भारत में सोने को लेकर महिलाओं की दीवानगी किसी से छिपी नहीं है. सोना समाज में रुतबे का प्रतीक तो है ही, इसे निवेश का बेहतरीन साधन भी माना जाता है. लेकिन क्या सच में ऐसा है. सोना चाहें सस्ता हो या महंगा, इससे उसके खरीदारों को खास फर्क नहीं पड़ता है. भारत में ज्यादातर सोना आभूषणों के रूप में खरीदा जाता है. ऐसे में एक सवाल ये भी है कि ज्यादा फायदेमंद क्या है- सोने के आभूषण खरीदना या फिर सोने के सिक्के या छड़ (bar) खरीदना.

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सांस्कृतिक महत्व

भारत में सोना खरीदने का सांस्कृतिक महत्व है. सोने को संमृद्धि का कारक माना जाता है और इसलिए लोग कीमत से बेपरवाह होकर सोना खरीदते हैं. अक्षय तृतीया और धनतेरस जैसे पर्वों में लोग धार्मिक मान्यताओं के चलते सोना खरीदते हैं. सांस्कृतिक मान्यताओं के चलते सास अपनी बहू को घरोहर के रूप में सोना सौंपकर जाना चाहती है. इसलिए सोने का महत्व उसके मूल्य से कहीं बढ़कर है.

बचत का बेहतरीन साधन

महिलाओं को सोना बहुत प्रिय होता है. भारत में महिलाएं सिर्फ सोने के आभूषण खरीदने के लिए ही छोटी-छोटी बचत करती हैं. सोने की ये चाहत घरों में बचत की एक बड़ी वजह है.

सोने हर जगह चलता है

प्रत्येक देश की मुद्रा उस देश की सीमा के भीतर ही चलती है, जबकि सोना हर जगह चलता है. सोने की मांग हमेशा रहती है. इसके खरीदार हमेशा रहते हैं. यानी कैश के बाद सोना सबसे तरल निवेश है. सोने को कभी भी बेचकर बाजार मूल्य के बराबर पैसा पाया जा सकता है. सोना 

लंबे समय के लिए सुरक्षित निवेश है.

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सोना आखिर सोना होता है, चाहें जिस रूप में हो

भारत में सोने की सबसे अधिक दीवानगी आभूषणों को लेकर है. महिलाओं को आभूषण अधिक आकर्षित करते हैं, लेकिन निवेश के लिहाज से सोने के सिक्के और छड़ अधिक मुफीद हैं. यहां से समझने की जरूरत है कि सोना आखिर सोना होता है, चाहें जिस रूप में हो. अगर छड़ या सिक्कों से रूप में सोना खरीदा जाए तो ज्यादा बेहतर रिटर्न मिल सकता है.

कुछ लोगों का कहना है कि महंगाई के प्रभाव को समायोजित कर दें तो सोने से बेहतर रिटर्न नहीं मिलता है. सोने की सुरक्षा को लेकर हमेशा डर बना रहता है. हालांकि, जैसा कि ऊपर कहा गया है कि भारत में सोना सिर्फ रिटर्न पाने का जरिए नहीं है. सोने के साथ जुड़े इसके भावनात्मक पक्ष इसे कालजयी बना देते हैं.