दूध उत्पादन के मामले में हम दुनिया में नंबर वन हैं. लेकिन प्रति पशु दूध उत्पादन में हम काफी पिछड़े हुए हैं. एक आंकड़े के मुताबिक, हमारे यहां दूध उत्पादन का औसत महज तीन लीटर प्रति पशु है, जबकि यही औसत ऑस्ट्रेलिया में 16 और इजराइल में 36 लीटर प्रति पशु है. हम दूध उत्पादन में सबसे आगे इसलिए हैं कि हमारे पास 300 मिलियन पशु हैं. 

COMMERCIAL BREAK
SCROLL TO CONTINUE READING

पहले कृष समृद्धि का आधार ही पशु पालन था, लेकिन घटती जमीन और बढ़ते मशीनीकरण के कारण पशुओं की उपयोगिता खत्म हो गई है. जो दुधारू पशु हैं, उन्हीं का पालन-पोषण होता है और बाकि नर पशुओं को सड़कों पर खुला छोड़ देते हैं. बैल और सांडों की बढ़ती संख्या भी परेशानी का सबब बन रही है, क्योंकि गांवों में आवारा घूमते सांड फसलों को चौपट कर देते हैं. शहरों में सड़कों पर धूमते सांडों की वजह से अक्सर बड़ी दुर्घटनाएं तक हो जाती हैं. इन समस्याओं से निजात दिलाने के लिए उत्तर प्रदेश सरकार ने सेक्स सॉर्टेड सीमन (गोवंशीय पशुओं में वर्गीकृत वीर्य का इस्तेमाल) योजना को मंजूरी दी है. सेक्स सॉर्टेड सीमन के तहत गाय से बछिया को जन्म देने की संभावना 90-95 फीसदी तक होती है. 

सेक्स सॉर्टेड सीमन को मंजूरी देने से पहले इसका इटावा, लखीमपुर-खीरी और बाराबंकी में पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर प्रयोग किया गया, जो कि काफी हद तक कामयाब रहा है. सरकार ने अब इस योजना को यूपी के 75 जिलों में लागू करने का फैसला किया है. पायलट प्रोजेक्ट के तहत गायों ने 581 बच्चों को जन्म दिया था, जिनमें से 522 बछिया थीं. यह प्रयोग सिर्फ देसी नस्ल की गायों पर किया गया है. 

यह भी पढ़ें- ऑस्ट्रेलिया में बिजनेस छोड़ शुरू की किसानों की सेवा, दो लाख किसानों को ट्रेनिंग देगा Mooo farm

मथुरा में चल रहा है सफल प्रयोग

मथुरा-वृन्दावन मार्ग स्थित हासानंद गोचर भूमि ट्रस्ट गोशाला में देश को सांडों की समस्या से मुक्ति दिलाने के लिए बड़े स्तर पर काम किया जा रहा है. संस्था सचिव सुनील कुमार शर्मा ने बताया कि देश के किसी भी संस्थान या विश्वविद्यालय को यदि साहीवाल, गिर, थारपारकर, राठी आदि नस्ल की शुद्ध गाय चाहिए होती हैं तो उन्हें दूर-दराज के उन इलाकों से लाया जाता है. जहां आजादी के बाद भी आधुनिक ज्ञान विज्ञान नहीं पहुंच पया. क्योंकि इन्हीं जगहों पर उनमें नस्लीय शुद्धता मिल पाती है. हासानंद गोषाला में भी देश के विभिन्न दूरस्थ स्थानों से साहीवाल, गिर, थारपारकर, हरियाणा, रेडसिंधी आदि नस्लें मंगाई गई हैं. और यहां इन गायों का दूध उत्पादन बढ़ाने पर काम चल रहा है.

सेक्स सीमन का प्रयोग

गोशाला प्रबंधन दिलीप कुमार यादव ने बताया कि हासानंद गोशाला में शुद्ध नस्ल की गायों द्वारा शत-प्रतिशत बछिया को जन्म देने पर काफी समय से प्रयोग चल रहे हैं और इन प्रयोगों में वे काफी हद तक कामयाब भी हो रहे हैं. दिलीप यादव ने बताया कि गोशाला में किसानों को ज्यादा से ज्यादा बछिया हर नस्ल की प्रदान करने को ध्यान में रखते हुए सेक्स सीमन का प्रयोग किया जा रहा है ताकि जो बच्चे आएं वह ज्यादातर मादा और अच्छी क्वालिटी वाले ही हों. सेक्स सीमन का प्रयोग करने वाली यह उत्तर प्रदेश की पहली गोशाला है.

यहां नाइट्रोजन कंटेनरों में देश की प्रयोगशालाओं से मंगाकर हर देशी नस्ल का वीर्य रखा जाता है. गोशाला में विदेशी नस्ल की एक भी गाय नहीं है. कमजोर एवं बीमार गायों के लिए अलग स्थान एवं देखरेख की व्यवस्था की गई है.

दिलीप ने बताया कि अच्छी क्वालिटी वाली गायों से प्राप्त नर सांडों को नस्ल सुधार के इच्छुक लोगों को मुफ्त में ही दिया जाता है. पिछले दिनों गिर नस्ल का सांड नैमिषारण्य की एक गोशाला को भेजा गया. कोई भी नर या मादा बच्चा उसके पूरे इतिहास के साथ दिया जाता है ताकि आगे नस्ल सुधार में आसानी हो. प्रत्येक गाय के दुग्ध उत्पादन, प्रजनन, रोग संक्रमण आदि का डाटा पशु डॉक्टरों द्वारा तैयार किया जाता है.

साहीवाल ज्यादा शानदार

साहीवाल नस्ल राजस्थान के सीमावर्ती मथुरा क्षेत्र में काफी सफल है. इस पर तापमान का प्रतिकूल प्रभाव पिछले दो साल में नहीं देखा गया है. वहीं गिर गाय पर गर्मियों का ज्यादा असर देखा गया है. सुबह जिस गिर गाय से 5 लीटर दूध मिलता है, गर्मी बढ़ने के कारण शाम को वह दो या तीन लीटर दूर पर आ जाती है.

हो रहे हैं शोध

पाकिस्तान से सटे राजस्थान के थारपाकर इलाके की थारपारकर गाय के विषय में कहा जाता है कि इसके पालन-पोषण पर कम खर्चा होता है. यह गाय सूखा चारा खाकर भी एक परिवार के भरण-पोषण लायक दूध दे देती है. इस बात का ध्यान में रखकर गोशाला में इस नस्ल की गायों पर भी अनुसंधान चल रहा है. गोशाला में पिछले दो सालों में हुए शोध में पाया गया है कि हरियाणा नस्ल की गाय कम दानेचारे के बाद भी सहेत और उत्पादन के हिसाब से काफी अच्छी रही हैं.