ऑर्गेनाइज्‍ड सेक्‍टर में नौकरी करने वाले लोगों ने CTC, बेसिक सैलरी, नेट सैलरी और ग्रॉस सैलरी जैसे शब्‍द जरूर सुने होंगे. अक्‍सर लोग बातचीत में एक दूसरे से CTC और बेसिक सैलरी वगैरह के बारे में पूछते भी हैं. बेसिक सैलरी का आपकी सैलरी स्‍ट्रक्‍चर में बहुत बड़ा रोल होता है. लेकिन बेसिक सैलरी कैसे तैयार की जाती है, नेट सैलरी और ग्रॉस सैलरी में क्‍या फर्क होता है और CTC में क्‍या-क्‍या शामिल होता है, तमाम लोग नौकरीपेशा होने के बावजूद इन बातों को ठीक से नहीं समझते हैं. अगर आप नौकरीपेशा हैं या नए-नए नौकरीपेशा बने हैं तो इसके बारे में आपको जानकारी जरूर होनी चाहिए.

सबसे पहले समझिए क्‍या होती है बेसिक सैलरी

COMMERCIAL BREAK
SCROLL TO CONTINUE READING

बेसिक सैलरी वो राशि होती है जिस पर कंपनी और कर्मचारी दोनों की सहमति होती है. बेसिक सैलरी आपके सैलरी स्‍ट्रक्‍चर का बेस है. इसके आधार पर ही सैलरी पैकेज के तमाम घटकों की कैलकुलेशन की जाती है. बेसिक सैलरी कुल CTC का 40-45% होती है. इसमें HRA, बोनस और किसी प्रकार की टैक्स कटौती या कोई अतिरिक्‍त मुआवजा, ओवरटाइम आदि शामिल नहीं होता हैं.

कैसे तय होती है बेसिक सैलरी

मौजूदा समय में सैलरी की कोई तय परिभाषा नहीं है. इसका कंपनियां फायदा उठाती हैं. सैलरी स्‍ट्रक्‍चर तैयार करते समय कई बार कंपनियां आपकी बेसिक सैलरी को कम रखती हैं और अन्‍य भत्‍तों को बढ़ा देती हैं. ऐसे में आप कंपनी को बाध्‍य नहीं कर सकते हैं कि वह आपकी बेसिक सैलरी आपके हिसाब से तय करे. लेकिन अगर आपकी बेसिक सैलरी काफी कम है, तो आप अपनी कंपनी में एचआर डिपार्टमेंट से इसे बढ़ाने का अनुरोध कर सकते हैं. आमतौर पर बेसिक सैलरी तैयार करते समय व्‍यक्ति की नौकरी का अनुभव, नौकरी की भूमिका और शैक्षणिक योग्यता वगैरह को परखा जाता है.

बेसिक सैलरी कम या ज्‍यादा होने का आप पर असर

बेसिक सैलरी का कम होना और बहुत ज्‍यादा होना, दोनों ही स्थितियों का असर आप पर पड़ता है. बेसिक सैलरी पर हमेशा टैक्स लागू होता है इसलिए ये सीटीसी के 40 से 50% से अधिक नहीं होनी चाहिए. लेकिन अगर इसे बहुत कम कर दिया जाए तो ये आपके सैलरी स्‍ट्रक्‍चर पर असर डालती है. बेसिक सैलरी कम होने का सबसे बड़ा नुकसान ये है कि आपका पीएफ कॉन्ट्रीब्यूशन ज्‍यादा नहीं हो पाता. ईपीएफओ के नियम के अनुसार कर्मचारी की बेसिक सैलरी और डीए का 12 फीसदी हर महीने पीएफ फंड में जाता है. कंपनी भी कर्मचारी के लिए उतना ही कॉन्ट्रीब्यूट करना होता है. ऐसे में अगर आपकी बेसिक सैलरी कम है तो आपका पीएफ भी कम कटेगा. इससे लंबी अवधि में आपको लाखों रुपए का नुकसान होगा.

क्‍या होती है ग्रॉस सैलरी 

बेसिक सैलरी के साथ महंगाई भत्‍ता, हाउस रेंट अलाउंस, कन्वेंस अलाउंस और अन्‍य तरह के सभी भत्‍तों को जोड़कर और किसी भी तरह की कटौती से पहले जो राशि बनती है, उसे ग्रॉस सैलरी कहा जाता है. मान लीजिए कि आपकी बेसिक सैलरी 20000 है, इसमें 4000 रुपए महंगाई भत्‍ता, 9000 रुपए हाउस रेंट अलाउंस और 1000 रुपए कन्वेंस अलाउंस और 5000 रुपए अन्‍य अलाउंस के जोड़ दिए जाएं तो आपकी ग्रॉस सैलरी कुल 39000 रुपए बनेगी.

नेट सैलरी किसे कहते हैं

ग्रॉस सैलरी से टैक्स, प्रोविडेंट फंड और आदि अन्‍य तरह की कटौती होने के बाद जो राशि आपको सैलरी के तौर पर मिलती है, उसे नेट सैलरी कहा जाता है. नेट सैलरी किसी कर्मचारी की टेक-होम सैलरी होती है यानी ये वो फाइनल राशि होती है जो हर महीने कर्मचारी के अकाउंट में आती है.

अब CTC भी समझ लीजिए

CTC का मतलब होता है (Cost to Company) यानी वो पैसा जो कंपनी अपने कर्मचारी पर सालभर में खर्च करती है. CTC में आपकी बेसिक सैलरी के साथ ट्रैवल अलाउंस, कम्‍युनिकेशन अलाउंस, मेडिकल इंश्योरेंस और बचत योगदान वगैरह सब कुछ शामिल होता है. कई बार तो कंपनियां इसमें ग्रेच्युटी को भी शामिल कर लेती हैं. ग्रेच्‍युटी किसी भी कंपनी की तरफ से अपने कर्मचारी को उसके अच्‍छे काम के लिए पुरस्‍कार स्‍वरूप दी जाने वाली राशि होती है जो उसे नौकरी छोड़ने के बाद दी जाती है.