बिहार को फर्जी वोटिंग से छुटकारा दिला रहा चेन्नई का ये स्टार्टअप, जानिए कैसे काम करती है इसकी टेक्नोलॉजी
FaceTagr के टूल का इस्तेमाल 25 मई को बिहार में हुए पंचायत उपचुनाव में किया गया. करीब 450 बूथ पर इस स्टार्टअप के टूल को लगाकर अधिकारियों ने लगभग 10 हजार फर्जी वोट्स की पहचान की है.
जब बात होती है एग्जामिनेशन की या इलेक्शन की, तो उसमें होने वाला फर्जीवाड़ा एडमिनिस्ट्रेशन की नींद उड़ा देता है. ऐसा लगता है कि बिहार चुनाव आयोग ने इससे बचने का तरीका ढूंढ लिया है, जिसे चेन्नई के एक स्टार्टअप FaceTagr का सहारा मिल गया है. इस स्टार्टअप के टूल का इस्तेमाल 25 मई को बिहार में हुए पंचायत उपचुनाव में किया गया. करीब 450 बूथ पर इस स्टार्टअप के टूल को लगाकर अधिकारियों ने लगभग 10 हजार फर्जी वोट्स की पहचान की है. इस कामयाबी के बाद अधिकारियों ने इसी टूल को 9 जून को हुए अरबन लोकल बॉडी के उपचुनाव में करीब 1700 बूथ पर फिर से इस्तेमाल किया.
महज 3 सेकेंड में हो जाता है काम
FaceTagr के सीईओ और डायरेक्टर Vijay Gnanadesikan ने कहा कि हमारा टूल वोटर के चेहरे की तुलना वोटर आइडेंटिटी कार्ड में दिखने वाले चेहरे से 20 पिक्सल तक करता है. इस प्रक्रिया में महज 3 सेकेंड का वक्त लगता है, जो किसी अधिकारी द्वारा मैनुअल तरीके से वेरिफिकेशन में लगने वाले वक्त से काफी कम है. इस तकनीक के चलते फर्जी वोटिंग करने वाले लोग डरते हैं और चुनाव में पारदर्शिता आती है.
99.91 फीसदी है एक्युरेसी
टाइम्स ऑफ इंडिया की खबर के अनुसार FaceTagr को NIST के फेस रिकॉग्निशन वेंडर टेस्ट (FRVT) की तरफ से इसकी एक्युरेसी और स्पीड के लिए चुना गया है. इस प्लेटफॉर्म ने 99.91 फीसदी एक्युरेसी दिखाई है. 2018 में शुरू हुए इस स्टार्टअप की फेस रिकॉग्निशन यानी चेहरा पहचानने की तकनीक को एक्युरेसी के मामले में टॉप 1 फीसदी गिना जाने लगा है.
FaceTagr के प्रमोटर्स Vijay Gnanadesikan और Elango Meenakshisundaram की कहानी तब शुरू हुई थी, जब उन्होंने रिटेल में ऑगमेंटेड रियल्टी यानी एआर (AR) पर काम करना शुरू किया था. विजय कहते हैं कि ई-कॉमर्स तेजी से बढ़ रहा है, क्योंकि इसमें पता होता है कि कौन शॉपिंग कर रहा और वह क्या खरीद रहा है. वह बोले कि हमने यही ट्रेंड बिल्डिंग मटीरियल्स के स्टोर में लागू करने की कोशिश की. इसके बाद हमने रिटेल के लिए फेस रिकॉग्निशन सॉफ्टवेयर पर काम करना शुरू किया.
पुलिस के साथ मिलकर भी काम कर चुकी है कंपनी
एक बार चेन्नई के एक सिग्नल पर भीख मांग रही लड़की को देखने के बाद FaceTagr के प्रमोटर्स ने पुलिस के साथ मिलकर काम किया, जिससे भारत में लापता हुई लड़कियों का पता लगाया जा सके. उसके कुछ समय बाद सीबीआई और अन्य एजेंसियों ने भी इस स्टार्टअप की मदद ली. पिछले 4-5 सालों में कंपनी ने फेसियल रिकॉग्निशन को ड्रोन आधारित सर्विलांस सिस्टम में भी इंस्टॉल किया. Tiruvannamalai Deepam, काराइकल में होने वाले Sanipeyarchi और Pasumpon में होने वाले Thevar Jayanthi प्रोग्राम में इसका इस्तेमाल भीड़ को मॉनिटर करने के लिए किया गया.
कश्मीर राष्ट्रीय राइफल के साथ भी किया काम
अमेरिका के दो और इजराइल का एक सॉफ्टवेयर इस्तेमाल करने के बाद कश्मीर राष्ट्रीय राइफल ने इस स्टार्टअप से संपर्क किया और एलओसी पर होने वाली गतिविधियों को मॉनिटर करने में मदद मांगी. वहीं अगर रिटेल मार्केट की बात करें तो कंपनी ने टाइटन और फ्यूचर ग्रुप के साथ मिलकर भी काम किया है. हालांकि, कोरोना काल में इस स्टार्टअप को थोड़ा दिक्कतों का सामना करना पड़ा. उसके बाद कंपनी ने अपना ध्यान इंफ्रास्ट्रक्चर कंपनियों की ओर मोड़ा, जिन्हें FaceTagr की जरूरत एयरपोर्ट, तेल की पाइपलाइनें, रेलवे लाइनें और माइन्स को मॉनिटर करने के लिए थी. आज के वक्त में FaceTagr का इस्तेमाल मलेशिया में क्वालालंपुर एयरपोर्ट पर भी हो रहा है. इसके अलावा दिल्ली और मुंबई समेत भारत के 7 एयरपोर्ट पर इसका इस्तेमाल हो रहा है.
4 लोगों से शुरू हुई कंपनी, अब 20 लोगों की हो गई है टीम
इस कंपनी की शुरुआत महज 4 कर्मचारियों के साथ हुई थी और इसकी टीम 20 लोगों की हो चुकी है. विजय कहते हैं कि वह टेक्नोलॉजी के नजरिए से एक्युरेसी को और बेहतर करने पर काम करते रहेंगे. भारत में करीब 10 लाख चुनाव बूथ हैं और हर साल कोई न कोई चुनाव होता ही है. वहीं फेस रिकॉग्निशन टेक्नोलॉजी का स्कोप सिर्फ भारत में ही नहीं है, बल्कि दुनिया के बाकी देशों में भी है.