रेलवे के एक्सपेंशन के क्रम में जल्द ही फॉर्जड व्हील्स के लिए टेंडर जारी होगा. जी बिजनेस के एक्सक्लूसिव सूत्रों के मुताबिक रेलवे लगभग 1 लाख पहियों के लिए बोलियां मंगाएगा. वंदे भारत समेत अन्य ट्रेनों के लिए ऑर्डर दिया जाएगा. 2026 तक प्रीमियम ट्रेनों के लिए दो लाख से अधिक पहियों की जरूरत संभव है. बड़ी संख्या में वंदे भारत ट्रेन और सेमी हाई स्पीड ट्रेन से मौजूदा रैक रिप्लेस होंगे. मेटल कंपनी रामकृष्ण फॉर्जिंग्स, राष्ट्रीय इस्पात निगम लिमिटेड (RINL), स्टील अथॉरिटी इंडिया लिमिटेड (SAIL) और रामकृष्ण फॉर्जिंग्स फॉर्ज्ड व्हील्स बनाती हैं.

क्या होता है फॉर्ज्ड व्हीकल, कैसे किया जाता है तैयार 

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फॉर्ज्ड व्हील को बनाने का तरीका कास्ट व्हील से अलग होता है. इसमें पहिए को आकार देने के बाद हाई प्रेशर में दबाव दिया जाता है. इसे बार-बार उच्च दबाव पर दबाया जाता है. इससे पहिये में किसी भी प्रकार का वैक्यूम या हवा होने की संभावना पूरी तरह खत्म हो जाती है. इससे उनकी गुणवत्ता अंतरराष्ट्रीय मानक के मुताबिक बन जाती है.  यह लंबे समय तक चलता है और इनकी बार-बार री-प्रोफाइलिंग नहीं करानी पड़ती. ये पहिए सेमी हाई स्पीड(160-200 किमी) पर चलने के लिए उपयुक्त हैं.

रेल मंत्री ने कहा, ट्रेन उपकरणों का निर्यातक बनने वाला है भारत

रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव ने इसी साल कहा था कि रेलवे में इस्तेमाल होने वाले फॉर्ज्ड व्हील्स को भारत आयात करता था. अब भारत जल्दी ही इस ट्रेन उपकरण का निर्यातक बनने वाला है. रेलवे ने मेटल कंपनी रामकृष्ण फॉर्जिंग्स लिमिटेड के साथ ज्वाइंट वेंचर कर चेन्नई के पास गुम्मीडीपोंडी में मैन्युफैक्चरिंग यूनिट स्थापित की थी. पहले चरण में ये 650 करोड़ रुपए की लागत से तैयार की गई है. अश्विनी वैष्णव ने कहा था कि वंदे भारत में जो पहिए इस्तेमाल होते हैं वह स्पेशल क्वालिटी के होते हैं और वह स्पेशल मैन्युफैक्चिरिंग के जरिए बनते हैं. 

मानक गेज वंदे भारत ट्रेन होगी विकसित, कुछ साल में कर सकते हैं निर्यात

रेल मंत्री अश्विनी वैष्ण ने ये भी कहा था कि इंटीग्रल कोच फैक्ट्री मानक गेज वंदे भारत ट्रेनें भी विकसित करेगी."मानक गेज रेक का उपयोग पूरी दुनिया में किया जाता है. बकौल रेल मंत्री,'इसलिए,जब हम कुछ वर्षों में वंदे भारत ट्रेनों के निर्यात के बारे में सोच रहे हैं, तो हमें आज मानक गेज वंदे भारत ट्रेनों का विकास करना होगा. मानक गेज वंदे भारत ट्रेनों की डिजाइनिंग और टेस्टिंग किए जाने की जरूरत है, जिसके बाद उन्हें औपचारिक रूप से लॉन्च करने से पहले राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय मंजूरी लेनी होगी.'