Investment के मामले में आपकी भी हैं ये शर्तें तो Mutual Funds में कभी न करें निवेश
अगर आपने अब तक इसमें निवेश नहीं किया है और अब करना चाहते हैं तो आपको म्यूचुअल फंड से जुड़ी कुछ अन्य बातों को भी अच्छे से समझ लेना चाहिए. यहां जानिए ऐसे 3 तरह के लोगों के बारे में जिन्हें म्यूचुअल फंड्स में इस्वेस्ट करने से बचना चाहिए.
म्यूचुअल फंड (Mutual Funds) आज के समय में काफी पॉपुलर स्कीम बन चुकी है. इसका कारण म्यूचुअल फंड्स के तमाम फीचर्स हैं. सबसे पहला फायदा तो ये है कि छोटी इनकम वाले भी इस स्कीम में निवेश कर सकते हैं क्योंकि इसमें मात्र 500 रुपए से भी निवेश शुरू किया जा सकता है और इनकम बढ़ने के साथ SIP में निवेश को बढ़ाया जा सकता है. आप इसमें कितनी भी रकम निवेश कर सकते हैं और एक साथ कितनी भी SIP चला सकते हैं. SIP में कोई मैच्योरिटी डेट नहीं होती, आप जब चाहे इसको बंद कर सकते हैं और पैसों का इस्तेमाल कर सकते हैं. वेल्थ क्रिएशन के लिहाज से इस स्कीम को काफी अच्छा माना जाता है. इसका औसत रिटर्न 12 फीसदी माना जाता है जो आज के समय में किसी भी स्कीम से बेहतर है. कंपाउंडिंग का फायदा मिलने के कारण लॉन्ग टर्म में इस स्कीम से अच्छा खासा फंड बनाया जा सकता है.
ये तो रहे SIP Mutual Funds के फायदे. लेकिन अगर आपने अब तक इसमें निवेश नहीं किया है और अब करना चाहते हैं तो आपको म्यूचुअल फंड से जुड़ी कुछ अन्य बातों को भी अच्छे से समझ लेना चाहिए. साथ ही निवेश करने से पहले खुद को थोड़ा जोखिम लेने के लिए तैयार कर लेना चाहिए क्योंकि मार्केट लिंक्ड स्कीम होने के कारण इसमें रिटर्न की गारंटी नहीं होती. यहां जानिए ऐसे 3 तरह के लोगों के बारे में जिन्हें म्यूचुअल फंड्स में इस्वेस्ट करने से बचना चाहिए.
अगर आप एक्स्ट्रा चार्ज देने के लिए राजी नहीं
म्यूचुअल फंड को संभालने के लिए आपके निवेश से Expense Ratio के रूप में चार्ज लगता है. दरअसल AMC यानि कि एसेट मैनेजमेंट कंपनी, फंड डिस्ट्रीब्यूशन और मार्केटिंग का खर्चा उठाती हैं, साथ ही AMC, म्यूचुअल फंड के ट्रांसफर कस्टोडियन, लीगल और ऑडिटिंग जैसे खर्च भी उठाती है. ऐसे सभी एक्सपेंस म्यूच्युअल फंड की यूनिट खरीदने वाले इन्वेस्टर्स से वसूले जाते हैं.
ये एक्सपेंस रेश्यो एक बार में नहीं वसूले जाते हैं. फंड हाउस अपने हर दिन के खर्चे को कैलकुलेट करते हैं, जिसके बाद इसे डेली बेसिस पर निकाला जाता है. एनुअल एक्सपेंस रेश्यो, साल के ट्रेडिंग डेज में डिवाइड होते हैं. जिन्हें टोटल एनवी पर लगाया जाता है. एक्सपेंस रेश्यो से यह पता चलता है कि आपके इन्वेस्टमेंट पोर्टफोलियो से आपका म्यूच्युअल फंड मैनेजमेंट आपसे कितनी फीस ले रहा है. कई बार शुरू में ये चार्ज कम होता है, लेकिन बाद में यह ज्यादा हो जाता है. अगर आप निवेश में कोई चार्ज नहीं देना चाहते तो आपको म्यूचुअल फंड में निवेश नहीं करना चाहिए.
लंबे टाइम तक निवेश ना करना हो
ऐसा नहीं कि म्यूचुअल फंड्स में आप शॉर्ट टर्म के लिए निवेश नहीं कर सकते, लेकिन अगर आप MF के जरिए मोटा फंड तैयार करना चाहते हैं तो आपको लॉन्ग टर्म निवेश करना चाहिए. ज्यादातर आर्थिक मामलों के विशेषज्ञों का मानना है कि म्यूचुअल फंड में जब आप लंबे समय के लिए निवेश करते हैं तो आपको कंपाउंडिंग का अच्छा खासा फायदा होता है और आप आसानी से वेल्थ क्रिएशन कर पाते हैं. ऐसे में अगर आप लंबे समय तक के लिए निवेश नहीं कर सकते हैं, तो म्यूचुअल फंड की बजाय किसी और ऑप्शन पर भी जा सकते हैं.
टैक्स नहीं देना चाहते
जब आप किसी अन्य फंड में निवेश करते हैं तो आपको इनकम टैक्स में छूट मिलती है. लेकिन म्यूचुअल फंड्स के साथ ऐसा नहीं है. म्यूचुअल फंड के रिटर्न पर भी टैक्स लगता है, जिससे आपका मुनाफा कुछ प्रतिशत से घट जाता है. अगर आप इसके लिए तैयार नहीं हैं, तो म्यूचुअल फंड में निवेश न करें. हालांकि इसकी ELSS स्कीम में टैक्स बेनिफिट्स शामिल हैं.
(डिस्क्लेमर: म्यूचुअल फंड में निवेश बाजार के जोखिमों के अधीन हैं. निवेश से पहले स्वयं पड़ताल कर लें या अपने एडवाइजर से परामर्श कर लें.)