हम सभी की इच्छाएं और जरूरतें बिल्कुल अलग हैं. जहां कुछ लोग हमेशा कर्ज मुक्त रहना पसंद करते हैं वहीं कुछ लोग समझदारी से लोन को मैनेज कर शौक पूरे करना पसंद करते हैं. लेकिन अगर कभी आप इमरजेंसी में हैं तो क्या आपके पास सिर्फ लोन का ही ऑप्शन बचता है? ऐसे में एसेट को लिक्विडेट करना आपके काम आ सकता है. एसेट लिक्विडेशन का मतलब होता है. आपके पास मौजूद किसी तरह की प्रॉपर्टी को आप कैश में कन्वर्ट कर दें. अब ऐसा आप अपनी प्रॉपर्टी को ओपन मार्केट में बेचकर कर सकते हैं. आसान भाषा में कहें तो किसी बिजनेस को खत्म कर उसे सेल करने के बाद क्लेमेंट को उनके पैसे बांट देना भी लिक्विडेशन ही है. ये मजबूरी या फिर मन मर्जी के मुताबिक किया जा सकता है. जैसे कि हो सकता है आप नए इन्वेस्टमेंट और एसेट लेना चाहते हों. उसके लिए कैश जुटाने के लिए आप लिक्विडेशन का सहारा लें. दूसरी कंडीशन हो सकती है कि किसी व्यक्ति या कंपनी को बैंकरप्सी का सामना करना पड़ा हो. मजबूरी में पैसों की जरूरत पर वो ऐसा करें. लेकिन लिक्विडेशन के लिए दिवालिया घोषित होना जरूरी नहीं. 

क्या है सारा प्रोसेस 

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अलग - अलग कंडीशन के मुताबिक लिक्विडेशन  के मायने कुछ हद तक बदलते हैं. जैसे कि इन्वेस्टिंग की प्रोसेस में लिक्विडेशन  तब होता है जब किसी एसेट में इंवेस्टर अपनी पोजीशन बंद कर देता है. जब इन्वेस्टर या पोर्टफोलियो मैनेजर फंड को री-एलोकेट करना चाहते हैं या पोर्टफोलियो को री-बैलेंस करना चाहते हैं. कई बार नॉन-परफॉर्मिंग एसेट को भी लिक्विडेट करना जरूरी हो जाता है. 

कंपनियां कब करती हैं एसेट लिक्विडेशन 

कई कंपनियां बिना किसी पैसों की मजबूरी के भी ऐसा करती हैं ताकि कुछ पैसा समय से फ्री होता रहे. लेकिन ज्यादातर बिजनेस ऐसा दिवालिया हो जाने की कंडीशन में करते हैं. जब कंपनी अपने क्रेडिटर को पैसा देने में असमर्थ हो जाते हैं, बैंकरप्सी कोर्ट कंपनियों को आदेश देते हैं एसेट लिक्विडेशन  का. कुछ सिक्योर्ड क्रेडिटर ऐसे में कोलैटरल के तरह रखे एसेट पर कब्ज़ा करते हैं और उन्हें बेच अपना बकाया पैसा पूरा करते हैं. ऐसी शर्तें लोन देने से पहले ही मंजूर की जाती हैं.  सभी लिक्विडेशन इन्सोल्वेंसी के चलते नहीं होते. 

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