अर्थव्यवस्था में ‘K-आकार’ की रिकवरी पर एसबीआई की रिपोर्ट ने उठाए सवाल, जानें इकनॉमी के 5 ट्रेंड
भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) ने सोमवार को एक शोध रिपोर्ट में कहा कि भारत में महामारी के बाद अर्थव्यवस्था में के-आकार के पुनरुद्धार के बारे में किए जाने वाले दावे ‘दोषपूर्ण, पूर्वाग्रह से ग्रसित और मनगढ़ंत’ हैं.
भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) ने सोमवार को एक शोध रिपोर्ट में कहा कि भारत में महामारी के बाद अर्थव्यवस्था में के-आकार के पुनरुद्धार के बारे में किए जाने वाले दावे ‘दोषपूर्ण, पूर्वाग्रह से ग्रसित और मनगढ़ंत’ हैं. इस रिपोर्ट के मुताबिक, महामारी के बाद भारतीय परिवार अपनी बचत को अचल संपत्ति सहित विभिन्न भौतिक संपत्तियों में नए सिरे से लगा रहे हैं.
रिपोर्ट कहती है, ‘‘महामारी के बाद अर्थव्यवस्था में के-आकार के सुधार पर बार-बार होने वाली बहस दोषपूर्ण, पूर्वाग्रह से ग्रसित और मनगढ़ंत है. यह चुनिंदा तबकों के हितों को बढ़ावा देने वाली भी है जिनके लिए भारत का बेहतरीन उत्थान, जो नए वैश्विक दक्षिण के पुनर्जागरण का संकेत देता है, काफी अप्रिय है.“ के-आकार के पुनरुद्धार का मतलब अर्थव्यवस्था के विभिन्न समूहों की असमान वृद्धि है.
इसमें अर्थव्यवस्था के कुछ क्षेत्र बहुत तेजी से बढ़ते हैं जबकि अन्य क्षेत्रों में गिरावट जारी रहती है या उन्हें संघर्ष का सामना करना पड़ता है. एसबीआई की रिपोर्ट कहती है कि कोविड-19 महामारी के बाद कम ब्याज दरों का लाभ उठाने के लिए भारत में भी वैश्विक रुझान के मुताबिक अपनी बचत को वित्तीय परिसंपत्तियों ने निकालकर भौतिक परिसंपत्तियों में लगाने का रुझान देखा गया है.
हालांकि, हालिया आंकड़ों से पता चलता है कि 2023 के बाद से एक बार फिर वित्तीय परिसंपत्तियों की तरफ ध्यान बढ़ रहा है. रिपोर्ट के मुताबिक, ‘‘लोगों के आयकर रिटर्न आंकड़ों से पता चलता है कि वित्त वर्ष 2014-22 के दौरान व्यक्तिगत आय असमानता 0.472 से घटकर 0.402 हो गई है.’’ इसके साथ ही एमएसएमई इकाइयों की आमदनी के तरीके में भी बदलाव आया है.
यह उद्योग/ सेवाओं की बदलती रूपरेखा को दर्शाता है क्योंकि अधिक संस्थाओं को औपचारिक दायरे में लाया गया है. सूक्ष्म आकार की लगभग 19.5 प्रतिशत कंपनियां अपनी आय को बढ़ाने में सक्षम हुई हैं, ताकि वे छोटी, मध्यम एवं बड़े आकार की कंपनियों के रूप में वर्गीकृत की जा सकें. इससे साफ तौर पर पता चलता है कि एमएसएमई इकाइयों का आकार बढ़ रहा है और उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन (पीएलआई) योजना जैसी पहल के साथ वे बड़ी मूल्य श्रृंखलाओं का हिस्सा बन रही हैं.