नौकरी जाने का सता रहा डर- हर 10 में से 6 भारतीय कर्मचारी को लगता है लिस्ट में उनका नाम, ऐसे हुआ खुलासा
Job Layoffs: दुनियाभर में छंटनी की खबरों के बीच भारत में हर 10 में से 6 कर्मचारियों का मन अपनी नौकरी में नहीं लग रहा है. उन्हें लगता है कि वह अपना बेहतर प्रदर्शन नहीं कर पा रहे हैं.
Job Layoffs: दुनियाभर में इस वक्त जॉब मार्केट में लोग एक डर के साए में जी रहे हैं. Amazon, Facebook, Google जैसी बड़ी कंपनियों से भारी मात्रा में छंटनी की खबरों से लोगों को अब उनकी नौकरी पर भी खतरा मंडराता दिखाई दे रहा है. भारत में हर 10 में से 6 से अधिक कर्मचारियों (65 फीसदी) को लगता है कि छंटनी की इन खबरों से वे निराश हैं और यह उन्हें वर्तमान वर्कप्लेस में और बेहतर काम करने से भी रोक रहा है. प्रमुख जॉब पोर्टल Indeed ने एक रिपोर्ट में बताया कि मार्केट की अनिश्चितताओं और आर्थिक माहौल को देखते हुए, नौकरी करने वाले अपने वर्तमान काम में हिचकिचा रहे हैं और नौकरी चले जाने के डर से काम को लेकर पूरी तरह से प्रतिबद्ध भी नहीं हैं.
50 फीसदी कर्मचारी ढूंढ रहे नौकरी
रिपोर्ट में बताया कि भारत में 57 फीसदी से अधिक कर्मचारी अपनी वर्तमान नौकरी को लेकर ऊब चुके हैं, जिसमें से 50 फीसदी से अधिक नए अवसरों के लिए खुद की अपस्किलिंग पर काम कर रहे हैं. वहीं नई नौकरी की तलाश करने वालों में से लगभग 28 फीसदी ने कहा कि वे नौकरी में खुशी और लचीलेपन को प्राथमिकता देंगे और 19 फीसदीने संकेत दिया कि एक अच्छे वर्क लाइफ बैलेंस को प्राथमिकता देंगे.
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इनडीड इंडिया के सेल्स हेड शशि कुमार ने कहा कि यह स्पष्ट है कि कर्मचारी अब जॉब मार्केट में हो रहे विभिन्न उतार-चढ़ाव के बीच मेंटल हेल्थ और वर्क लाइफ बैलेंस्ड को प्राथमिकता देते हैं. हालांकि यह देखना होगा कि ग्लोबल मूवमेंट्स का भारत पर क्या असर होगा.
2023 में सुधरेंगे हालात?
रिपोर्ट में कहा गया कि नियोक्ता 2023 में अपनी हायरिंग एक्टिविटी को लेकर काभी आशावादी हैं. इसमें से 45 फीसदी को लगता है कि अगले साल हायरिंग एक्टिविटी में 20 फीसदी तक उछाल आने की उम्मीद है. इसके अलावा 18 फीसदी को इंफ्लेशन और 15 फीसदी को छंटनी का भी डर सता रहा है. 2023 में कंपनियां भी अधिक लोगों को नौकरी देने की इच्छुक होंगी.
भर्ती में जुड़ेगी टेक्नोलॉजी
रिपोर्ट में कहा गया है कि लगभग 35 फीसदी नियोक्ता कर्मचारियों को नौकरी पर रखने के लिए AI/डिजिटल और सोशल मीडिया जैसे मीडियम को अपनाना चाहते हैं, जबकि 26 फीसदी कंपनियां हाइपर लोकल लोगों को बोर्ड में शामिल करने की योजना बना रही हैं.