Diwali Sale: नंबर से जुड़ी ये 4 ट्रिक आपको सामान खरीदने पर कर देती हैं मजबूर, सेल में Shopping करते वक्त रखें ध्यान
फेस्टिव सीजन (Festive Season) के दौरान आपको कई सारी सेल देखने को मिल रही होंगी. इन सभी सेल (Sale) में आपको एक चीज कॉमन दिखेगी कि इनमें तमाम प्रोडक्ट्स की कीमतें एक पैटर्न में तय की गई होती हैं. इन कीमतों में कुछ ट्रिक्स (Marketing Tricks) का इस्तेमाल किया जाता है.
फेस्टिव सीजन (Festive Season) के दौरान आपको कई सारी सेल देखने को मिल रही होंगी. इन सभी सेल (Sale) में आपको एक चीज कॉमन दिखेगी कि इनमें तमाम प्रोडक्ट्स की कीमतें एक पैटर्न में तय की गई होती हैं. इन कीमतों में कुछ ट्रिक्स (Marketing Tricks) का इस्तेमाल किया जाता है, ताकि ग्राहकों को अपनी ओर खींचा जा सके. आइए आपको आज बताते हैं 4 ऐसी नंबर ट्रिक्स, जिनका सेल में इस्तेमाल किया जाता है और इन्हीं की वजह से आप इन प्रॉडक्ट्स की तरफ खिंचते चले जाते हैं.
1- सबसे पहले बात करते हैं नंबर 9 के जादू की
मार्केटिंग की दुनिया में 9 नंबर को चार्म प्राइस कहा जाता है. यानी वह कीमत जिसे देखते ही आप किसी प्रोडक्ट की तरफ खिंचे चले जाते हैं. यही वजह है कि तमाम सेल में प्रोडक्ट्स की कीमतें 9 पर खत्म होती दिखते हैं, जैसे 99, 199, 499, 999 रुपये. ऐसा इसलिए किया जाता है, क्योंकि जब आप किसी प्रोडक्ट की कीमत 9 पर खत्म होते देखते हैं तो आप उसे 10 से बेहद दूर समझते हैं. जैसे अगर आपको किसी प्रोडक्ट की कीमत 89 रुपये दिखे, तो वह कीमत आपको 90 रुपए से दूर और 80 रुपए के करीब लगेगी. यही वजह है कि हर सेल में मैजिक नंबर 9 को ग्राहकों को लुभाने के लिए इस्तेमाल किया जाता है. तो अगली बार अगर आप शॉपिंग करने जाएं तो ध्यान रखें कि 999 असल में 1000 के बेहद करीब, ना कि 900 के.
2- कीमत को दशमलव में लिखना
अक्सर आपने देखा होगा की सेल के दौरान प्रोडक्ट्स की कीमतें पूरी लिखने के बजाय दशमलव में लिखी जाती हैं. जैसे किसी प्रोडक्ट की कीमत 150 रुपये है तो उसे 149.99 रुपये लिख दिया जाता है. ऐसे में जब आप एक नजर में उसे देखेंगे तो कीमत आपको 150 रुपये से दूर और 149 रुपये के करीब लगेगी. यह भी काफी हद तक 9 नंबर का ही जादू है, जो आपकी साइकोलॉजी के साथ खेलता है.
3- कीमतों में कॉमा का इस्तेमाल
जब कोई कंपनी तमाम प्रोडक्ट्स की कीमतें तय करती है तो अक्सर वह उसमें से कॉमा हटा लेती है. अगर किसी प्रोडक्ट की प्राइस कॉमा के साथ लिखी होती है तो वह आपको ज्यादा लगती है. वहीं अगर किसी प्रोडक्ट की प्राइस बिना कॉमा के लिखी हो तो वह आपको देखने में कम लगेगी. जैसे उदाहरण के तौर पर अगर बिना कॉमा के किसी प्रोडक्ट की प्राइस 1299 लिखी है तो यह आपको कम लगेगी. वहीं अगर इसे कॉमा के साथ 1,299 लिखा जाए तो यह कीमत आपको देखने में ज्यादा लगेगी. यानी मार्केटिंग की ये टेक्नीक आपकी साइकोलॉजी के साथ खेलती है.
4- प्रोडक्ट की कीमतों में अंतर का खेल
अगर किसी ग्राहक को अलग-अलग क्वांटिटी के दो प्रोडक्ट के बीच में चॉइस दी जाए, तो वहां इस मार्केटिंग टेक्नीक का इस्तेमाल होता है. मान लीजिए पहले प्रोडक्ट की कीमत 25 रुपये है और उसकी दोगुनी क्वांटिटी के प्रोडक्ट की कीमत 45 रुपए है. ऐसे में अधिकतर ग्राहक 25 रुपये वाला प्रोडक्ट खरीदते हैं. वहीं अगर 25 रुपए वाले प्रोडक्ट की कीमत 40 रुपये रख दी जाए और दोगुनी क्वांटिटी वाले प्रोडक्ट की कीमत 45 रुपये रखें तो ग्राहक 45 रुपये वाले प्रोडक्ट को खरीदने की सोचने लगता है. ऐसा इसलिए क्योंकि उसे लगेगा कि सिर्फ 5 रुपये अतिरिक्त खर्च कर के ही उसे ज्यादा वैल्यू मिल रही है.