Global investing for Indian Investors: बीते तीन दशक से भारत की औसत ग्रोथ शानदार रही है और यह एक इकोनॉमिक पावरहाउस के रूप में उभरा है. इस ग्रोथ ने भारतीय एंटरप्रेन्‍योर्स और निवेशकों दोनों के लिए निवेश और आगे बढ़ने के ढेरों अवसर पैदा किए हैं. हालांकि, निवेश का फैसला कभी भी आंख मूंदकर नहीं किया जा सकता है. इसका मतलब कि आपको बढ़ते वैश्विक अवसरों के बारे में मालूम होना चाहिए. पोर्टफोलियो को इस तरह से बनाने कोशिश करनी चाहिए कि उसे घरेलू झटकों से बचाते हुए ग्‍लोबल निवेश के अवसरों का फायदा उठाया जा सके. 

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हमने InCred वेल्‍थ के इन्‍वेस्‍टमेंट एंड फैमिली ऑफिस हेड योगेश कलवानी ने रीटेल निवेशकों के लिए ग्‍लोबल निवेश के अवसरों के बारे में बात की. उन्‍होंने ग्‍लोबल इन्‍वेस्टिंग की 4 बड़ी वजहें बताई हैं. 

1. दमदार तर्क

जब निवेश पोर्टफोलियो के लिए उपयुक्‍त फैसले लेने की बात आती है, तो यह जरूरी है कि आप निष्पक्ष तरीके से सभी अवसरों का आकलन करें. निश्चित तौर पर ग्‍लोबल निवेश आपके निवेश पोर्टफोलियो को बढ़त दे सकते हैं और इसकी बड़ी वजहें बताई गई हैं. 

2. बेंचमार्क से बेहतर रिटर्न जेनरेट करने का मौका

मार्केट कैपिटलाइजेशन के लिहाज से टॉप 500 ग्‍लोबल कंपनियों की लिस्‍ट में केवल 3 भारतीय कंपनियां है. इतनी ही कंपनियां MSCI वर्ल्ड इंडेक्स में भी शामिल हैं. नॉमिनल GDP के लिहाज से भारत का ग्‍लोबल जीडीपी में शेयर सिर्फ 3 फीसदी है. इसका मतलब कि भारतीय निवेशक 97 फीसदी ग्‍लोबल अवसरों से बाहर हैं. 

असल में, दुनिया की बड़ी और सबसे ज्‍यादा मुनाफे वाली कंपनियों के पास एक प्रॉफिट पूल है, जो कि भारतीय कंपनियों की तुलना में 8x-10x है. इसके अलावा, भविष्य में अहम रोल निभाने वाली कई ऐसी इनोवेटिव कंपनियां हैं, खासकर टेक्‍नोलॉजी और विज्ञान के क्षेत्र में, जो फिलहाल भारत में मौजूद नहीं हैं. इन अवसरों का फायदा लेना चाहिए. 

3. डायवर्सिफिकेशन के बेनेफिट्स बढ़ाना

हरेक इकोनॉमी पर घरेलू और ग्‍लोबल फैक्‍टर्स का असर होता है. घरेलू वजहें आमतौर पर इकोनॉमी में यूनिक होती है और वे ऐसे हालात पैदा करते हैं, जिसने इकोनॉमी में ग्रोथ और डेवलपमेंट दूसरी इकोनॉमी से परस्‍पसर मेल नहीं खाती हैं. अर्थव्‍यवस्‍थाओं का कोरिलेशन जितना कम रहेगा, आपको डायवर्सिफिकेशन का ज्‍यादा बेनेफिट होगा. किसी एक मार्केट में निगेटिव इम्‍पैक्‍ट का असर आपके निवेश पोर्टफोलियो पर ज्‍यादा नहीं होता है. 

 

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4. रुपये की कमजोरी से बचाव

आंकड़ों को देखें, तो यह पता चहता है कि भारत जैसी इमर्जिंग अर्थव्‍यवस्‍थाओं की करेंसी हमेशा ही यूएस, यूके जैसे विकसित देशों के मुकाबले कमजोर रहती हैं. जैसे, साल 2000 में 10 लाख डॉलर की वैल्‍यू 4.36 करोड़ रुपये थी. वहीं आज इसकी वैल्‍यू करीब 7.5 करोड़ रुपये है. आने वाले सालों में भी बड़ी करेंसीज के मुकाबले भारतीय रुपया कमजोर हो सकता है. महंगाई का अंतर इसकी बड़ी वजह होता है. 

2012 से औसत महंगाई का अंतर 4 फीसदी है. हाल के समय में अमेरिका में पर्याप्‍त लिक्विडिटी के चलते में यह अंतर कम है. लेकिन आने वाले सालों में इसमें दोबारा से अंतर बढ़ सकता है. ऐसे में डॉलर में मूल्यवर्ग के फाइनेंशियल एसेट्स रखने से आपको अपने निवेश पोर्टफोलियो के साथ-साथ विदेशी मुद्रा लायबिलिटीज दोनों को हेज करने में मदद मिल सकती है. 

 

(Disclaimer: The views/suggestions/advice expressed here in this article are solely by investment experts. Zee Business suggests its readers to consult with their investment advisers before making any financial decision.)