Fixed deposits vs Liquid Funds: कम रिस्क में ज्यादा मुनाफा! कहां है आपका ज्यादा फायदा, समझें फर्क और फिर चुनें
Fixed Deposits and Liquid Funds: हम यहां आपको फिक्स्ड डिपॉजिट और लिक्विड फंड के फीचर्स और इनके बीच अंतर बताएंगे, ताकि आप इन लो-रिस्क इन्वेस्टमेंट टूल्स के बारे में जान सकें और बेहतर फैसला कर सकें.
Low Risk Investment: कम रिस्क वाले इन्वेस्टमेंट ऑप्शन ढूंढने वाले निवेशकों के लिए बैंक फिक्स्ड डिपॉजिट सबसे ज्यादा सही माने जाते हैं. लो रिस्क पर निवेश करना हो तो इक्विटी से बेहतर फिक्स्ड डिपॉजिट हैं. लेकिन अगर आपको कम रिस्क के साथ बैंक एफडी को आउटपरफॉर्म करने वाला ऑप्शन चाहिए तो आप लिक्विड फंड के बारे में सोच सकते हैं. लिक्विड फंड एक तरह से म्यूचुअल फंड में ही निवेश होते हैं, लेकिन एफडी की ही तरह कम रिस्क वाले होते हैं. इनमें आपका पैसा फिक्स्ड इनकम सिक्योरिटीज जैसे- कॉमर्शियल पेपर, सरकारी प्रतिभूति, बॉन्ड या ट्रेजरी बिल में लगाया जाता है. अगर आप शॉर्ट टर्म के गेन के लिए कहीं पैसा पार्क करना चाहते हैं तो ये भी अच्छा विकल्प है. हम यहां आपको फिक्स्ड डिपॉजिट और लिक्विड फंड के फीचर्स और इनके बीच अंतर बताएंगे, ताकि आप इन लो-रिस्क इन्वेस्टमेंट टूल्स के बारे में जान सकें और बेहतर फैसला कर सकें.
फिक्स्ड डिपॉजिट और लिक्विड फंड (Fixed Deposits and Liquid Funds)
अगर आपके पास कुछ एक्स्ट्रा पैसा बचा है, जिसे आप कहीं रिटर्न के लिए पार्क करना चाहते हैं. या फिर आपको कुछ महीनों बाद इस फंड की जरूरत है और आप अभी इसे खुला नहीं रखना चाहते हैं तो आप फिक्स्ड डिपॉजिट या लिक्विड फंड का ऑप्शन चुन सकते हैं.
फिक्स्ड डिपॉजिट ऐसा साधन है जो एक निश्चित अवधि में एक फिक्स्ड इंटरेस्ट रेट पर ब्याज देता है. बैंक और गैर बैंकिंग वित्तीय संस्थान आपको ये प्लान ऑफर करते हैं. बैंक में पैसा रखने से बेहतर आप इसकी एफडी करा लें, सेविंग्स अकाउंट पर मिलने वाले इंटरेस्ट रेट से ज्यादा इंटरेस्ट आपको एफडी पर मिलेगा.
अगर नहीं, तो आप लिक्विड फंड का ऑप्शन चूज़ कर सकते हैं. यह शॉर्ट टर्म गेन के लिए अच्छा ऑप्शन है. यह फिक्स्ड इनकम सिक्योरिटी में पैसा लगाने वाला म्यूचुअल फंड है. ये आपको कैपिटल प्रोटेक्शन और लिक्विडिटी ऑफर करता है. इसपर भी सेविंग्स अकाउंट से बेहतर इंटरेस्ट मिलता है. आइए इन दोनों के बीच के फर्क को समझें.
