आम लोगों को घर का सपना दिखाकर धोखा करने वाले आम्रपाली ग्रुप के डायरेक्टरों को फिलहाल सुप्रीम कोर्ट से कोई राहत मिलती नहीं दिख रही है. कंपनी के मैनेजिंग डायरेक्टर अनिल शर्मा और दो अन्य डायरेक्टरों ने सुप्रीम कोर्ट से अनुरोध किया था कि उन्हें दिवाली पर घर जाने की इजाजत दी जाए. हालांकि कोर्ट ने उनकी दलीलों को ठुकरा दिया और कहा कि आम्रपाली के डायरेक्टरों को खुद से पहले होम बायर्स की दिवाली के बारे में सोचना चाहिए.

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सुप्रीम कोर्ट ने कहा, 'आप उन 46000 होम बायर्स के बारे में सोचिए, उनकी दिवाली कैसे मनेगी. आपकी तो रोज दिन में होली, रात में दिवाली होती है.' इसके साथ ही साफ हो गया है कि आम्रपाली के डायरेक्टरों की दिवाली घर से दूर पुलिस की निगरानी में होटल के कमरे में ही मनेगी. इससे पहले आम्रपाली की वकील ने कोर्ट से कहा था कि दिवाली पर आम्रपाली के डायरेक्टरों को घर जाने की इजाजत दी जानी चाहिए.

इस पर कोर्ट ने कहा कि आम्रपाली के डायरेक्टर्स ने कभी ये सोचा है कि आम्रपाली से घर खरीदने वाले हजारों लोगों की दिवाली कैसे मनेगी. ये लोग अपना घर खरीदने के बाद भी किराए के मकान में रह रहे हैं. ये एक तरफ तो ईएमआई दे रही हैं और दूसरी तरफ इन्हें मकान का किराया भी चुकाना पड़ रहा है. 

सीएफओ पर कसा शिकंजा

इस बीच फॉरेंसिंक ऑडिटर्स ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि कंपनी के मुख्य वित्तीय अधिकारी (सीएफओ) की सैलरी थी हर महीने सिर्फ 50 हजार रुपये और आम्रपाली की सहायक कंपनी ने उनका दो करोड़ रुपये का बकाया यूं ही चुका दिया. दो करोड़ रुपये की ये भारी भरकम राशि आयकर के रूप में बकाया था.

आम्रपाली ने अपने सीएफओ चंदर वाधवा पर और भी मेहरबानियां कीं. 50 हजार रुपये वेतन पाने वाले इस कर्मचारी को कंपनी ने 43 लाख रुपये की लक्जरी का दे रखी थी. जस्टिस अरुण मिश्रा और यूयू ललित की खंडपीठ ने फॉरेंसिक ऑडिटर्स के इस खुलासे के बाद सीएफओ वाधवा से कहा कि वो गुरुवार तक बताएं कि कंपनी से उन्हें और क्या क्या फायदे मिले हैं.