Mutual Fund Tips: जैसा कि हम जानते हैं, म्यूचुअल फंड बाजार जोखिम के अधीन है. ऐसे में जरूरी नहीं है कि आपका पोर्टफोलियो हमेशा पॉजिटिव रिटर्न दे. इस बात की पूरी संभावना है कि आपको अपने निवेश पर निगेटिव रिटर्न मिल रहा हो. अब सवाल उठता है कि अगर आपका म्यूचुअल फंड पोर्टफोलियो निगेटिव रिटर्न दे रहा है तो क्या स्ट्रैटेजी (Mutual Fund Exit Startegy) अपनानी चाहिए? कब फंड स्विच करना है और कब किसी फंड से निकलना है, इन सारे सवालों का जवाब दे रहे हैं कि ऑप्टिमा मनी के मैनेजिंग डायरेक्टर पंकज मठपाल और मनीफ्रंट के सीईओ मोहित गांग.

1>>फंड मैनेजर के एक्शन पर दें रिएक्शन

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म्यूचुअल फंड को फंड मैनेजर मैनेज करते हैं तो प्रफेशनल्स होते हैं. ऐसे में अगर कोई फंड खराब प्रदर्शन कर रहा है तो फंड मैनेजर खुद फंड में बदलाव करते हैं. ऐसे में जब तक फंड मैनेजर की स्ट्रैटेजी समझ नहीं जाते हैं, तब तक बने रहने की सलाह होगी. 

2>> फंड से निकलने के बाद होती है नई तेजी की शुरुआत

कई बार ऐसा होता है जब आप एग्जिट का फैसला करते हैं, उसके बाद फंड में नई तेजी की शुरुआत होती है. किसी भी फंड से निकलने से पहले अपने फाइनेंशियल एडवाइजर की सलाह जरूर लें. यह संभव है कि बाजार के उतार-चढ़ाव के अनुसार आपका पोर्टफोलियो पॉजिटिव और निगेटिव रिटर्न दे रहा हो. ऐसे में एग्जिट का फैसला सोच-समझ कर करें.

3>> फंड मैनेजर के बदलने पर निकल सकते हैं

आपने जिस म्यूचुअल फंड में निवेश किया और उसका फंडामेंटल बदल गया तो नुकसान पर ही निकल जाने की सलाह होगी. अगर फंड मैनेजर बदल रहा है तो भी निकला जा सकता है. किसी भी असेट मैनेजमेंट कंपनी के लिए फंड मैनेजर का रोल बहुत अहम होता है. निवेशक उसकी साख और प्रदर्शन पर निवेश करते हैं. ऐसे में फंड मैनेजर का बदलना बड़ी घटना है.

4>> AMC के मर्जर पर निकलने की सलाह होगी

अगर किसी असेट मैनेजमेंट कंपनी का मर्जर हो रहा है तो फंड से निकला जा सकता है. फंड का रोलिंग रिटर्न देखकर रिडेम्पशन पर फैसला लेना चाहिए. इसके अलावा अपने फंड की बाकी फंड से और बेंचमार्क से तुलना करें. एक ही AMC के दूसरे फंड में जाने पर भी टैक्स लगेगा. ऐसे में LTCG, लॉन्ग टर्म या शॉर्ट कैपिटल लॉस को आगे सेट-ऑफ किया जा सकता है. किसी भी फंड से निकलने पर कैपिटल गेन पर जो टैक्स लगता है उसे कम से कम करने की कोशिश करें. इससे रिटर्न ज्यादा मिलेगा.

5>> अधिक फंड में निवेशित हैं तो कुछ से निकलने की सलाह होगी

अपने पोर्टफोलियो में अधिकतम 7-10 फंड को ही शामिल करें. आपके फंड का एक्सपोजर हर मार्केट कैप में होना चाहिए. इससे रिटर्न और रिस्क का बैलेंस बना रहेगा. इक्विटी, डेट और हाइब्रिड फंड में निवेश करें. साथ ही अपने रिस्क प्रोफाइल के आधार पर ही फंड सलेक्ट करें. पोर्टफोलियो की री-बैलेंसिंग जरूरी है. लॉन्ग टर्म में 60:40 के अनुपात में निवेश किया जा सकता है. इक्विटी में 60 फीसदी और डेट में 40 फीसदी निवेश करें. इससे रिस्क और रिटर्न दोनों कवर होगा. अगर इस स्ट्रैटेजी के आधार पर कोई फंड सुटेबल नहीं है तो उससे निकला जा सकता है.