अधूरे प्रोजेक्ट्स को पूरा करने के लिए स्ट्रेस फंड और रेरा (रियल एस्टेट रेगुलेशन एंड डेवलपमेंट एक्ट) को और मज़बूत करने के लिए नियमों में भी बदलाव की तैयारी की जा रही है. रेरा को जिस मकसद से बनाया गया था, अभी तक वह टारगेट हासिल नहीं हुआ है. रेरा को लेकर बिल्डर-बायर के बीच की दूरी कम करने की कोशिश की गई लेकिन, अभी तक ठोस नतीजे नहीं निकले हैं. दरअसल, पिछले कई सालों से रियल एस्टेट मंदी से जूझ रहा है और ऐसे में सरकार इस कोशिश में है कि जल्द ही इस मंदी को दूर किया जा सके. 

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हाउसिंग एंड अर्बन अफेयर सेक्रेटरी दुर्गा शंकर मिश्रा के मुताबिक, रियल एस्टेट रेग्युलेशन एक्ट यानी रेरा जिसे होम बायर्स को हितों की सुरक्षा के लिए बनाया गया था, अब इसके नियमों में बदलाव करने का वक्त आ गया है. 

दरअसल, RERA को लेकर हाउसिंग मंत्रालय को काफी इनपुट मिला है जिसकी बदौलत इसमें बदलाव करने की ज़रुरत है. रेरा को कामयाब करने के लिए वर्कशॉप लगाए गए. इन वर्कशॉप से कई अहम सुझाव मिले हैं, जिस पर विचार किया जा सकता है.

सरकार रेरा के जिन प्रावधानों में सुधार करने की दिशा में काम कर रही है, उनसे सभी को फायदा होगा, जिनमें डेवलपर्स से लेकर घर के खरीदार तक शामिल हैं. 

हाउसिंग एंड अर्बन अफेयर सेक्रेटरी दुर्गा शंकर मिश्रा ने बताया कि रेरा को मज़बूत करने के लिए लोकल स्तर पर कई वर्कशॉप आयोजित की गईं. इन वर्कशॉप में पाया गया कि कुछ रेरा अथॉरिटी तो काफी एक्टिव हैं और कुछ काफी ज़्यादा तेज़ी से काम कर रही हैं जबकि, कुछ में अधिक काम नहीं हो रहा है. इसलिए, उन्होंने रीजनल स्तर पर रेरा अधिकारियों के बीच बातचीत को बढ़ावा देने का फैसला लिया है. हर राज्य महाराष्ट्र के रेरा प्राधिकरण महारेरा द्वारा किए जा रहे अच्छे काम से सीख सकता है.

क्या होने चाहिए बदलाव

यूपी रेरा के सदस्य बलविंदर कुमार के मुताबिक, फिलहाल रेरा को 'डायरेक्टिव इश्यू' का अधिकार मिलना चाहिए. मतलब रेरा को अगर नोएडा, ग्रेटर नोएडा या यमुना एक्सप्रेसवे अथॉरिटी से किसी डॉक्यूमेंट्स की ज़रुरत पड़ती है तो इसे देने के लिए मजबूर नहीं है. वहीं बैंक या किसी और संस्था से भी पूरी तरह से मदद नहीं मिल पाती. अगर ऐसा अधिकार मिल जाए कि नोटिस जारी होने के बाद उसके लिए मजबूर होना पड़ेगा और इससे काफी हद तक मुश्किलों का हल हो सकता है. वहीं, बिल्डर को समन जारी करने का अधिकार भी मिलना चाहिए.  

एक्सपर्टस का नज़रिया

रेरा एक्सपर्ट वेकेंट राव मानते हैं कि फिलहाल रेरा में काफी काम होना बाकी है. कई ऑर्डर ऐसे जारी किए जा रहे हैं जिसमें प्रोजेक्ट को लेकर समस्या एक जैसी हैं और ऑर्डर अलग तरह के जारी किए जा रहे हैं. साथ में प्रोजेक्ट्स रजिस्ट्रेशन को लेकर भी काफी समस्या बनी हुई हैं.

