हाल ही में एक एचआर फर्म जीनियस कंसल्टेंट्स ने एक रिपोर्ट जारी की है. इस रिपोर्ट के अनुसार तमाम कंपनियों में टेक्नोलॉजी बढ़ने के साथ-साथ खामोश छंटनी यानी साइलेंट फायरिंग (Silent Firing) भी बढ़ रही है. रिपोर्ट में कहा गया है कि करीब 10 फीसदी नियोक्ता गैर-जरूरी पदों के लिए छंटनी (Layoff) को प्राथमिकता दे रहे हैं. अब यहां एक बड़ा सवाल ये उठता है कि आखिर ये साइलेंट फायरिंग होती क्या है और कैसे होती है?

क्या है साइलेंट फायरिंग?

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साइलेंट फायरिंग में कंपनी की तरफ से कर्मचारियों के लिए कुछ ऐसी स्थितियां पैदा कर दी जाती हैं कि वह नौकरी छोड़ने पर मजबूर हो जाते हैं. इसके तहत कई तरह के काम किए जाते हैं. कई बार कर्मचारी के लिए काम करने के हालात खराब किए जाते हैं, उसे बात-बात पर टोकना शुरू किया जाता है और उसे ऐसे काम दिए जाते हैं, जो उसे बिल्कुल पसंद ना हों. इन सब के चलते कर्मचारी नौकरी छोड़ने को मजबूर हो जाता है.

हार्वर्ड बिजनेस स्कूल के प्रोफेसर Tsedal Neeley कहते हैं कि साइलेंट फायरिंग एक ऐसा माहौल पैदा कर सकता है, जहां एक कर्मचारी को इस बात का अहसास कराया जाता है कि उसकी वैल्यू कम है. साथ ही उसे जबरदस्ती ऑफिस में अलग-थलग होने पर मजबूर कर दिया जाता है.

साइलेंट फायरिंग में एक कर्मचारी को लगने लगता है कि वह कंपनी के लिए अब उतना जरूरी नहीं है, जैसा पहले था. धीरे-धीरे वह अपने ही काम से और कंपनी के माहौल से परेशान होने लगता है और फिर खुद ही नौकरी छोड़ने की तैयारी करने लगता है. वह धीरे-धीरे दूसरी नौकरी ढूंढता है और इस्तीफा देकर चला जाता है. 

क्यों की जाती है साइलेंट फायरिंग?

अगर किसी कर्मचारी को जबरदस्ती काम से निकाला जाता है तो उस पर बहुत सारे लोग और कई बार कानून-प्रशासन की भी उंगलियां उठने लगती हैं. वहीं अगर कोई कर्मचारी खुद ही नौकरी छोड़कर जाता है तो उसकी बात कोई नहीं करता, क्योंकि सबको लगता है कि कुछ भी गलत नहीं है. वहीं टर्मिनेशन में कंपनियों को कर्मचारी को सेवरेंस पैकेज देना होता है, जिसके तहत कुछ महीने की सैलरी देनी होती है, जबकि इस्तीफा देने की सूरत में ऐसा कुछ नहीं करना होता.