दिल्ली के रहने वाले संजीत ने एक निजी कंपनी से बीमा पॉलिसी ली थी. इस पॉलिसी में 6 साल लगातार प्रीमियम देना था और पॉलिसी 20 साल बाद मैच्योर होनी थी. संजीत ने चार साल तक नियमित प्रीमियम अदा किया, लेकिन अचानक नौकरी छूट जाने से वह बीमा प्रीमियम को जारी नहीं रख सका. लगभग डेढ़-दो साल मुफलिसी में समय काटने के बाद संजीत के दिन फिर से पलटे और उसने एक अच्छी नौकरी ज्वाइन कर ली. इस चक्कर में संजीत करीब 3 साल तक प्रीमियम जमा नहीं कर पाया. 

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जब संजीत की स्थिति अच्छी हो गई, तो उसने बीमा कंपनी से संपर्क किया और अपनी लैप्स पड़ी पॉलिसी को फिर से शुरू करने की मांग की. लेकिन बीमा कंपनी ने संजीत को बताया कि लगातार तीन साल प्रीमियम जमा नहीं किए जाने से उनकी पॉलिसी टर्मिनेट हो गई है. और अब वह इसे रिवाइव नहीं करा सकते. इतना ही नहीं टर्मिनेट होने के बाद संजीत को जो बीमा कंपनी ने भुगतान किया वह उनके द्वारा जमा कराए प्रीमियम से काफी कम था. इस तरह संजीत खुद को ठगा सा महसूस करने लगे. बीमा कंपनी ने बताया कि नियमानुसार दो साल के अंदर पॉलिसी रिवाइव नहीं कराने पर पॉलिसी टर्मिनेट हो जाती है.

IRDAI ने लिए तैयार कि ये प्रस्ताव

लेकिन अब ऐसा नहीं होगा. आईआरडीएआई ने पॉलिसी धारक को अपनी पॉलिसी को रिवाइव कराने का समय 2 साल के स्थान पर 5 साल किए जाने का प्रस्ताव रखा है. साथी ही इंश्योरेंस रेग्युलेटरी ऐंड डिवेलपमेंट अथॉरिटी ऑफ इंडिया यानी IRDAI ने गारंटीड सरेंडर वैल्यू को भी 3 साल से घटाकर 2 साल करने का प्रस्ताव रखा है. ये दोनों ही फैसले बीमा धारकों के हित में लिए गए हैं.  

एक अन्य प्रस्ताव के तहत नियमित प्रीमियम भुगतान वाली पॉलिसी पर मिनिमम डेथ बेनिफिट को बढ़ाकर 7 गुना और वन टाइम प्रीमियम पॉलिसी पर डेथ बेनिफिट को 1.25 गुना करने का प्रस्ताव रखा है. अभी तक यह 5 से 10 गुना था.  

आईआरडीए ने ये प्रस्ताव तैयार करके सभी पक्षों की राय के लिए अगल-अलग विभागों को भेज दिए हैं.