Loan Against Insurance Policy: ट्रेडिशनल पॉलिसी और एंडोमेंट पॉलिसी में सेविंग कॉम्पोनेंट के साथ ही लाइफ कवर कॉम्पोनेंट भी मिलता है, इसलिए यह बैंक द्वारा एक्सेप्ट की जाती हैं. इंश्योरेंस पॉलिसी पर लोन लेने के लिए पॉलिसी की सरेंडर वैल्यू होना जरूरी है. Bankbazaar की मानें तो सरेंडर वैल्यू का 85 से 90% अमाउंट लोन के लिए सैंगक्शन किया जाता है. यूनिट-लिंक्ड इंश्योरेंस प्लान और टर्म इंश्योरेंस कवर आमतौर पर कोलैटरल के रूप में एक्सेप्ट नहीं किए जाते हैं. ज्यादातर मामलों में बीमाधारक को सिर्फ अपने प्रीमियम के साथ लिए गए लोन का ब्याज देना होता है.

सिर्फ चुनिंदा योजनाओं पर लोन 

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इंश्योरेंस पॉलिसी के एवज में लोन सिर्फ कुछ चुनिंदा पॉलिसी जैसे कि ट्रेडिशनल और एंडोमेंट पॉलिसी के एवज में ही मिलता है. इसके लिए पॉलिसी की सरेंडर वैल्यू होना जरूरी है. ध्यान रखें कि पॉलिसी के एवज में लोन लेने के लिए वेटिंग पीरियड भी होता है. पॉलिसी शुरू करने के लगभग 3 साल बाद ही आप इसके एवज में लोन ले सकते हैं.

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टर्म प्लान के अगेंस्ट नहीं मिलता लोन 

टर्म इंश्योरेंस प्लान के एवज में लोन नहीं दिया जाता है. हालांकि कुछ कंपनियां ULIP के एवज में लोन देती हैं, लेकिन ऐसी कंपनियों की संख्या काफी कम है.

सरेंडर वैल्यू 

सरेंडर वैल्यू वह राशि है जो कि अगर पॉलिसी होल्डर MATURITY के पहले पॉलिसी छोड़ देता है तो उसे दी जाती है. कम से कम 3 साल तक प्रीमियम देने के बाद ही पॉलिसी होल्डर सरेंडर वैल्यू का हकदार बनता है. जिसके एवज में आपको लोन मिल सकता है.

इन बातों का रखें ध्यान

1. इंश्योरेंस पॉलिसी आपको किसी भी तरह की फाइनेंशियल परेशानी से सुरक्षा देने के लिए होती है, इसलिए इमरजेंसी में ही इसके एवज में लोन लेना बेहतर है.

2. पॉलिसी लेने से पहले पॉलिसी होल्डर को देखना चाहिए क्या उसके एवज में उसे लोन मिल सकता है या नहीं, जब आप लंबे समय तक प्रीमियम भरते हैं तो लोन की रकम भी ज्यादा हो सकती है.

3. प्रीमियम के साथ लोन का ब्याज समय पर अदा करना बेहद जरूरी है. ऐसा न करने पर पॉलिसी के तहत मिलने वाला कवर का फायदा आप नहीं उठा पाएंगे.