Explainer RBI MPC Meeting: क्या है रेपो रेट, सीआरआर और रिवर्स रेपो रेट, रेपो रेट बढ़ने से आपकी EMI क्यों बढ़ जाती है?
नए वित्त वर्ष 2023-24 की RBI MPC मीटिंग का फैसला आ आ गया है. आरबीआई ने इस बार ब्याज दरों में किसी भी तरह का बदलाव नहीं किया है. यानी रेपो रेट 6.5% ही रहेगा. यहां जानिए Repo Rate, CRR और Reserve Repo Rate बढ़ने का आप पर कैसे असर होता है?
नए वित्त वर्ष 2023-24 की RBI MPC मीटिंग का फैसला आ आ गया है. आरबीआई ने इस बार ब्याज दरों में किसी भी तरह का बदलाव नहीं किया है. यानी रेपो रेट 6.5% ही रहेगा. जब भी रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (Reserve Bank of India- RBI) रेपो रेट बढ़ाता है, तो इसका असर लोन पर भी पड़ता है. लोन महंगे हो जाते हैं और आम आदमी पर ईएमआई का बोझ बढ़ जाता है. लेकिन रेपो रेट न बढ़ने से लोन भी महंगे नहीं होंगे. आइए आपको बताते हैं कि क्या होता है रेपो रेट (Repo Rate), सीआरआर (CRR) और रिजर्व रेपो (Reserve Repo Rate) और रेपो रेट बढ़ने से आपकी ईएमआई क्यों बढ़ जाती है.
क्या होता है रेपो रेट
जिस तरह आप अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए बैंक से कर्ज लेते हैं और उसे एक निर्धारित ब्याज के साथ चुकाते हैं, उसी तरह सार्वजनिक, निजी और व्यावसायिक क्षेत्र की बैंकों को भी अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए लोन लेने की जरूरत पड़ती है. ऐसे में भारतीय रिजर्व बैंक ही ओर से जिस ब्याज दर पर बैंकों को लोन दिया जाता है, उसे रेपो रेट कहा जाता है. रेपो रेट कम होने पर आम आदमी को राहत मिल जाती है और रेपो रेट बढ़ने पर आम आदमी के लिए भी मुश्किलें बढ़ती हैं.
रेपो रेट बढ़ने के साथ क्यों बढ़ जाती है EMI
रेपो रेट एक तरह का बेंचमार्क होता है, जिसके आधार पर अन्य बैंक आम लोगों को दिए जाने वाले लोन के इंटरेस्ट रेट को निर्धारित करते हैं. जब रेपो रेट बढ़ता है तो बैंकों को कर्ज ज्यादा ब्याज दर पर मिलता है. ऐसे में बैंक आम आदमी के लिए भी होम लोन, कार लोन और पर्सनल लोन की ब्याज दर को बढ़ा देती हैं और इसका असर ईएमआई पर पड़ता है. यानी रेपो रेट बढ़ने के साथ ईएमआई भी बढ़ जाती है.
क्या होती है EMI और कैसे कैलकुलेट होती है
ईएमआई यानी समान मासिक किस्त (Equated Monthly Installment- EMI) एक ऐसी सुविधा है जो किसी बैंक या वित्तीय संस्थान से लोन चुकाने के लिए मिलती है. सरल शब्दों में समझें तो जब भी हम अपनी किसी जरूरत के लिए होम लोन, कार लोन, पर्सनल लोन आदि किसी भी तरह का ऋण बैंक या किसी वित्तीय संस्थान से लेते हैं तो बैंक या वो वित्तीय संस्थान, उस लोन को विशेष ब्याज दरों के साथ तय समय सीमा के अंदर किस्तों में चुकाने की अनुमति देते हैं. ग्राहक को निश्चित तिथि पर मासिक किस्त के रूप में तय की गई रकम का भुगतान करना होता है. इसे ही ईएमआई कहते हैं. ईएमआई को एक फॉर्मूले के तहत तैयार किया जाता है. फॉर्मूला है EMI = [P x (R/100) x (1+R/100) ^n] / [(1+R/100)^ n-1]. यहां P= प्रिंसिपल लोन अमाउंट, R= प्रतिमाह ब्याज दर, n= मासिक किस्तों की संख्या.
क्या होता है Reverse Repo Rate
रिवर्स रेपो रेट (Reverse Repo Rate) वह दर है जिस पर भारतीय रिजर्व बैंक, कॉमर्शियल बैंकों के सरप्लस मनी को अपने पास जमा कर लेता है. बदले में आरबीआई (RBI) इन बैंकों को ब्याज देता है. यही रिवर्स रेपो रेट कहलाता है. जब मार्केट में कैश की उपलब्धता बढ़ जाती है तो महंगाई बढ़ने का खतरा बढ़ जाता है. ऐसे में आरबीआई रिवर्स रेपो रेट की दर बढ़ा देता है, ताकि बैंक ज्यादा ब्याज कमाने के लिए आरबीआई के पास अमाउंट जमा करा दे.
आप पर कैसे असर डालता है रिवर्स रेपो
जब बाजार में नकदी की उपलब्धता बढ़ जाती है तो महंगाई बढ़ने की भी संभावना बढ़ जाती है. ऐसे में आईबीआई रिवर्स रेपो रेट बढ़ा देता है ताकि बैंक ब्याज कमाने के चक्कर में अपनी रकम को आरबीआई के पास जमा करा दें. इस तरह बैंकों के पास बाजार में बांटने के लिए कम रकम रह जाती है.
क्या होता है CRR
सीआरआर यानी कैश रिजर्व रेशियो (Cash Reserve Ratio-CRR). सभी बैंकों को अपनी कुल जमा राशि का निश्चित हिस्सा रिजर्व बैंक के पास जमा रखना पड़ता है. इसे CRR कहते हैं. ये बाजार में नकदी के प्रवाह पर नियंत्रण रखने का एक टूल है और बैंक की स्थायित्व और जरूरतों को पूरा करने के लिए जरूरी है. आरबीआई के पास रखा गया नकद रिजर्व ये सुनिश्चित करता है कि बैंक अपने ग्राहकों की मांगों को पूरा करने के लिए नकदी की कमी से न जूझें.
सीआरआर का आप पर क्या असर पड़ता है?
अगर सीआरआर बढ़ता है तो बैंकों को अपनी पूंजी का बड़ा हिस्सा भारतीय रिजर्व बैंक के पास रखना होता है. जब बैंक पूंजी का बड़ा हिस्सा आबीआई के पास रख देंगे तो बैंकों के पास ग्राहकों को कर्ज देने के लिए कम रकम रह जाएगी. यानी आम आदमी को लोन देने के लिए बैंकों के पास पैसा कम होगा. अगर रिजर्व बैंक सीआरआर को घटाता है तो बाजार में नकदी का प्रवाह बढ़ जाता है. हालांकि रेपो रेट और रिवर्स रेपो रेट में बदलाव से बाजार में नकदी की लिक्विडिटी पर जल्दी असर पड़ता है, जबकि सीआरआर में किए गए बदलाव से नकदी की उपलब्धता पर काफी समय बाद असर पड़ता है. इसलिए आरबीआई सीआरआर में तभी बदलाव करता है, जब उसे नकदी की लिक्विडिटी पर तुरंत असर न डालना हो.
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