आयकर रिटर्न (ITR) दाखिल करने के लिए इस बार हो सकता है आपको महज 20 दिन ही मिलें. दरअसल, इस बार आपको अपने नियोक्ता से फॉर्म 16 मिलने में देरी हो सकती है, क्योंकि नियोक्ता को जो फॉर्म सरकार को जमा करना होता है उसमें कुछ बदलाव किए गए हैं. सरकार ने भी इसी बदलाव के चलते नियोक्ताओं के लिए कर्मचारियों को दिए जाने वाले फॉर्म 16 जारी करने के लिए समयसीमा में 25 दिनों की बढ़ोतरी कर दी है. मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, यह समयसीमा अब 15 जून से बढ़ाकर 10 जुलाई कर दी है. इस बार किए गए बदलाव की वजह से सभी को आईटीआर दाखिल करने में कम समय मिलने की संभावना है. 

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ई-रिफंड सिर्फ इन्हीं को मिलेगा

नए बदलाव के तहत ई-रिफंड सिर्फ उन्हीं को मिलेगा जिनका बैंक अकाउंट ई-फाइलिंग पोर्टल पर वेरिफाइड है और करदाता के पैन से लिंक्ड होगा. दरअसल, आयकर विभाग ने 1 मार्च 2019 से सिर्फ ई-रिफंड ही जारी करने का फैसला किया है. डिजिटल रिफंड इसमें लगने वाले समय को कम करेगा और आपको पैसे जल्द मिल सकेंगे. साथ ही इस कदम से टैक्स अधिकारियों के बीच काम में पारदर्शिता भी आएगी. अगर आपने पैन अब तक लिंक नहीं कराया है तो इसे जल्द करा लें, अन्यथा परेशानी हो सकती है.  

फॉर्म 16 मिलने में होगी देरी

इस साल आपको अपना फॉर्म 16 मिलने में देरी होगी. इसके पीछे वजह यह है कि जब नियोक्ता आपसे टीडीएस काटते हैं, तो उन्हें इसे सरकार को जमा करना होता है और इसके लिए फॉर्म 24Q जमा करना होता है. मीडिया रिपोर्ट में कहा गया है कि फॉर्म 24Q और फॉर्म 16 के पैटर्न में हाल ही में बदलाव किया गया है. सरकार ने इसलिए फॉर्म 24Q को जमा करने की नियत तारीख को 31 मई, 2019 से बढ़ाकर 30 जून, 2019 तक कर दिया है और नियोक्ताओं को कर्मचारियों के फॉर्म 16 जारी करने की तारीख भी 15 जून से बढ़ाकर 10 जुलाई कर दी गई है. इससे वेतनभोगी करदाताओं को अपना रिटर्न दाखिल करने के लिए महज 20 दिन का समय मिलेगा. आईटीआर दाखिल करने की समयसीमा 31 जुलाई होती है. 

धारा 80GGA के लिए नया टैब

इस साल फॉर्म आईटीआर-1 में 80GGA एक नया सेक्शन जोड़ा गया है. अब अगर आप वैज्ञानिक अनुसंधान या ग्रामीण विकास के लिए दान में कटौती का दावा करना चाहते हैं, तो आपको अब अतिरिक्त विवरण प्रस्तुत करना होगा. आपको नाम और पते के संबंध में पूरा ब्योरा दर्ज करना होगा, और किए गए पैन का पैन, दान की राशि और कटौती के लिए पात्र राशि आदि का उल्लेख करना होगा. पहले, करदाताओं के बीच दावा करने की एक सामान्य प्रवृत्ति थी. इस बदलाव से झूठे दावों को खारिज करने में आयकर विभाग को मदद मिलेगी.