इंश्योरेंस (Insurance) लेना कितना जरूरी है, इसका अंदाजा तब लगता है जब बुरा वक्त आता है. लाइफ इंश्योरेंस के मामले में घर का कमाने वाला ना रहे तो उसकी गैर-मौजूदगी में परिवार को तमाम मुश्किलों से गुजरना पड़ता है. अगर हेल्थ इंश्योरेंस की बात करें तो जब कोई हादसा होता है और लाखों रुपयों का अस्पताल का बिल बनता है, तब समझ आता है कि हेल्थ इंश्योरेंस कितना जरूरी होता है. हर कोई इंश्योरेंस अपने बुरे वक्त से निपटने के लिए लेता है. अब जरा सोचिए, उस बुरे वक्त में अगर इंश्योरेंस कंपनी ही आपके क्लेम को रिजेक्ट कर दे तो क्या होगा? इस मामले पर Zee Business ने एक स्टार्टअप Insurance Samadhan की को-फाउंडर और सीओओ शिल्पा अरोड़ा से बात की और साल 2023 के 5 ऐसे किस्से जाने, जिनमें लोगों के क्लेम को रिजेक्ट किया गया, लेकिन स्टार्टअप ने उनके पैसे दिलाने में मदद की.

1- पटरी पार करते वक्त हुई मौत, क्लेम हुआ रिजेक्ट

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ये कहानी है तमिलनाडु के Veppampattu नाम के छोटे से गांव में रहने वाले एस. पुष्पराजन की. वहां के रेलवे स्टेशन पर कोई फुटओवर ब्रिज ना होने के चलते वह ऑफिस जाने के लिए हर रोज रेलवे ट्रैक क्रॉस करते थे. ऐसा करने वाले वह अकेले नहीं थे. उनकी ही तरह करीब 600-700 लोग रोज रेलवे ट्रैक को क्रॉस करते थे. लेकिन 4 मई 2022 को ऑफिस जाते वक्त जब वह रेलवे ट्रैक क्रॉस कर रहे थे, जो हादसा हो गया, जिसमें उनकी मौत हो गई. इस पर जब इंश्योरेंस कंपनी से क्लेम मांगा गया तो उन्होंने यह कहते हुए क्लेम खारिज कर दिया कि रेलवे ट्रैक क्रॉस करना कानून अपराध है, इसलिए क्लेम को पास नहीं किया जा सकता. इसके बाद उनके बेटे ने इंश्योरेंस समाधान से बात की और कंपनी ने पूरी तस्वीर साफ करते हुए उन्हें क्लेम हासिल करने में मदद की.

2- एक के बाद एक 9 पॉलिसी बेच दीं निशा को

चेन्नई की रहने वाली सलामत निशा  के पति की 2021 में कोविड की वजह से मौत हो गई. उसी दौरान किसी ने उनसे संपर्क किया और बताया कि उनके पति की पॉलिसी लैप्स हो गई है. उसके कहा कि अगर वह प्रीमियम के 2.80 लाख रुपये का भुगतान कर दें तो वह पॉलिसी के 25 लाख रुपये क्लेम कर सकती हैं. निशा को उस वक्त पैसों की जरूरत थी, इसलिए वह मान गईं. दरअसल, उनके साथ एक फ्रॉड हुआ और उन्हें एक पॉलिसी बेच दी गई, वह भी उनकी शादीशुदा बेटी के नाम पर. जब 6 महीनों बाद भी कोई पैसा नहीं मिला तो उन्होंने उस शख्स से इसके बारे में बात की. उस वक्त उन्हें कहा गया कि अगर उन्हें 25 लाख रुपये चाहिए तो उन्हें और पॉलिसी खरीदनी होंगी. इसके बाद उन्होंने 8 और पॉलिसी खरीदीं. इनमें से 6 अपने नाम पर, एक बेटी के नाम पर और एक अपने स्कूल में पढ़ने वाले बच्चे के नाम पर. इन सभी पॉलिसी का सालाना प्रीमियम करीब 11 लाख रुपये था, जो वह चुकाने की हालत में बिल्कुल नहीं थीं. जब उन्हें पता चला कि वह मिस-सेलिंग का शिकार हो चुकी हैं, तो उन्होंने इंश्योरेंस कंपनी से इसकी शिकायत की, लेकिन वहां उनकी बातों को नजरअंदाज कर दिया गया. इसके बाद जब उन्होंने इंश्योरेंस समाधान से संपर्क किया तो कंपनी की मदद से उन्हें गलत तरीके से बेची गई 9 पॉलिसी के 10,01,997 रुपये रिकवर करवाकर दिए गए.

3- पुलवामा हमले में दिव्यांग हुए जवान का क्लेम अटकाया

14 फरवरी 2019 को कोई नहीं भूल सकता है, जब पुलवामा अटैक हुआ था. इसमें पंजाब के फतेहगढ़ साहिब के लांस नायक जगतार सिंह बुरी तरह घायल हुए थे. उन्हें 6 गोलियां लगी थीं और इसकी वजह से वह 70 फीसदी डिसएबल हो गए. उन्होंने अपने बैंक से डिसएबिलिटी इंश्योरेंस लिया था, इसलिए उन्होंने तमाम डॉक्युमेंट बैंक में जमा किए. इन डॉक्युमेंट्स में Disability Certificate और Battle Casualty Certificate भी शामिल थे. हालांकि, बैंक की तरफ से उनकी बातों को बार-बार नजरअंदाज किया गया. इसके बाद जगतार सिंह ने Insurance Samadhan का रुख किया और कंपनी ने उन्हें 10 लाख रुपये का क्लेम अमाउंट दिलाने में मदद की. साथ ही उन्हें बैंक की तरफ से 5 लाख रुपये का मुआवजा भी दिया गया, जिसके लिए जगतार सिंह को परेशानी का सामना करना पड़ा था.

4- क्रिटिकल इलनेस को लेकर हुआ कनफ्यूजन

महाराष्ट्र के रहने वाले दीपक ने पूरी ईमानदारी के साथ अपना प्रीमियम भरा, लेकिन एक दिन नासिक के सुविचार अस्पताल में उन्हें सांस लेने में बहुत ज्यादा परेशानी हुई और उनकी मौत हो गई. उनकी मौत के बाद परिवार ने इंश्योरेंस कंपनी से क्लेम मांगा तो उसने क्लेम रिजेक्ट कर दिया. इंश्योरेंस कंपनी का कहना था कि उनकी बीमारी क्रिटिकल इलनेस में कवर नहीं है. मौत की वजह थी कोरोनरी आर्टरी डिज़ीज (CAD), जिसकी पुष्टि नासिक सिविल अस्पताल ने पोस्ट-मार्टम के बाद की थी. हालांकि, इंश्योरेंस कंपनी ने पोर्टमार्टम से पता चली बातों को नहीं देखा और क्लेम रिजेक्ट कर दिया. शिकायत में कहा गया कि उन्होंने यह पॉलिसी हाउसिंग लोन लेते वक्त ली थी, ताकि लोन अमाउंट कवर किया जा सके. ऐसे में इंश्योरेंस क्लेम को मना करना पूरी तरह से गलत है. जब परिवार की शिकायत पर इंश्योरेंस समाधान ने इस केस पर रिसर्च शुरू की तो पता चला कि IRDA के अनुसार दिल के दौरे जैसी मेडिकल कंडीशन को भारत में स्टैंडर्डाइजेशन के दायरे में रखा है. ऐसे में क्लेम हासिल करने में कंपनी ने शिकायतकर्ता की मदद की और 7.62 लाख रुपये का क्लेम दिलवाया.