बेसिक, नेट और ग्रॉस सैलरी में क्या होता है अंतर? कैसे तैयारी होती है आपकी CTC- समझें पूरा गुणा गणित
CTC, बेसिक सैलरी, नेट सैलरी, ग्रॉस सैलरी जैसे शब्दों का इस्तेमाल करते हुए आपने कई बार लोगों को देखा होगा, लेकिन क्या इनके बीच का फर्क आप समझते हैं. अगर नहीं तो यहां जानिए इसके बारे में.
अगर आप नौकरीपेशा हैं तो आपने CTC, बेसिक सैलरी, नेट सैलरी, ग्रॉस सैलरी जैसे शब्दों को खूब सुना होगा, कई बार इस्तेमाल भी किया होगा. बेसिक सैलरी का आपकी सैलरी स्ट्रक्चर में बहुत बड़ा रोल होता है. हममें से तमाम लोग इन शब्दों का इस्तेमाल तो करते हैं, लेकिन सही मायने में इनके अंतर को नहीं जानते हैं. आइए आपको समझाते हैं कैसे तैयार होती है आपकी CTC और बेसिक, नेट और ग्रॉस सैलरी में क्या अंतर होता है.
सबसे पहले जानिए CTC
CTC का मतलब होता है (Cost to Company) यानी वो पैसा जो कंपनी अपने कर्मचारी पर सालभर में खर्च करती है. CTC में आपकी बेसिक सैलरी के साथ ट्रैवल अलाउंस, कम्युनिकेशन अलाउंस, मेडिकल इंश्योरेंस और बचत योगदान वगैरह सब कुछ शामिल होता है. कई बार तो कंपनियां इसमें ग्रेच्युटी को भी शामिल कर लेती हैं. ग्रेच्युटी किसी भी कंपनी की तरफ से अपने कर्मचारी को उसके अच्छे काम के लिए पुरस्कार स्वरूप दी जाने वाली राशि होती है जो उसे नौकरी छोड़ने के बाद दी जाती है.
क्या है बेसिक सैलरी
बेसिक सैलरी वो राशि होती है जिस पर कंपनी और कर्मचारी दोनों की सहमति होती है. बेसिक सैलरी आपके सैलरी स्ट्रक्चर का बेस है. इसके आधार पर ही सैलरी पैकेज के तमाम घटकों की कैलकुलेशन की जाती है. बेसिक सैलरी कुल CTC का 40-45% होती है. इसमें HRA, बोनस और किसी प्रकार की टैक्स कटौती या कोई अतिरिक्त मुआवजा, ओवरटाइम आदि शामिल नहीं होता हैं.
कैसे तय होती है बेसिक सैलरी
मौजूदा समय में सैलरी की कोई तय परिभाषा नहीं है. इसका कंपनियां फायदा उठाती हैं. सैलरी स्ट्रक्चर तैयार करते समय कई बार कंपनियां आपकी बेसिक सैलरी को कम रखती हैं और अन्य भत्तों को बढ़ा देती हैं. ऐसे में आप कंपनी को बाध्य नहीं कर सकते हैं कि वह आपकी बेसिक सैलरी आपके हिसाब से तय करे. लेकिन अगर आपकी बेसिक सैलरी काफी कम है, तो आप अपनी कंपनी में एचआर डिपार्टमेंट से इसे बढ़ाने का अनुरोध कर सकते हैं.
ग्रॉस सैलरी क्या होती है
बेसिक सैलरी के साथ महंगाई भत्ता, हाउस रेंट अलाउंस, कन्वेयंस अलाउंस और अन्य तरह के सभी भत्तों को जोड़कर और किसी भी तरह की कटौती से पहले जो राशि बनती है, उसे ग्रॉस सैलरी कहा जाता है. मान लीजिए कि आपकी बेसिक सैलरी 20000 है, इसमें 4000 रुपए महंगाई भत्ता, 9000 रुपए हाउस रेंट अलाउंस और 1000 रुपए कन्वेयंस अलाउंस और 5000 रुपए अन्य अलाउंस के जोड़ दिए जाएं तो आपकी ग्रॉस सैलरी कुल 38000 रुपए बनेगी.
नेट सैलरी किसे कहते हैं
ग्रॉस सैलरी से टैक्स, प्रोविडेंट फंड और आदि अन्य तरह की कटौती होने के बाद जो राशि आपको सैलरी के तौर पर मिलती है, उसे नेट सैलरी कहा जाता है. नेट सैलरी किसी कर्मचारी की टेक-होम सैलरी होती है यानी ये वो फाइनल राशि होती है जो हर महीने कर्मचारी के अकाउंट में आती है.
बेसिक सैलरी कम या ज्यादा होने का आप पर असर
बेसिक सैलरी का कम होना और बहुत ज्यादा होना, दोनों ही स्थितियों का असर आप पर पड़ता है. बेसिक सैलरी पर हमेशा टैक्स लागू होता है इसलिए ये सीटीसी के 40 से 50% से अधिक नहीं होनी चाहिए. लेकिन अगर इसे बहुत कम कर दिया जाए तो ये आपके सैलरी स्ट्रक्चर पर असर डालती है. बेसिक सैलरी कम होने का सबसे बड़ा नुकसान ये है कि आपका पीएफ कॉन्ट्रीब्यूशन ज्यादा नहीं हो पाता. ईपीएफओ के नियम के अनुसार कर्मचारी की बेसिक सैलरी और डीए का 12 फीसदी हर माह पीएफ फंड में जाता है. कंपनी भी कर्मचारी के लिए उतना ही कॉन्ट्रीब्यूट करना होता है. ऐसे में अगर आपकी बेसिक सैलरी कम है तो आपका पीएफ भी कम कटेगा. इससे लंबी अवधि में आपको लाखों रुपए का नुकसान होगा.
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