SIP के जरिए म्‍यूचुअल फंड्स में निवेश का तरीका आजकल तेजी से पॉपुलर हो रहा है. एसआईपी को निवेश के बेहतरीन ऑप्‍शंस में गिना जाता है. मार्केट लिंक्‍ड स्‍कीम होने के बावजूद ये डायरेक्‍ट शेयर्स में निवेश करने के मुकाबले ये कम जोखिमभरा माना जाता है. ज्‍यादातर एक्‍सपर्ट्स इसका औसत रिटर्न 12 फीसदी मानते हैं. कंपाउंडिंग का फायदा मिलने के कारण लॉन्‍ग टर्म में ये स्‍कीम अच्‍छा खासा मुनाफा करवा सकती है. 

COMMERCIAL BREAK
SCROLL TO CONTINUE READING

SIP को वेल्‍थ क्रिएशन के लिहाज से काफी अच्‍छी स्‍कीम माना जाता है. लेकिन अगर आप इसमें इन्‍वेस्‍ट करने का मन बना रहे हैं तो आपको पहले एक्सपेंस रेश्यो (Expense Ratio) के बारे में जरूर जान लेना चाहिए. आमतौर पर लोगों को लगता है अगर किसी फंड का रिटर्न 12 फीसदी या 15 फीसदी है उसका पूरा फायदा उन्‍हें होगा, लेकिन ऐसा नहीं होता. मुनाफे में सेंध लगाने के लिए एक्सपेंस रेश्यो बीच में आ जाता है. यहां जानिए इसके बारे में.

क्‍या होता है एक्‍सपेंस रेश्‍यो? 

एसेट मैनेजमेंट कंपनीज (AMC) म्‍यूचुअल फंड्स को मैनेज करती हैं. AMC फंड डिस्ट्रीब्यूशन और मार्केटिंग का खर्चा उठाती हैं, साथ ही म्यूचुअल फंड के ट्रांसफर कस्टोडियन, लीगल और ऑडिटिंग जैसे खर्च भी उठाती है. ये सभी तरह के खर्च  म्यूच्युअल फंड की यूनिट खरीदने वाले इन्वेस्टर्स से वसूले जाते हैं. इस तरह के सभी एक्सपेंस निकालने के बाद म्यूच्युअल फंड स्कीम की नेट एसेट वैल्यू निकाल ली जाती है. सरल शब्‍दों में समझें तो आपके म्‍यूचुअल फंड को मैनेजमेंट का जो भी खर्च आता है उसे एक्‍सपेंस रेश्‍यो कहा जाता है. किसी भी फंड का एक्सपेंस रेश्यो ही ये तय करता है कि आपको कोई फंड कितना सस्ता मिलेगा. एक्‍सपेंस रेश्‍यो कम या ज्‍यादा होने का असर आपके रिटर्न पर भी पड़ता है. 

एक बार में नहीं वसूले जाते हैं एक्‍सपेंस रेश्‍यो

हर कंपनी अपने लिए अपने हिसाब से एक्‍सपेंस रेश्‍यो सेट करती है. एक्सपेंस रेश्यो एक बार में नहीं वसूले जाते हैं. फंड हाउस अपने हर दिन के खर्चे को कैलकुलेट करते हैं, जिसके बाद इसे डेली बेसिस पर निकाला जाता है. एनुअल एक्सपेंस रेश्यो, साल के ट्रेडिंग डेज में डिवाइड होते हैं. जिन्हें टोटल एनवी पर लगाया जाता है. एक्सपेंस रेश्यो से यह पता चलता है कि आपके इन्वेस्टमेंट पोर्टफोलियो से आपका म्यूच्युअल फंड मैनेजमेंट आपसे कितनी फीस ले रहा है.

कई तरह के होते हैं म्‍यूचुअल फंड्स

म्‍यूचुअल फंड कई तरह के होते हैं जैसे-इक्विटी फंड्स (Equity Funds), डेट फंड्स (Debt Funds), बैलेंस या हाइब्रिड फंड्स (Hybrid Funds). इक्विटी फंड, निवेशकों से लिए पैसे को शेयर में लगाते हैं. डेट फड्स में निश्चित आय वाले साधनों जैसे ट्रेजरी बिल, कॉरपोरेट बॉन्ड और गवर्नमेंट सिक्योरिटीज में निवेश करते हैं. वहीं हाइब्रिड में इक्विटी और डेट फंड्स का मिश्रण होता है.