लाइफ इंश्योरेंस लेने वालों के लिए काम की खबर, प्रीमियम न देने पर पॉलिसी का होता है ये हाल
आज हम आपको बताएंगे कि लाइफ इंश्योरेंस पॉलिसी के प्रीमियम पेमेंट का ग्रेस पीरियड कितना होता है और क्या होता है जब आप ग्रेस पीरियड के दौरान प्रीमियम नहीं दे पाते हैं.
हम लोगों के जीवन में अक्सर कुछ ऐसी आर्थिक परेशानियां आती हैं जिस वजह से हम समय पर ईएमआई या इंश्योरेंस प्रीमियम का भुगतान नहीं कर पाते हैं. लाइफ इंश्योरेंस का प्रीमियम देना कभी-कभार याद भी नहीं रहता. चाहे आप अपने लाइफ इंश्योरेंस का प्रीमियम सालाना दे रहे हों या फिर हर महीने, प्रीमियम भरने के लिए आपको ग्रेस पीरियड दिया जाता है. प्रीमियम का भुगतान करने की आवृत्ति के हिसाब से इसका ग्रेस पीरियड तय किया जाता है. आज हम आपको बताएंगे कि लाइफ इंश्योरेंस पॉलिसी के प्रीमियम पेमेंट का ग्रेस पीरियड कितना होता है और क्या होता है जब आप ग्रेस पीरियड के दौरान प्रीमियम नहीं दे पाते हैं.
कितना होता है ग्रेस पीरियड
लाइफ इंश्योरेंस पॉलिसी के प्रीमियम पेमेंट का ग्रेस पीरियड इस बात पर निर्भर करता है कि आप कितने अंतराल पर भुगतान करते हैं. अगर आप अपने लाइफ इंश्योरेंस का प्रीमियम सालाना देते हैं तो आपको 30 दिनों का ग्रेस पीरियड मिलता है. वहीं, अगर आप हर महीने प्रीमियम देते हैं तो आपको 15 दिनों का ग्रेस पीरियड मिलता है. अगर आप ग्रेस पीरियड के भीतर अपना प्रीमियम भर देते हैं तो आपकी पॉलिसी बिना किसी बाधा के सारे बेनिफिट्स देती रहती है।
ग्रेस पीरियड में प्रीमियम न देने पर पॉलिसी हो जाती है लैप्स
अगर आप ग्रेस पीरियड के दौरान किन्हीं कारणों से अपने लाइफ इंश्योरेंस का प्रीमियम नहीं दे पाते हैं तो आपकी लैप्स हो जाती है. यहां ध्यान रखने वाली बात यह है कि अगर आपने टर्म इंश्योरेंस लिया हुआ है और उसका प्रीमियम समय पर नहीं भरते हैं तो पॉलिसी के सारे लाभ आपके हाथ से निकल जाते हैं. न आपको दिया गया प्रीमियम ही मिल पाता है और न ही लाइफ कवर.
यूलिप के मामले में ये है नियम
यूनिट लिंक्ड इंश्योरेंस प्लान्स (ULIP) के मामले में अगर आप पहले पांच वर्षों की अवधि के दौरान या लॉक-इन अवधि के दौरान प्रीमियम का भुगतान ग्रेस पीरियड के दौरान भी नहीं कर पाते हैं तो आपकी पॉलिसी लैप्स मानी जाएगी. आपको मिलने वाला बीमा का लाभ जाता रहेगा और निवेश की राशि भी आपको नहीं मिलेगी. आपके द्वारा जमा किए गए प्रीमियम को डिस्कंटिन्यूएंस फंड में ट्रांसफर कर दिया जाता है और इसका भुगतान पांच साल की लॉक-इन अवधि के बाद ही किया जा सकता है. अगर आप लॉक-इन अवधि के बाद प्रीमियम देना बंद कर देते हैं तो आपके पास पॉलिसी सरेंडर करने का विकल्प होता है. पॉलिसी सरेंडर करने के बाद आपको कुछ चार्जेज काट कर निवेशित राशि वापस कर दिया जाता है. आपके पास पॉलिसी को दोबार चालू करने यानी रिवाइवल का विकल्प भी होता है या फिर आप पॉलिसी पेड-अप करवा कर अपना बीमा चालू रख सकते हैं.
ट्रेडिशनल या पारंपरिक पॉलिसी पर लागू होते हैं ये नियम
ट्रेडिशनल या एंड्रोमेंट पॉलिसियों के मामले में शुरुआती वर्षों के दौरान प्रीमियम समय रहते न देने पर पॉलिसी लैप्स हो जाती है. हालांकि, जब आपकी पॉलिसी का कुछ सरेंडर वैल्यू बन जाता है यानी जब यह पेड-अप हो सकता है तो पॉलिसी लैप्स नहीं होती और घटे हुए लाइफ इंश्योरेंस कवर यानी सम एश्योर्ड के साथ जारी रहती है. ऐसा ही यूलिप के मामले में भी होता है. ध्यान रखिएगा कि ट्रेडिशनल लाइफ इंश्योरेंस प्लान को सरेंडर करने पर भारी पेनाल्टी लगाई जाती है.