सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को सामाजिक कार्यकर्ता स्‍वामी अग्निवेश की वह जनहित याचिका (PIL) खारिज की दी है जिसमें उन्‍होंने मांग की थी कि असंगठित क्षेत्र के 50 करोड़ मजदूरों को संगठित क्षेत्र के श्रमिकों के बराबर मेहनताना मिलना चाहिए. याचिकाकर्ता ने यह भी मांग की थी कि असंगठित क्षेत्र के कामगारों का भी 7वें वेतन आयोग के जैसे न्‍यूनतम भत्‍ता तय किया जाना चाहिए. कोर्ट ने कहा कि वह इस पीआईएल पर विचार नहीं कर सकता.

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अधिकारों के उल्‍लंघन का लगाया था आरोप

हमारी सहयोगी वेबसाइट जी न्‍यूज के मुताबिक मुख्‍य न्‍यायाधीश रंजन गोगोई और जस्टिस एसके कौल की पीठ ने कहा कि याचिकाकर्ता को श्रमिकों की इस राहत के लिए संबंधित अधिकारियों के पास जाना चाहिए. याचिका में कहा गया था कि आर्टिकल 14 (समान अधिकार), 21 (जीवन और स्‍वतंत्रता का संरक्षण) और 39 (राज्‍यों को नीतियों में बांधने वाले सिद्धांत) के तहत श्रमिकों के अधिकारों का उल्‍लंघन हो रहा है. इसे रोका जाना चाहिए.

असंगठित क्षेत्र के लिए क्‍या है सरकारी व्‍यवस्‍था

2016 में केंद्र सरकार ने अनुबंध के आधार पर काम करने वाले कामगारों का न्यूनतम वेतन बढ़ाकर 10 हजार रुपये प्रतिमाह तय किया था. दिल्‍ली, हरियाणा और यूपी सरकार ने भी अपने यहां के असंगठित क्षेत्र के मजूदरों के लिए कुछ नीति बनाई है. उनके हितों की संरक्षा के लिए बोर्ड गठित किया है. दिल्‍ली में अकुशल, अर्द्धकुशल और कुल श्रमिकों के लिए न्यूनतम वेतन क्रमश: 13,500 रुपये, 14,698 रुपये और 16,182 रुपये तय किया गया था. लेकिन इसे दिल्‍ली हाईकोर्ट ने रद्द कर दिया था. हाल में हरियाणा सरकार ने ‘हरियाणा असंगठित कर्मकार सामाजिक सुरक्षा बोर्ड’ के गठन की घोषणा की थी. यूपी में भी कुछ ऐसी व्‍यवस्‍था की गई है.