उद्योगपति विजय माल्या के कर्ज लेने को लेकर भारतीय स्टेट बैंक की भूमिका पर सवाल उठे हैं. इसमें माल्या के लोन डिफॉल्ट को लेकर सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील दुष्यंत दवे ने कहा कि उन्होंने विजय माल्या के भारत छोड़ने के लगभग 24 घंटे पहले देश के सबसे बड़े बैंक एसबीआई को माल्या का पासपोर्ट जब्त करवाने की सलाह दी थी. मगर बैंक ने इस पर गंभीरता नहीं दिखाई.

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दवे ने यह भी दावा किया है कि उन्होंने एसबीआई के वकील के रूप में, माल्या को देश छोड़कर भागने से रोकने के लिए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाने के लिए एसबीआई को सुप्रीम कोर्ट आने के लिए भी कहा था. लेकिन वह कोर्ट के बाहर इंतजार करते रहे और एसबीआई से कोई अधिकारी कोर्ट नहीं पहुंचा. इन गंभीर आरोपों पर एसबीआई के चेयरमैन रजनीश कुमार ने कहा है कि यह जरूरी नहीं है कि किसी बड़े ग्राहक का मामला बैंक के चेयरमैन के सामने लाया जाए. 

स्टेट बैंक के चेयरमैन ने स्पष्ट तौर पर कहा, ऐसे मामले में एसबीआई के चेयरमैन कुछ नहीं कर सकते. उनका कहना है कि बैंक का ग्राहक चाहे कितना भी बड़ा हो और कर्ज का मामला चाहे कितना भी गंभीर हो, इस काम के लिए बैंक की एक विशेष टीम है जो ऐसे मामलों पर फैसले लेती है. लिहाजा जरूरी नहीं है कि इस मामले में भी कोई मुद्दा चेयरमैन के संज्ञान में लाया गया हो. 

बिजनेस टुडे की खबर के मुताबिक, हालांकि रजनीश कुमार ने कहा कि उन्हें फिलहाल यह जानकारी नहीं है कि एसबीआई की पूर्व चेयरमैन अरुणधति भट्टाचार्य को विजय माल्या के फरार होने या कर्ज की वसूली की कोशिशों की जानकरी थी या नहीं. रजनीश कुमार ने कहा कि वह बैंक में इस मामले से जुड़े दस्तावेजों के देखने के बाद ही कुछ बता सकते हैं.

साथ ही रजनीश कुमार ने यह भी कहा कि दुष्यंत दवे एसबीआई के वकील नहीं थे. उनका कहना है कि यदि दवे कभी एसबीआई के वकील रहे हैं तो वह मीडिया के सामने अपना एंगेजमेंट लेटर पेश करें. कुमार ने कहा कि किसी भी पेशेवर के लिए यह उचित नहीं है कि वह अपने क्लाइंट के साथ हुई वार्ता को मीडिया के जरिए जगजाहिर करे.