ITR भरने की डेडलाइन खत्म होने में अब सिर्फ कुछ ही दिन बचे हैं. ऐसे में अगर म्यूचुअल फंड से आपने मुनाफा भुनाया है तो अपनी टैक्स देनदारी जरूर समझ लें. म्यूचुअल फंड में इक्विटी और डेट के लिए टैक्स देनदारी अलग-अलग होती है. दरअसल टैक्स के गणित में अक्सर लोग फंस जाते हैं. आज हम बताएंगे कि अलग-अलग निवेश पर होने वाली इनकम पर टैक्स की गणना कैसे की जाती है.

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टैक्स एंड इन्वेस्टमेंट एक्सपर्ट बलवंत जैन के मुताबिक, टैक्स का गणित वैसे तो बहुत आसान है, लेकिन कई लोगों के लिए यह हाईस्कूल और इंटरमीडिएट वाले गणित से भी ज्यादा बोझिल लगता है. अगर आपको टैक्स की गणना करनी है तो उसको आसान भाषा में समझने के लिए किसी एक्सपर्ट की मदद ले सकते हैं.  

म्यूचुअल फंड पर टैक्स का गणित

टैक्सेशन के हिसाब से म्यूचुअल फंड की दो हिस्सों में बांट लें. पहले हिस्से में इक्विटी ऑरिएंटेड फंड्स आते हैं तो दूसरे में अन्य सभी म्यूचुअल फंड्स आते हैं. शेयर बाजार पर लिस्ट घरेलू कंपनी में 65 फीसदी निवेश कर रहे हैं तो ऐसी स्कीम इक्विटी ऑरिएंटेड स्कीम होती हैं. इसमें 12 महीने से ज्यादा वक्त तक मुनाफा रिडीम नहीं किया जाता है. ऐसे में यह लॉन्ग टर्म माना जाएगा. अगर आपने 12 महीने के अंदर ही मुनाफा भुना लिया तो यह शॉर्ट टर्म में शामिल हो जाएगा.

इक्विटी ऑरिएटेंड स्कीम के अलावा अन्य सभी स्कीम दूसरी श्रेणी में आते हैं. इनमें डेट, लिक्विड, शॉर्ट टर्म डेट, इनकम फंड्स, गवर्नमेंट सिक्योरिटीज, फिक्स्ड मैच्योरिटी प्लान आते हैं. गोल्ड ETF, गोल्ड सेविंग्स फंड, इंटरनेशनल फंड भी इसमें शामिल होते हैं. इस श्रेणी में निवेश 36 महीने पुराना तो लॉन्ग टर्म हो जाता है और 36 महीने से पहले बेचा तो शॉर्ट टर्म माना जाएगा. 

SIP/STP का होल्डिंग पीरियड

SIP या STP से जब आप निवेश करते हैं तो हर SIP/STP एक नया निवेश माना जाता है. यहां टैक्सेशन के लिए यूनिट अलोटमेंट की तारीख देखते हैं. यूनिट अलोटमेंट डेट के आधार पर ही होल्डिंग पीरियड की गणना की जाती है.  

 

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मान लीजिए आपने एक साल पहले SIP निवेश शुरू किया. सबसे पहली SIP आपकी एक साल बाद लॉन्ग टर्म होगी. बाद की अन्य SIP पहली SIP के साथ लॉन्ग टर्म नहीं होंगी. SWP यानी सिस्टेमेटिक विड्रॉल प्लान का मुनाफा फर्स्ट इन, फर्स्ट आउट (FIFO) मेथड से तय होता है.

ऐसे में जो यूनिट सबसे पहले खरीदी, वही यूनिट सबसे पहले भुनाई जाएगी. अलग-अलग डीमैट अकाउंट में यूनिट्स रखी हैं. ऐसे में हर डीमैट अकाउंट एंट्री के आधार पर होल्डिंग पीरियड होगा.

डिविडेंड पर टैक्स 

डिविडेंड्स हासिल करने वाले के लिए यह रकम टैक्स फ्री होती है. क्योंकि, म्यूचुअल फंड हाउस पहले ही DDT (डिविडेंड डिस्ट्रीब्यूशन टैक्स) भर देता है. 

STCG टैक्स

STCG यानी शॉर्ट टर्म कैपिटल गेन के टैक्स की गणना भी दो अलग-अलग श्रेणी में की जाती है. इक्विटी ऑरिएंटेड स्कीम पर 15 फीसदी टैक्स लगता है और दूसरी श्रेणी के फंड्स से मुनाफे पर टैक्स देना होता है. इन फंड्स से मुनाफा आपकी नियमित कमाई मानी जाती है. ऐसे में इन पर टैक्स आपकी टैक्स स्लैब के हिसाब से लगेगा.

LTCG टैक्स

इक्विटी ऑरिएंटेड स्कीम पर 1 लाख तक का लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन टैक्स फ्री होता है. 1 लाख के बाद इस पर 10% टैक्स लगता है. इस पर 

टैक्स में छूट तब ही मिलती है जब STT (सिक्योरिटीज ट्रांजैक्शन टैक्स) भरा हो.

इक्विटी ऑरिएंटेड फंड्स के लिए 31 जनवरी, 2018 के दिन NAV (नेट एसेट वैल्यू) देखा जाएगा. इक्विटी स्कीम के LTCG पर इंडेक्सेशन बेनेफिट नहीं मिलता. दूसरी श्रेणी के फंड्स पर 20% टैक्स देना होगा.   

सिर्फ कैपिटल गेन से कमाई 

अगर आपकी सिर्फ कैपिटल गेन से कमाई हुई है तो आपको कुछ टैक्स छूट का फायदा भी मिलता है. रेजिडेंट टैक्सपेयर की कुल इनकम अगर 2.50 लाख से कम है और कुल आय में LTCG शामिल नहीं है तो ऐसे में उतना LTCG घटा दिया जाएगा. बाकी बची रकम पर टैक्स लगेगा.

इक्विटी ऑरिएंटेड स्कीम के LTCG पर भी यह फायदा मिलता है. 

80C के तहत कैपिटल गेन

सेक्शन 80C, 80CCD, 80TTB में टैक्स छूट का फायदा मिलता है. कैपिटल गेन्स के मुकाबले इन सेक्शन में टैक्स छूट नहीं ले सकते. सिर्फ दूसरी श्रेणी के फंड्स के STCG के आधार पर ले सकते हैं. नॉन-रेजिडेंट को LTCG-STCG पर पूरा टैक्स देना होता है. 

सेक्शन 87A में रीबेट मिलेगी

सेक्शन 87A के तहत 12500 की टैक्स छूट मिलती है. कैपिटल गेन्स के बदले रीबेट लिया जा सकता है. सिर्फ इक्विटी ऑरिएंटेड स्कीम पर LTCG पर इसका फायदा नहीं मिलता और नॉन-रेजिडेंट को इसका फायदा नहीं मिलेगा.

इंडेक्सेशन क्या है

इंडेक्सेशन से टैक्स देनदारी काफी कम हो जाती है. कई बार तो टैक्स पूरी तरह से खत्म हो जाता है. निवेश पर लगी रकम को महंगाई के अनुपात में बढ़ा लिया जाता है. निवेश की रकम ज्यादा दिखाने से मुनाफा कम आता है और फिर टैक्स की देनदारी भी कम हो जाती है.