दुनियाभर में करीब 80 फीसदी विरासत वाली वित्तीय कंपनियों का कारोबार या तो ठप हो जाएगा, या तो वे औने-पौने दाम पर कारोबार करेगी और फिर सिर्फ औपचारिक रूप से मौजूद होंगी, क्योंकि वे 2030 तक प्रतिस्पर्धी नहीं रह पाएंगी. गार्टनर ने सोमवार को यह जानकारी दी है। मार्केट रिसर्च फर्म ने कहा कि ये कंपनियां प्रासंगिक बने रहने के लिए परिश्रम करेंगी, क्योंकि फिनटेक कंपनियों और गैर-पारंपरिक कंपनियों की अधिकतम बाजार हिस्सेदारी होगी, क्योंकि वे प्रौद्योगिकी का प्रयोग कर उद्योग के आर्थिक और व्यवसायिक मॉडल को बदल कर रख देंगी. 

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गार्टनर के उपाध्यक्ष और मशहूर विश्लेषक डेविड फर्लोगर ने कहा, "सुस्थापित वित्तीय सेवा प्रदाताओं को तेजी से डिजिटल कारोबार में बदलना होगा, ताकि वह अपनी सेवाओं को अन्य डिजिटल प्लेटफॉर्म्स पर भी बेच सकें." उन्होंने चेतावनी दी कि बैंक अगर खुद में बदलाव नहीं किए और 20वीं सदी के कारोबारी और परिचालन मॉडल पर ही चलते रहे, तो उनके फेल होने का खतरा बढ़ता जा रहा है. 

गार्टनर के 2018 सीईओ (मुख्य कार्यकारी अधिकारी) सर्वेक्षण के मुताबिक, जहां वित्तीय सेवाएं मुहैया करानेवाली कंपनियों के सीईओ राजस्व बढ़ाने के उपाय में जुटे हैं. वहीं, दक्षता और उत्पादन सुधार की तरफ भी उनका ध्यान बढ़ा है.

गार्टनर के प्रैक्टिस उपाध्यक्ष पीट रेडशॉ ने कहा, "वित्तीय सेवा उद्योग का भविष्य तेजी से भारहीन हो रहा है, अपनी उपस्थिति बनाए रखने के लिए अब भौतिक संपत्तियों को बनाए रखने की कोई जरूरत नहीं है. इससे उद्योग में डिजिटल प्रतिस्पर्धा काफी अधिक बढ़ गई है."

(इनपुट एजेंसी से)