Affordable Housing: रियल एस्टेट का बाजार तेजी से बदल रहा है. कई फैक्टर्स हैं इसको प्रभावित कर रहे हैं. अफोर्डेबल हाउसिंग की स्थिति दिन-ब-दिन बदतर होती जा रही है. रियल एस्टेट सलाहकार फर्म एनारॉक की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक, देश के सात प्रमुख शहरों में 40 लाख रुपए से कम कीमत वाले अफोर्डेबल घरों की कुल नए घरों में हिस्सेदारी घटकर पिछले साल 20 फीसदी पर आ गई. ऐसे में अगर कोई होमबायर अपने लिए 40 लाख तक की कीमत वाले घरों की तलाश में है तो उसे लिमिटेड ऑप्शन मिलेंगे. आने वाले कुछ सालों में यह समस्या और बढ़ेगी. इस गिरावट के पीछे तीन प्रमुख कारण बताए जा रहे हैं. पहला है कि जमीन की मांग बढ़ने के कारण कीमत आसमान छू रही है. ऐसे प्रोजेक्ट्स में प्रॉफिट मार्जिन बहुत कम होता है. इसके अलावा कम ब्याज दरों पर फंड नहीं मिलता है. 

2022 में अफोर्डेबल हाउसिंग का शेयर 20  फीसदी पर लुढ़का

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आंकड़ों के अनुसार, रियल एस्टेट डेवलपर ने वर्ष 2022 में देश के सात प्रमुख शहरों में कुल 357650 घरों की आपूर्ति की जिनमें से सिर्फ 20 फीसदी घर ही अफोर्डेबल कैटिगरी में थे. इसके पहले साल 2018 में कुल 195300 घर तैयार किए गए थे, जिनमें से 40 फीसदी घर अफोर्डेबल कैटिगरी के थे. वर्ष 2019 में बने कुल 236560 घरों में से अफोर्डेबल घरों का हिस्सा 40 फीसदी पर स्थिर रहा.

2021 में अफोर्डेबल हाउसिंग का शेयर 26 फीसदी रहा था

हालांकि वर्ष 2020 में निर्मित कुल 127960 इकाइयों में से अफोर्डेबल घरों का हिस्सा गिरकर 30 फीसदी रह गया. इन सात शहरों में वर्ष 2021 में तैयार कुल 236700 घरों में से अफोर्डेबल घरों का आंकड़ा और भी गिरावट के साथ 26 फीसदी पर गया.  पिछले साल भी अफोर्डेबल घरों की संख्या में गिरावट का दौर जारी रहा और कुल नई आवासीय इकाइयों में अफोर्डेबल घरों का अनुपात गिरकर 20 फीसदी रह गया.

निर्माण लागत बहुत बढ़ गई है

एनारॉक के चेयरमैन अनुज पुरी ने कहा, 'अफोर्डेबल घरों की तादाद कम होने के पीछे कई कारक हैं. इनमें एक निश्चित रूप से जमीन है. डेवलपर मध्यम एवं प्रीमियम कैटिगरी वाली इकाइयां बनाकर जमीन की लागत की आसानी से भरपाई कर सकते हैं लेकिन अफोर्डेबल घरों के मामला अलग हो जाता है. वहीं, रियल्टी फर्म सिग्नेचर ग्लोबल के चेयरमैन प्रदीप अग्रवाल ने अफोर्डेबल घरों की संख्या कम होने के पीछे बढ़ती निर्माण लागत और जमीन की कीमतों को जिम्मेदार बताते हुए कहा कि इस कैटिगरी में नई परियोजनाएं लाने की गुंजाइश ही ही नहीं बची है. 

प्रीमियम कैटिगरी में मांग बढ़ी

एनारॉक ने कहा कि ऐसी स्थिति में नए घर की तलाश करने वाले लोगों की मांग 40 लाख रुपए से अधिक और 1.5 करोड़ रुपए से कम कीमत वाले घरों की तरफ केंद्रित हो गई है. बीते कुछ सालों में भारत में प्रीमियम कैटिगरी में मांग में तेजी देखने को मिल रही है.

(भाषा इनपुट)

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