अक्सर नौकरी पेशा वालों (Salaried Class) की जब भी बात होती है, तो इसमें कॉन्ट्रैक्ट वर्कर (Contract Worker) भी कुछ हद तक शामिल होते हैं. भारत में कई लोग कॉन्ट्रैक्ट पर काम करते हैं. कई जगह इनका शोषण भी होता है और इसकी वजह है अपने अधिकारों की जानकारी न होना.

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जी बिजनेस के खास कार्यक्रम 'मनी गुरु' में टैक्स एक्सपर्ट मनीष गुप्ता ने कॉन्ट्रैक्ट वर्कर के अधिकारों के बारे में जानकारी दी? साथ ही यह भी बताया कि ऐसे कामगार कैसे अपने अधिकारों की सुरक्षा कर सकते हैं. 

कौन हैं कॉन्ट्रैक्ट वर्कर?

एक व्यक्ति को कंपनी कॉन्ट्रैक्ट पर करती है नियुक्त

कंपनी किसी भी काम के लिए कर सकती है नियुक्त

आम तौर पर कॉन्ट्रैक्टर के जरिये होती है नियुक्ति

कॉन्ट्रैक्ट वर्कर और डायरेक्टर वर्कर में होता है फर्क

दोनों की नियुक्ति और भुगतान का तरीका अलग-अलग  

कॉन्ट्रैक्ट वर्कर के लिए कानून

कॉन्ट्रैक्टर वर्करों के हित में बना है कानून

कॉ़न्ट्रैक्ट लेबर (रेगुलेशन एंड एबोल्यूशन) एक्ट, 1970 है

कॉन्ट्रैक्टर वर्कर के शोषण को रोकने के लिए बना है कानून

वर्करों के लिए काम का बेहतर माहौल पेश करना है मकसद

कानून में रजिस्ट्रेशन

कॉ़न्ट्रैक्ट लेबर एक्ट में रजिस्ट्रेशन के नियम तय

1 साल के भीतर एक दिन भी 20 या ज्यादा कॉन्ट्रैक्ट वर्कर

ऐसी कंपनियों को एक्ट के तहत रजिस्ट्रेशन कराना जरूरी

आकस्मिक काम के लिए कॉन्ट्रैक्ट वर्कर रखने वाली कंपनियां हैं

ऐसी कंपनियों पर लेबर एक्ट नहीं होगा लागू

एक्ट के तहत 15 दिन के लिए भी रखते हैं वर्कर

ऐसे में अस्थायी रजिस्ट्रेशन दिया जाता है

कॉन्ट्रैक्टर को रजिस्ट्रेशन और लाइसेंस लेना होता है

रजिस्ट्रेशन नहीं करने पर क्या?

कॉन्ट्रैक्टर के रजिस्ट्रेशन नहीं करने पर दंड का है प्रावधान

एक्ट के सेक्शन 9 में तय किए गए हैं नियम

रजिस्ट्रेशन नहीं करने पर नहीं दे सकता है रोजगार

कॉन्ट्रैक्टर रजिस्टर नहीं, वर्करों को नहीं कर सकेगा भुगतान

ऐसे में प्रिंसिपल इम्प्लॉयर को करना होगा भुगतान    

कानून के उल्लंघन पर जेल की सजा और जुर्माने का भी प्रावधान

कॉन्ट्रैक्टर वर्कर का मुख्य इम्प्लॉयर से संबंध

कॉन्ट्रैक्ट वर्कर प्रिंसिपल इम्प्लॉयर के पे-रोल पर नहीं होता

प्रिंसिपल इम्प्लॉयर वर्कर को सीधे भुगतान नहीं करता

कॉन्ट्रैक्ट वर्कर को भुगतान कॉन्ट्रैक्टर करता है

कॉन्ट्रैक्टर ही वर्करों के काम को सुपरवाइज करता है  

कॉन्ट्रैक्टर को प्रिंसिपल इम्प्लॉयर ही करता है भुगतान

प्रिंसिपल इम्प्लॉयर की जिम्मेदारी

कॉन्ट्रैक्टर के साथ ही प्रिंसिपल इम्प्लॉयर पर भी जिम्मेदारी

वर्करों को सुविधाएं मिले, प्रिंसिपल इम्प्लॉयर करेगा सुनिश्चित

सरकार की तरफ से तय मजदूरी को वर्करों को हो भुगतान

श्रमिक आयुक्त ने अगर तय की है मजदूरी तो वर्करों को मिले

सरकार और श्रमिक आयुक्त ने नहीं तय किया है कोई वेतन

ऐसे में वर्करों को सही और अच्छा वेतन सुनिश्चित करना

कॉन्ट्रैक्ट वर्कर को सुविधाएं

लेबर एक्ट में कॉन्ट्रैक्ट वर्कर के लिए कई सुविधाएं तय

कंपनी में 100 या उससे ज्यादा कर्मचारी कर रहे हैं काम

वर्कर 6 महीने या उससे ज्यादा वक्त के लिए करेंगे काम

ऐसे में वर्करों के लिए कैंटीन मुहैया कराना है जरूरी

वर्करों को रात में रुकना पड़ता है, काम 3 महीने से ज्यादा

ऐसे में वर्करों के लिए रेस्ट रूम की व्यवस्था करना

पुरुष और महिला वर्करों के लिए शौचालयों की व्यवस्था

पीने लायक साफ पानी की व्यवस्था, साफ-सफाई हो

वर्करों के लिए प्राथमिक चिकित्सा की व्यवस्था

रिकॉर्ड रजिस्टर रखना भी है अहम शर्त

10 से ज्यादा महिलाएं काम कर रही हैं 

ऐसे में  बच्चों के लिए क्रेच की व्यवस्था

वर्करों को रोजगार कार्ड मुहैया कराना 

लेबर एक्ट के फायदे

कॉन्ट्रैक्ट वर्कर डायरेक्टर वर्कर के समान करता है काम

ऐसे में वर्कर का वेतन और छुट्टी डायरेक्टर वर्कर के समान

कॉन्ट्रैक्टर वर्कर बेहतर माहौल न मिलेन पर कर सकते हैं शिकायत

शिकायतें सुनने के लिए प्राधिकारी नियुक्त किए जाने की व्यवस्था