नोएडा के Sector-93A में स्थित सुपरटेक के ट्विन टावरों को महज 9 सेकंड में जमींदोज कर दिया गया. तेज धमाकों के साथ 103 मीटर ऊंची बिल्डिंग ताश के पत्‍तों की तरह बिखर गई. इसके ध्वस्तीकरण के लिए 3700 किलो विस्फोटक का प्रयोग किया गया था.  ट्विन टावरों के 100 मीटर की दूरी पर केवल 6 लोग मौजूद थे. इन 6 की लिस्ट में मयूर मेहता, प्रोजेक्ट मैनेजर, चेतन दत्ता, 3 फॉरेन एक्सपर्ट और एक पुलिस अधिकारी शामिल है. चेतन दत्‍ता के अनुसार ट्विन टावरों को ध्‍वस्‍त करने के लिए वाटरफॉल इंप्लोजन तकनीक (Waterfall Implosion Technique) का इस्‍तेमाल किया गया है. आइए जानते हैं इस तकनीक के बारे में.

जा‍नें क्‍या है वाटरफॉल इंप्लोजन तकनीक

COMMERCIAL BREAK
SCROLL TO CONTINUE READING

चेतन दत्ता के मुताबिक वाटरफॉल इंप्लोजन तकनीक से इमारत वॉटर फॉल की तरह नीचे गिरती है. ये तकनीक शहरों में इमारतों को ध्वस्त करने के काम आती है, जिसमें नियंत्रित विस्फोटों की आवश्यकता होती है.  अगर ऐसा नहीं होगा तो विस्फोट का मलबा दूर-दूर तक फैल जाएगा, जो कि दूसरी जगहों को बहुत नुकसान पहुंचा सकता है. चेतन दत्‍ता के मुताबिक इस तकनीक में एक बार ब्लास्ट नहीं होता है बल्कि मिली सेकेंड के लैप्स में ब्लॉस्ट होते हैं, जिससे इमारत वॉटर फॉल की तरह नीचे बैठ जाती है.

ध्‍वस्‍तीकरण से नहीं हुआ कोई नुकसान

ट्विन टावर का ध्‍वस्‍तीकरण सफलतापूर्वक किया गया है. इसे गिराने से किसी के हताहत होने की खबर नहीं है. इसके ध्वस्तीकरण को लेकर सुरक्षा के लिए जो भी इंतजाम किए गए थे, वो एकदम फिट बैठे. जैसे ही तेज धमाकों के साथ विस्‍फोट हुआ, आसमान तक धूल का गुबार देखा गया.  माना जा रहा है कि दो-तीन घंटे तक हवा में धूल का गुबार रहेगा.

 200 से 300 करोड़ की लागत से बना था ट्विन टावर

चेतन दत्ता के मुताबिक ध्‍वस्‍तीकरण के दौरान जो एक्सप्लोजन इस्‍तेमाल किए गए हैं, वो काफी लाइट हैं. चेतन दत्‍ता ने बताया कि इस बीच जो मलबा यहां, इक्ट्ठा हुआ है, उसे जल्‍द ही 3 महीने के अंदर साफ कर दिया जाएगा. बता दें कि इस ट्विन टावर को बनाने के लिए 200 से 300 करोड़ रुपये तक खर्च किए गए थे. कोर्ट में जब इस टावर को लेकर विवाद चल रहा था, तब इसकी मार्केट वैल्यू में काफी गिरावट आ गई थी. अगर सुपरटेक के इस टावर को लेकर कोई विवाद नहीं होता तो आज इसकी मार्केट वैल्यू 1000 करोड़ रुपये से भी ज्यादा होती.