RBI MPC Meeting: क्यों समय-समय पर रेपो रेट बढ़ाता और घटाता है आरबीआई?
आरबीआई ने इस बार रेपो रेट में किसी तरह का बदलाव नहीं किया है. रेपो रेट 6.5 फीसदी पर बरकरार रखा है. इससे पहले आरबीआई ने रेपो रेट में लगातार 6 बार इजाफा किया था.जानिए आरबीआई बार-बार क्यों रेपो रेट बढ़ाता और घटाता है.
3 से 5 अप्रैल के बीच हुई RBI MPC Meeting का आज फैसला आ गया है. आरबीआई के फैसले ने इस बार लोगों को थोड़ी राहत दी है और रेपो रेट में किसी तरह का बदलाव नहीं किया गया है. यानी रेपो रेट पहले की तरह 6.5% ही रहेगा. रेपो रेट न बढ़ने से लोन भी महंगे नहीं होंगे और ईएमआई भी नहीं बढ़ेगी. बता दें कि बैंक ने मई 2022 से रेपो रेट को बढ़ाना शुरू किया था और अभी तक रेपो रेट में 250 बेसिस प्वाइंट का इजाफा कर चुका है. आइए आपको बताते हैं कि आखिर क्यों आरबीआई को बार-बार रेपो रेट को बढ़ाने और घटाने की जरूरत पड़ती है.
ये है रेपो रेट बढ़ाने और घटाने की वजह
रेपो रेट महंगाई से लड़ने का शक्तिशाली टूल है, जिसका समय समय पर आरबीआई स्थिति के हिसाब से इस्तेमाल करता है. जब महंगाई बहुत ज्यादा होती है तो आरबीआई इकोनॉमी में मनी फ्लो को कम करने की कोशिश करता है और रेपो रेट को बढ़ा देता है. आमतौर पर 0.50 या इससे कम की बढ़ोतरी की जाती है. लेकिन जब इकोनॉमी बुरे दौर से गुजरती है तो रिकवरी के लिए मनी फ्लो बढ़ाने की जरूरत पड़ती है और ऐसे में RBI रेपो रेट कम कर देता है.
रेपो रेट का असर
जब भी रेपो रेट बढ़ाया जाता है तो इससे लोन महंगे हो जाते हैं. इससे आम आदमी पर ईएमआई का बोझ बढ़ जाता है. लोन महंगे होने से इकोनॉमी में मनी फ्लो कम होता है. मनी फ्लो कम होगा तो डिमांड में कमी आती है और महंगाई घट जाती है. वहीं ये भी देखा जाता है कि रेपो रेट बढ़ने के बाद तमाम बैंक एफडी की ब्याज दरों में इजाफा कर देते हैं. बता दें रेपो रेट वो ब्याज दर होती है, जिस पर भारतीय रिजर्व बैंक ही ओर से अन्य बैंकों को लोन दिया जाता है. ऐसे में जब रिजर्व बैंक, अन्य बैंकों को लोन महंगी दरों पर देता है तो अन्य बैंक ग्राहकों के लिए भी ब्याज दर बढ़ा देते हैं.
हर दो महीने में होती है MPC मीटिंग
बता दें कि आरबीआई मॉनेटरी पॉलिसी कमिटी (MPC) की बैठक हर दो महीने में होती है. वैसे विशेष परिस्थिति में कमिटी कभी भी अपने अचानक लिए फैसले का ऐलान कर सकती है. मॉनेटरी पॉलिसी कमिटी या एमपीसी, महंगाई के टारगेट को हासिल करने के लिए जरूरी नीतिगत दर यानी रेपो रेट तय करता है.