कुछ लोग कहते हैं कि 'पैसा भगवान नहीं है, लेकिन भगवान से कम भी नहीं है' लेकिन एक वाजिब सवाल ये है कि आपके जीवन में कितना धन जरूरी है. पैसा जरूरी है क्योंकि उससे जीवन की जरूरत पूरी होती है, लेकिन सिर्फ पैसा कमाने के लिए पैसा कमाना, या अपने सुख-चैन को दांव पर लगाकर पैसा कमाना कहां तक सही है.

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कुछ रिपोर्ट का कहना है कि दुनिया की बड़ी आबादी पैसे की बीमारी की शिकार है. कहीं आपको तो पैसे की बीमारी नहीं लग गई है. क्या हैं इस बीमारी के लक्षण. ब्रिटेन के जानेमाने चिकित्सक राजर हैंडरसन ने इस बीमारी को 'मनी सिकनेस सिंड्रोम' नाम दिया है. उन्होंने एक रिपोर्ट में कहा, 'पैसे की बहुत अधिक चिंता आज तनाव की सबसे बड़ी वजह बन गई है.' 

उन्होंने बताया कि आश्चर्यजनक रूप से गरीब इस बीमारी का शिकार नहीं हैं, बल्कि बड़ी संख्या में अमीर इस बीमारी का शिकार हो रहे हैं. आर्थिक तरक्की ने कई लोगों को चिंताओं के जाल में फंसा दिया है. इस बीमारी के कुछ लक्षण हैं- तनाव बढ़ना, कर्ज़ में डूबना, हद-से-ज़्यादा काम करना, कभी संतुष्ट न होना, पैसे की बरबादी, ईर्ष्या और हताशा.

अगर ये 10 बातें आप पर लागू होती हैं, तो इसका मतलब है कि आप कहीं न कहीं मनी सिकनेस सिंड्रोम के शिकार हो रहे हैं-

1- आप पैसे की बात करने से कतराते हैं क्योंकि इससे आपको तनाव होता है. रुपये-पैसे की बात उठते ही परिवार में झगड़ा शुरू हो जाता है.

2- आप अंधाधुंध पैसा खर्च करते हैं और आपको हमेशा बिल चुकाने की चिंता लगी रहती है.

3- आपको न तो अपनी आमदनी का अंदाजा रहता है और न आपको ये पता होता कि आपने कितना खर्च किया.

4- आपको उम्मीद से कहीं ज़्यादा बिल चुकाने पड़ते हैं और आप अपने बिल कभी वक्‍त पर अदा नहीं करते.

5- आप उस पैसे से अपने बिल चुकाते हैं, जो पैसा आपने किसी और मकसद के लिए रखा था.

6- आप अपने बिल अदा करने के लिए ज्यादा काम करते हैं और अपने पुराने लोन भरने के लिए नए लोन लेते हैं.

7- आप अपने रोजमर्रा के बिल चुकाने के लिए अपनी बचत का पैसा खर्च करते हैं.

8- आप महीने के आखिर में तंगी का सामना करते हैं.

9- आप ज़्यादा पैसा जमा करने के लिए मजबूर हो जाते हैं.

10- आपको पैसे की चिंता की वजह से शारीरिक और मानसिक बीमारी हो जाती है.

रिसर्च से पता चला है कि मनी सिकनेस सिंड्रोम से बचने का सबसे अच्छा और आसान तरीका है कि खर्च करने से पहले बजट बनाया जाए और खर्च करने के बाद उसका हिसाब लिखकर रखा जाए. इससे फिजूलखर्ची में बहुत कमी आती है. अपने बनाए बजट पर अनुशासन के साथ अमल करना चाहिए. खुश होने और अपनों को खुश रहने के लिए कुछ ऐसे भावनात्मक तरीकों की खोज कीजिए, जिसमें ज्यादा पैसे खर्च करने की कोई जरूरत नहीं. याद रखिए खुशी पैसों में नहीं है. खुशी तो आपके भीतर है.