फिक्स्ड डिपॉजिट और लिक्विड फंड के बीच फर्क (Comparison Between Fixed Deposits and Liquid Funds)
फीचर्स | फिक्स्ड डिपॉजिट | लिक्विड फंड |
रिस्क | ये सबसे ज्यादा सुरक्षित निवेश माने जाते हैं. इनमें सबसे कम रिस्क होता है. आमतौर पर आपको एफडी के अमाउंट और इसपर मिलने वाले ब्याज पर 5 लाख रुपये तक इंश्योरेंस कवर भी मिलता है. | लिक्विड म्यूचुअल फंड्स यूं तो फिक्स्ड इनकम सिक्योरिटीज़ में पैसा डालते हैं, लेकिन इनपर भी शेयर बाजार और अर्थव्यवस्था के उतार-चढ़ाव का असर होता है, ऐसे में ये फिक्स्ड डिपॉजिट के मुकाबले थोड़ा रिस्क रखते हैं. |
रिटर्न | एफडी पर आपको जो ब्याज मिलता है, वो आरबीआई की ओर से तय किए जाने वाले पॉलिसी रेट से प्रभावित होता है. इस पर मिलने वाला फिक्स्ड रिटर्न भले ही सेविंग्स अकाउंट से ज्यादा हो लेकिन लिक्विड फंड कम होता है. | लिक्विड म्यूचुअल फंड गारंटीड रिटर्न ऑफर नहीं करते हैं. लेकिन एफडी से इनका रिटर्न बेहतर होता है. आपको बस ये देखना होगा कि आपका फंड मैनजर फंड के पोर्टफोलियो में ज्यादा रिस्क तो नहीं ले रहा. |
लिक्विडिटी | एफडी में आपको एक मैच्योरिटी डेट तक पैसा पार्क करना होता है. इंटरेस्ट रेट मूलधन और टेन्योर के हिसाब से मिलता है. आप इसमें प्रीमैच्योर विदड्रॉल कर सकते हैं, लेकिन इसके लिए आपको जुर्माना देना होता है. | लिक्विडिटी फंड्स में आप कभी भी अपने यूनिट्स बिना किसी एग्जिट लोड के रिडीम करा सकते हैं, लेकिन SEBI की गाइडलाइंस के मुताबिक, अगर आप यूनिट लेने के 7 दिनों के अंदर रिडीम कराने पर आपको एग्जिट लोन देना होगा. यानी कि लिक्विड फंड एफडी के मुकाबले ज्यादा लिक्विडिटी देते हैं, वहीं, इनपर पेनाल्टी चार्ज भी कम बनता है. |
मैच्योरिटी | फिक्स्ड डिपॉजिट को एक निश्चित अवधि तक के लिए होल्ड करना होता है, ये 7 दिन से लेकर 10 साल के बीच में अलग-अलग टेन्योर में हो सकता है. | लिक्विड फंड 91 दिनों तक की मैच्योरिटी के साथ आते हैं. |
टैक्सेशन | एफडी से मिले ब्याज को आपकी सालाना आय में जोड़ा जाता है और फिर आपके टैक्स स्लैब के हिसाब से टैक्स काटा जाता है. साथ ही जब भी आपको इंटरेस्ट मिलता है, बैंक पर इसपर 10% TDS काटते हैं. साल के अंत में आपको टीडीएस अमाउंट काटकर जो टैक्स बनता है, वो भरना होता है. इसके अलावा, आप चाहे तो तीन साल के लॉक इन पीरियड वाली टैक्स सेविंग एफडी भी करा सकते हैं. इससे आपको 1.5 लाख तक की टैक्स छूट मिल जाएगी. | अगर आप कोई लिक्विड फंड तीन साल से ज्यादा होल्ड करते हैं तो आपको मिला ब्याज लॉन्ग टर्म कैपिटल गैन की तरह देखा जाएगा और इसपर 20% इन्डेक्सेशन के बाद टैक्स लगेगा. वहीं, तीन साल या इससे कम वक्त की होल्डिंग पर मिले ब्याज पर आपके टैक्स स्लैब के हिसाब से टैक्स कटेगा. |