6 करोड़ नौकरीपेशा लोगों को NPS चुनने का मौका नहीं मिलेगा. ट्रेड यूनियनों के विरोध के बाद लेबर मिनिस्‍ट्री ने यह प्रस्‍ताव बीच में ही छोड़ने का फैसला किया है. ट्रेड यूनियनों के साथ EPFO भी इसका विरोध किया था. एक मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक EPFO और ट्रेड यूनियन के ऐतराज के बाद लेबर मिनिस्‍ट्री ने पुरानी व्‍यवस्‍था ही चलने देने का फैसला किया है. 6 करोड़ नौकरीपेशा EPFO के सबस्‍क्राइबर रहेंगे.

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क्‍या होता फायदा

इकोनॉमिक टाइम्‍स की खबर के मुताबिक, सरकार प्राइवेट सेक्टर के कर्मचारियों को EPS या NPS में कोई एक विकल्‍प चुनने का अधिकार देना चाहती थी. EPFO ने पहले सरकार के इस प्रपोजल पर सहमति जताई थी. लेकिन EPFO के सेंट्रल बोर्ड ऑफ ट्रस्टीज और कर्मचारी यूनियन की प्रतिक्रिया आने के बाद लेबर मिनिस्‍ट्री इससे पीछे हट गई है. सरकार ने 2015-16 के बजट में EPFO सब्सक्राइबर्स को NPS को चुनने का विकल्प देने का प्रस्‍ताव किया था.

क्‍या है EPS और NPS

NPS- नेशनल पेंशन सिस्‍टम है, जिसे केन्द्र सरकार ने 1 जनवरी 2004 को लॉन्च किया था. यह वॉलेंट्री कॉन्ट्रिब्‍यूशन रिटायरमेंट स्‍कीम है. इस पर PFRDA का नियंत्रण है. NPS में व्‍यक्ति पर निर्भर करता है कि वह पेंशन के लिए क्‍या योगदान दे. यह वॉलेंट्री कॉन्ट्रिब्‍यूशन रिटायरमेंट स्‍कीम है. इस पर PFRDA का नियंत्रण है. वहीं, EPS-एम्प्लॉई पेंशन स्कीम है, जिसे EPFO कंट्रोल करता है.

EPS और NPS में फर्क

EPS में प्राइवेट सेक्‍टर के कर्मचारी को 58 साल की उम्र से डेथ तक पेंशन गारंटी मिलती है. वहीं, NPS में कर्मचारी पर निर्भर करता है कि वह पेंशन के लिए क्‍या योगदान दे. EPS में योगदान का पेमेंट मंथली होता है. जबकि, NPS का रिटर्न मार्केट के रिटर्न पर निर्भर करता है.

EPS टैक्‍स फ्री है

EPS का रिटर्न पूरी तरह टैक्‍स फ्री है. जबकि NPS का 60% कॉर्पस ही टैक्‍स फ्री है. वहीं, 40% रिटायरमेंट में इन्‍वेस्‍ट होता है.