप ऐसे हैं, जो DPIIT रिकॉग्नाइज्ड हैं.
2- 80-IAC के तहत 3 साल तक टैक्स से छूट
जो भी स्टार्टअप DPIIT रिकॉग्नाइज्ड होंगे, उन्हें स्टार्टअप शुरू होने के 10 साल के अंदर लगातार किसी 3 साल तक इनकम टैक्स से छूट मिलती है. यानी ये कहना गलत नहीं होगा कि ऐसे स्टार्टअप को 3 सालों तक टैक्स से छूट मिलती है.
3- सेक्शन 56 के तहत छूट
इनकम टैक्स एक्ट के सेक्शन 56(2)(VIIB) के तहत भी ऐसे स्टार्टअप्स को छूट मिलती है. 100 करोड़ रुपये से अधिक की नेटवर्थ वाली सूचीबद्ध कंपनियों या 250 करोड़ रुपये से अधिक के टर्नओवर वाली कंपनियों के द्वारा योग्य स्टार्टअप्स में निवेश करने पर इनकम टैक्स एक्ट के सेक्शन 56 (2) VIIB के तहत छूट दी जाती है.
4- आसान होगा श्रम और पर्यावरण कानून के लिए सर्टिफिकेशन
स्टार्टअप्स को आसान ऑनलाइन प्रक्रिया के जरिए 6 श्रम कानून और 3 पर्यावरणीय कानूनों के लिए सेल्फ सर्टिफिकेशन की अनुमति होगी. यानी काम आसानी से होगा, जिससे स्टार्टअप को अपने बिजनेस पर फोकस करने में मदद मिलेगी. श्रम कानूनों के मामले में 5 साल तक कोई निरीक्षण नहीं किया जाएगा. स्टार्टअप्स का निरीक्षण केवल तभी किया जा सकता है, जब उल्लंघन की कोई शिकायत लिखित रूप में की जाएगी. हालांकि, यह शिकायत निरीक्षण अधिकारी से कम से कम एक स्तर ऊपर के अधिकारी द्वारा स्वीकार की गई होनी चाहिए. वहीं पर्यावरण कानून के मामले में जो स्टार्टअप ‘वाइट केटेगरी’ (जैसा कि केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण समिति (सीपीसीबी) की तरफ से परिभाषित किया गया है) में आते हैं, वह स्व-प्रमाणित अनुपालन के लिए समर्थ होंगे और ऐसे मामलों में केवल कभी-कभी जांच की जाएगी.
5- स्टार्टअप पेटेंट एप्लिकेशन में फायदा
स्टार्टअप की तरफ से फाइल किए गए पेटेंट एप्लीकेशन को एग्जामिनेशन के लिए फास्ट-ट्रैक किया जाएगा, ताकि उनकी वैल्यू जल्द से प्राप्त की जा सके. केंद्र सरकार किसी स्टार्टअप की तरफ से फाइल किए जाने वाले किसी भी पेटेंट, ट्रेडमार्क या डिजाइन के लिए सुविधा प्रदाताओं की पूरी फीस देगी. वहीं स्टार्टअप को सिर्फ वैधानिक शुल्क (Statutory Fees) देना होगा. अन्य कंपनियों की तुलना में पेटेंट फाइल करने में स्टार्टअप को 80% छूट दी जाएगी.
6- सरकारी ई-मार्केटप्लेस पर प्रोडक्ट लिस्ट करने का मौका
सरकारी ई-मार्केटप्लेस (GeM) एक ऑनलाइन खरीद प्लेटफॉर्म है, जो प्रोडक्ट और सर्विस पाने के लिए सरकारी विभागों के लिए सबसे बड़ा मार्केटप्लेस है. डीपीआईआईटी मान्यता प्राप्त स्टार्टअप विक्रेताओं के रूप में जीईएम पर रजिस्टर हो सकते हैं और अपने उत्पादों और सेवाओं को सीधे सरकारी संस्थाओं को बेच सकते हैं. यह स्टार्टअप के लिए सरकार के साथ ट्रायल ऑर्डर पर काम करने का एक बेहतरीन अवसर है.
7-बिजनेस बंद करने में आसानी
इनसोल्वेंसी और बैंकरप्टसी कोड 2016 के अनुसार, जिन स्टार्टअप का डेट स्ट्रक्चर साधारण होता है या जो आय के कुछ नियमों को पूरा करने वाले स्टार्टअप्स इनसॉल्वेंसी की एप्लीकेशन फाइल करने के बाद 90 दिनों के अंदर बिजनेस बंद कर सकते हैं. इसके लिए एक इनसॉल्वेंसी प्रोफेशनल को भी नियुक्त किया जाता है.