डायबटीज जैसी बीमारियां नहीं बताने पर भी बीमा कंपनियों को देना होगा क्लेम
अक्सर सुनने में आता है कि बीमा लेते समय डायबिटीज जैसी बीमारियों के बारे में नहीं बताने पर बीमा कंपनियां क्लेम नहीं देती हैं. इस बारे में अब एक शीर्ष उपभोक्ता आयोग ने साफ किया है कि बीमा कंपनियां सिर्फ इस आधार पर क्लेम देने से इनकार नहीं कर सकती हैं.
अक्सर सुनने में आता है कि बीमा लेते समय डायबिटीज जैसी बीमारियों के बारे में नहीं बताने पर बीमा कंपनियां क्लेम नहीं देती हैं. इस बारे में अब एक शीर्ष उपभोक्ता आयोग ने साफ किया है कि बीमा कंपनियां सिर्फ इस आधार पर क्लेम देने से इनकार नहीं कर सकती हैं. राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग (एनसीडीआरसी) ने एलआईसी इंडिया से कहा है कि वह डायबिटीज की बीमारी से पीड़ित व्यक्ति के आश्रितों को पांच लाख रुपये दे और ये साफ किया है कि कॉमन लाइफस्टाइल बीमारियों के आधार पर बीमा क्लेम देने से इनकार नहीं किया जा सकता.
एनसीडीआरसी ने पंजाब राज्य उपभोक्ता आयोग के आदेश को पटलते हुए भारतीय जीवन बीमा निगम की चंड़ीगढ़ शाखा से कहा कि वो पंजाब की निवासी नीलम चोपड़ा को पूरी क्षतिपूर्ति राशि के साथ ही 25,000 रुपये अतिरिक्त और मुकदमें पर खर्च हुए 5000 रुपये 45 दिनों के भीतर दे.
नीलम गुप्ता के पति डायबटीज से पीड़ित थे, और उन्होंने 2003 में एलआईसी से जीवन बीमा पॉलिसी ली. प्रोपोजल फार्म भरते समय उन्होंने ये नहीं बताया था कि उन्हें डायबटीज है. दिल का दौरा पड़ने के चलते 2004 में उनकी मृत्यु हो गई. पति की मृत्यु के बाद नीलम ने पॉलिस का क्लेम लेना चाहा तो कंपनी ने इसे रिजेक्ट कर दिया. कंपनी ने कहा कि पॉलिसी लेते समय उन्होंने बीमारी के बारे में नहीं बताया था और ये बीमारी उन्हें पहले से थी.
आयोग ने कहा, 'मृत्यु 'कार्डियो स्पिरेटरी अरेस्ट' के चलते हुई, जो मृत्यु से छह महीने पहले ही शुरू हुई. इसलिए साफ है कि ये बीमारी उस समय नहीं था जब प्रपोजल फार्म भरा गया. हालांकि डायबटीज की बीमारी पहले से मौजूद थी, लेकिन प्रपोजल फार्म भरते समय ये कंट्रोल में थी. इसके अलावा जहां तक डायबटीज जैसी लाइफस्टाइल से जुड़ी बीमारियों को नहीं बताने की बात है तो सिर्फ इस आधार पर उन्हें क्लेम के अधिकार से पूरी तरह वंचित नहीं किया जा सकता.'
शीर्ष आयोग ने हालांकि कहा कि इस आधार पर किसी व्यक्ति को ये अधिकार नहीं मिल जाता कि वो बीमा लेते समय डायबटीज जैसी सूचना को न दे और ऐसा करने पर बीमाधारक के आश्रित को इसके नतीजे भुगतने पड़ सकते हैं और हो सकता है कि उनके क्लेम की राशि घटा दी जाए. आयोग ने कहा कि यदि पहले से मौजूद किसी बीमारी के बारे में नहीं बताया गया है और उस बीमारी के कारण मौत नहीं हुई है या मौत के कारणों से उसका कोई सीधा संबंध नहीं है, तो ऐसे में क्लेम के दावे से पूरी तरह वंचित नहीं किया जा सकता.