Rule of 72: किस स्कीम से कितने दिनों में डबल हो जाएगा आपका पैसा, इस एक फॉर्मूले से करें कैलकुलेशन
Rule of 72 को निवेश के नजरिए से बेहद इंर्पोटेंट माना जाता है. ज्यादातर एक्सपर्ट्स इसे एक सटीक फॉर्मूला मानते हैं, जिसके जरिए यह तय किया जाता है कि आपका निवेश कितने दिनों में डबल हो जाएगा.
जब भी निवेश करने की बात आती है, तो लोग बैंक, डाक घर, सरकारी बॉन्ड, शेयर मार्केट, म्यूचुअल फंड्स की पॉपुलर स्कीम्स में निवेश करते हैं. ज्यादातर लोग सुरक्षित निवेश करना चाहते हैं, जिसमें गारंटीड रिटर्न मिले. लेकिन सही मायने में आपको कहीं भी निवेश करने से पहले ये कैलकुलेशन जरूर कर लेना चाहिए कि कहां और कितने समय में आपका पैसा दोगुना, तिगुना या चौगुना हो रहा है. ऐसे में आपके लिए Rule of 72 बहुत काम का हो सकता है.
जानिए क्या है Rule of 72
Rule of 72 को निवेश के नजरिए से बेहद इंर्पोटेंट माना जाता है. ज्यादातर एक्सपर्ट्स इसे एक सटीक फॉर्मूला मानते हैं, जिसके जरिए यह तय किया जाता है कि आपका निवेश कितने दिनों में डबल हो जाएगा. किसी स्कीम में आपको सालाना कितना ब्याज मिलेगा, ये जानने के लिए आपको 72 से उस ब्याज को डिवाइड करना होगा. इससे आपको पता चल जाता है कि आपके पैसे कितने समय में डबल होंगे.
उदाहरण से समझें
आपने देखा होगा कि तमाम लोग अपनी जमा पूंजी को बैंक अकाउंट में ही पड़ा रहने देते हैं क्योंकि उनका मानना होता है कि इस पर सालाना ब्याज मिलता रहेगा. लेकिन सेविंग्स अकाउंट पर सिफ 4 प्रतिशत ब्याज ही मिलता है. अगर हम 72 को 4 से डिवाइड करने पर 18 योग निकलकर आएगा यानी 18 साल में आपका पैसा डबल होगा. वहीं फिक्स डिपॉजिट की बात करें तो ब्याज 5 से 6 प्रतिशत है. ऐसे ही स्टेट बैंक ऑफ इंडिया की 10 साल की फिक्स डिपॉजिट की ब्याज दरें 5.40% हैं. ऐसे में 72/5.40=13.33 साल, यानी 13.33 साल में आपकी रकम डबल हो जाएगी.
बेहतर स्कीम का चुनाव करने में होगी आसानी
इस फॉर्मूले के आधार पर आप ये समझ सकते हैं कि कौन सी स्कीम आपके लिए बेहतर है. जैसे उदाहरण में आपको समझाया गया, उसके हिसाब से देखा जाए तो फिक्स डिपॉजिट, सेविंग्स अकाउंट की तुलना में बेहतर ऑप्शन है. ऐसे ही अगर आप किसी अन्य स्कीम में निवेश कर रहे हैं, तो इस फॉर्मूले का इस्तेमाल करके आप अन्य स्कीम के साथ उसकी तुलना कर लें. इससे आपको ये अंदाजा लग जाएगा कि कौन सी स्कीम कितने समय में आपको पैसा डबल करके दे सकती है. ज्यादातर मामलों में ये नियम करीब-करीब सही आंकड़ा देता है. हालांकि, रिजल्ट में मामूली अंतर आ सकता है.