पढ़िए ISRO के सबसे बड़े अभियान 'गगनयान' की अगुवाई करने वाली ललिताम्बिका के बचपन की कहानी
भारत अंतरिक्ष में एक बहुत बड़ी छलांग लगाने के लिए तैयार है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुवाई में शुक्रवार को हुई कैबिनेट की बैठक में 'गगनयान' अभियान के लिए 10000 करोड़ रुपये की योजना को मंजूरी दी गई.
भारत अंतरिक्ष में एक बहुत बड़ी छलांग लगाने के लिए तैयार है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुवाई में शुक्रवार को हुई कैबिनेट की बैठक में 'गगनयान' अभियान के लिए 10000 करोड़ रुपये की योजना को मंजूरी दी गई. गगनयान (Gaganyaan) अभियान के तहत 2022 में तीन भारतीयों को अंतरिक्ष में भेजा जाएगा. अंतरिक्ष में किसी मानव को भेजने की उपलब्धि अभी केवल अमेरिका (USA), रूस और चीन के पास है. इस अभियान की सफलता के बाद भारत दुनिया का चौथा देश बन जाएगा, जिसके पास अंतरिक्ष में इंसान को भेजने की क्षमता होगा. यहां हम आपको बताने जा रहे हैं ऐसे बेहद चुनौतीपूर्ण अभियान की अगुवाई करने वाली शख्सियत के बारे में. गगनयान प्रोजेक्ट की अगुवाई करेंगे डॉ वीआर ललिताम्बिका (Dr VR Lalithambika).
डॉ वीआर ललिताम्बिका कंट्रोल सिस्टम इंजीनियर हैं. इसरो के साथ उनका संबंध तीन दशक से भी अधिक पुराना है. अब उन्हें भारत के बेहद प्रतिष्ठित प्रोजेक्ट 'गगनयान' की जिम्मेदारी दी गई है. ये ऐसा प्रोजेक्ट है जिस पर पूरे देश की निगाहें लगी हैं और जिसकी सफलता, पूरे देश को गर्व से भर देगी. जिस तरह भारतीय मूल की अंतरिक्ष यात्री कल्पना चावला ने देश का नाम रोशन किया था, वैसे ही ललिताम्बिका स्वदेशी अंतरिक्ष मिशन को अंजाम देने के लिए जी जान से जुटी हैं.
ललिताम्बिका ने भारत के सभी रॉकेट पोलर सेटेलाइट लॉन्च व्हीकल (PSLV), जियोसिंक्रोनस सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल (GSLV) और एक भारतीय स्पेस सटल के लिए काम किया है. पिछले साल फरवरी में जब इसरो ने एक साथ 104 सेटेलाइट को लॉन्च करके रिकॉर्ड बनाया, तो इस प्रोजेक्ट में भी उनकी बेहद महत्वपूर्ण भूमिका थी.
न्यूज वेबसाइट दियूथ को कुछ समय पहले ललिताम्बिका ने बताया बताया, 'डायरेक्टरेट ह्यूमन स्पेस प्रोग्राम (DHSP) की स्थापना हाल में इसरो के मुख्यालय में की गई है. मेरा पद निदेशक, DHSP है. हम इस मिशन को पूरा करने के लिए इसरो निदेशक के मार्गदर्शन में काम कर रहे हैं. अभी हम उन संभावित तरीकों पर विचार कर रहे हैं, जिनके जरिए हम इस मिशन को पूरा कर सकते हैं. इस प्रोग्राम के कार्यान्वयन में इसरो के सभी सेंटर शामिल होंगे. वास्तव में एकेडेमिक जगत और इंडस्ट्री के लोगों की मदद भी ली जाएगी. फिलहाल इसके बारे में अभी मैं इससे अधिक जानकारी नहीं दे सकती हूं.'
उन्होंने बताया कि उनके दादा जी के चलते विज्ञान और टेक्नालॉजी में उनकी दिलचस्पी बढ़ी. उनके दादा जी गणितज्ञ थे और वे लेंस, टेलिस्कोप और माइक्रोस्कोप जैसे गैजेट भी बनाते थे. बचपन में तिरुवनंतपुरम स्थित उनका घर थुंबा रॉकेट टेस्टिंग सेंटर से बेहद करीब था. वे अपने घर से रॉकेट लॉन्च की आवाज सुन सकती थीं. उनके पिता जी और पति भी इंजीनियर हैं.
जब कोई रॉकेट लॉन्च होने वाला होता तो उनके दादा जी उन्हें शाम को ही इस बारे में बता देते और फिर दोनों उस घड़ी का इंतजार करते. इसबीच दादा जी उन्हें इसरो के काम के बारे में बताते थे. इस तरह बचपन से ही उनके मन में इसरो के प्रति एक लगाव पैदा हो गया और आज वे इसरो के इतिहास में अब तक के सर्वाधिक प्रतिष्ठित और चुनौतीपूर्ण प्रोजेक्ट का नेतृत्व करने जा रही हैं.