Money Guru: जब आप निवेश करते हैं तो इसकी स्ट्रैटेजी स्मार्ट होनी जरूरी है. आपके पोर्टफोलियो में एसेट एलोकेशन (Asset Allocation) बेहद मायने रखता है. सही एसेट लोकेशन आपकी बेहतर कमाई करा सकता है. जानकारों का कहना है कि निवेश में रिस्क और रिटर्न दोनों में बैलेंस (balance between risk and return) होना चाहिए. आपको इक्विटी (Equity),डेट (Debt) और गोल्ड (Gold) का तालमेल बिठाकर निवेश करना चाहिए. पोर्टफोलियो में एसेट क्लास का बैलेंस कैसे बनाएं? ऐसे ही कुछ सवालों का जवाब ऑप्टिमा मनी के एमडी पंकज मठपाल और सर्टिफाइड फाइनेंशियल प्लानर पूनम रुंगटा से समझ लेते हैं.

एसेट एलोकेशन स्ट्रैटेजी

COMMERCIAL BREAK
SCROLL TO CONTINUE READING

निवेश को अलग-अलग असेट क्लास में बांटना

रिस्क कंट्रोल का बेहतर जरिया है असेट एलोकेशन

हर असेट क्लास पर बदलावों का अलग-अलग असर

महंगाई, अनिश्चित बाजार, ब्याज दरों असर निवेश पर

गिरते बाजार में अगर इक्विटी गिरेगा तो सोना चढ़ेगा

ब्याज दरों में गिरावट का डेट पर असर

ग्रोथ ओरिएंटेड-इक्विटी और रियल एस्टेट

डिफेंस ओरिएंटेड-डेट और कमोडिटी

एसेट एलोकेशन (Asset Allocation) का आधार

-लक्ष्य

-निवेश अवधि

-जोखिम क्षमता

-लिक्विडिटी

एसेट एलोकेशन

एसेट क्लास                   3 साल का रिटर्न                     रिस्क फैक्टर

स्टॉक                              10-18%                              15%

इक्विटी MF                      12-14%                              13%

PMS                             14-30%                                15-18%

डेट MF                            5-7%                                 1.5%

FD                                  3-6%                                 NIL

PPF                                   7%                                   NIL

गोल्ड                              8-12%                                  7-9%

एसेट एलोकेशन के तरीके

-स्ट्रैटजिक

-डायनमिक

-टैक्टिकल

स्ट्रैटजिक एसेट एलोकेशन

निवेश करो,भूल जाओ की स्ट्रैटेजी पर आधारित

एक बार एसेट एलोकेशन तय कर लेते हैं

लंबे समय तक उसी एलोकेशन (Asset Allocation) में बने रहते हैं

मार्केट वैल्युएशन बदलने एसेट एलोकेशन बदल सकता है

स्ट्रैटेजिक लंबी अवधि की एसेट एलोकेशन स्ट्रैटेजी

टैक्टिकल एसेट एलोकेशन

एसेट एलोकेशन की मॉडरेट एक्टिव स्ट्रैटेजी

बीच-बीच में बदलाव करते रहते हैं

छोटी अवधि में किसी बदलावों का फायदा ले सकते हैं

लंबी अवधि के निर्धारित एलोकेशन (Asset Allocation) में बने रहने की कोशिश

डायनमिक एसेट एलोकेशन

एसेट एलोकेशन की एग्रेसिव स्ट्रैटेजी

किसी एक निश्चित एलोकेशन पर बने निर्भर नहीं रहते

बाजार की चाल को देखते एलोकेशन में बदलाव करते हैं

माइक्रो लेवल के बदलावों पर स्ट्रैटेजी

डायनमिक एसेट एलोकेशन (Asset Allocation) के लिए प्रोफेशनल की मदद लें

एसेट एलोकेशन के फायदे

-डायवर्सिफिकेशन से जोखिम मैनेज करना

-उतार-चढ़ाव में भी बेहतर रिटर्न कमाना

-बार-बार रीबैलेंसिंग से बचाव

हाइब्रिड फंड में एसेट एलोकेशन (किस निवेशक के लिए क्या सही)

हाइब्रिड फंड                     इक्विटी                     डेट

कंसर्वेटिव                         10-25%                  75-90%

अग्रेसिव                            65-80%                  20-35%

बैलेंस्ड                               40-60%                  40-60%

मल्टी असेट                        65-80%                 10-35%

इक्विटी सेविंग्स                    10-50%                  40-90%

डायनमिक असेट एलोकेशन

ओपन एंडेड फंड होते हैं

बाजार की गिरावट को मैनेज करना खासियत

इक्विटी में 30-80% का निवेश, बाकी डेट में

इक्विटी-डेट में एलोकेशन घटा-बढ़ा सकते हैं

फंड वैल्युएशन बेस्ड, ट्रेंड बेस्ड मॉडल पर काम करता है

बाजार सस्ता तो शेयरों में ज्यादा निवेश

बाजार महंगा तो इक्विटी में निवेश कम कर देगा

बैलेंस्ड एडवांटेज फंड के नाम से भी जाने जाते हैं

टैक्स देनदारी इक्विटी फंड्स के समान होती हैं

मल्टी एसेट फंड

कम से कम 3 एसेट क्लास में निवेश

हर कैटेगरी में कम से कम 10% निवेश

इक्विटी-डेट के साथ-साथ गोल्ड में भी एक्सपोजर

मल्टी असेट अलोकेशन फंड का 65% निवेश इक्विटी में

टैक्सेशन के लिए इक्विटी कैटेगरी में गिने जाते हैं

एसेट क्लास और रिस्क मैनेजमेंट ?

इक्विटी में निवेश पूंजी बढ़ाने में मदद करता है

डेट में निवेश स्थिर रिटर्न प्रदान करता है

गोल्ड महंगाई के खिलाफ सुरक्षित निवेश का विकल्प

REIT,InvIT उपज बढ़ाने में मदद करता है

मल्टी असेट फंड-कहां-कहां निवेश?

-इक्विटी

-डेट

-गोल्ड

-REIT

-InvIT

रीबैलेंसिंग-कितनी बार?

एसेट एलोकेशन बिगड़ने पर रीबैलेंसिंग करें

पोर्टफोलियो बार-बार रीबैलेंस नहीं करें

सिर्फ बाजार की उथल-पुथल पर रीबैलेंस नहीं करें

एक ही कैटेगरी के फंड को रीबैलेंस नहीं करें

अच्छे प्रदर्शन वाले फंड रीडीम नहीं करें

छोटी अवधि के प्रदर्शन पर रीबैलेंस नहीं करें.