कई राज्यों में रेरा के नियम कहते हैं कि अगर प्रोजेक्ट 60 फीसदी बना है और ऑक्यूपेंसी सर्टिफिकेट आ चुका है तो वह प्रोजेक्ट रजिस्ट्रेशन से बाहर है. महाराष्ट्र रेरा कहता है कि ऑक्यूपेंसी सर्टिफिकेट आने के बाद प्रोजेक्ट रजिस्ट्रेशन के बाहर हो जाता है. रिफंड को लेकर भी काफी संशय है. कई रेरा अथॉरिटी 45 दिन का ऑर्डर जारी करती है और कई 90 दिन का ऑर्डर देती हैं. इस नियम में भी एक स्टैंडर्ड अपनाने की ज़रुरत है. रेरा को बिल्डर और बायर को ऑर्डर जारी करने के अलावा किसी ऐसी अथॉरिटी को ऑर्डर जारी नहीं कर सकती जिसमें उस प्रोजेक्ट का हित हो. यानी बैंक या म्युनिसिपल और कॉरपोरेशन किसी भी संस्था को ऑर्डर जारी नहीं कर सकती.  

रेरा से कितना मिला फ़ायदा

नेफोवा के प्रेसीडेंट अभिषेक कुमार का कहना है कि पहले जब केंद्र सरकार ने रेरा को बनाया था तो काफी हद तक घर खरीदारों के हितों के लिए सुरक्षा कवच की तरह लग रहा था लेकिन राज्य की सरकारों ने इसे बदल दिया. नए प्रोजेक्ट्स के लिए रेरा तो ठीक था लेकिन पुराने प्रोजेक्ट्स पर रेरा ने पूरी तरह निराश किया है.

यूपी की बात करें तो ग्रेटर नोएडा में रेरा की बेंच सुनवाई करती है और फैसला भी लेती है, लेकिन उसके द्वारा जारी किया ऑर्डर लागू नहीं हो पाता. कई फैसले ऐसे दिए गए जहां कहा गया कि बायर को बिल्डर पूरी रकम वापस करेगा लेकिन अभी तक एक फैसला ऐसा नहीं देखने को मिला, जिसमें इसे लागू किया जा सके. अगर रेरा को 'कागज़ी शेर' कहा जाए तो गलत नहीं होगा. रेरा को ज्यूडिशियल पॉवर देना काफी ज़रुरी है ताकि होम बायर्स को इंसाफ मिल सके. 

 

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बायर पुनीत पराशर बताते हैं कि नोएडा और ग्रेटर नोएडा में कई ऐसे प्रोजेक्ट्स हैं जिसमें 6-7 साल की देरी हो चुकी है और रेरा में शिकायत करने के बाद भी अभी तक कोई हल नहीं निकला है. कई प्रोजेक्ट्स ऐसे हैं जिसमें अभी तक कंस्ट्रक्शन का काम भी शुरु नहीं हुआ है और बायर्स के हित में फैसला दिया गया, बावजूद इसके अभी तक होम बायर्स के हाथ खाली हैं. ज़रुरत है कि जो केंद्र सरकार रेरा के नियम बनाती है, उसे बिना बदलाव किए राज्य सरकारें लागू करें ताकि घर ख़रीदारों को सपनों का आशियाना मिल सके और किसी तरह की धोखाधड़ी न हो सके. 

क्या कहते हैं बिल्डर्स

क्रेडाई के गीतांबर आनंद का कहना है कि रेरा को बनाकर सरकार ने अच्छा काम किया है और काफी हद तक ट्रांसपेरेसी भी बढ़ी है. अब जिस तरह से बदलाव की बात की जा रही है, उसमें काफी कदम उठाने की ज़रुरत है. रेरा में बायर्स के अलावा बिल्डर्स की भी सुनवाई होनी काफी ज़रुरी है. अगर प्रोजेक्ट सरकारी मंज़ूरियों की वजह से देर होता है, ऐसे प्रावधान होने चाहिए कि रेरा उसकी पूरी तरह से तहकीकात करे और बिल्डर्स के हक में भी फैसले दे. एनवॉयरमेंट की क्लियरेंस के लिए काफी समय लगता है जिसकी वजह से प्रोजेक्ट में देरी होती है. 

(रिपोर्ट- गौरव खोसला/ नई दिल्ली)