Ravi Shankar sharma: भारत रत्न से सम्मानित पंडित रविशंकर का सितार से था अटूट रिश्ता, इस गाने ने बदली जिंदगी
Ravi Shankar sharma: पंडित रविशंकर का अपने सितार से गहरा जुड़ाव था. वे दुनिया में कहीं भी शो करने जाते तो प्लेन में उनके लिए दो सीटें बुक की जाती थीं. एक सीट पंडित रविशंकर के लिए, दूसरी उनके सितार सुरशंकर के लिए.
Ravi Shankar sharma: भारत रत्न से सम्मानित पंडित रविशंकर का सितार से था अटूट रिश्ता, इस गाने ने बदली जिंदगी
Ravi Shankar sharma: भारत रत्न से सम्मानित पंडित रविशंकर का सितार से था अटूट रिश्ता, इस गाने ने बदली जिंदगी
Ravi Shankar sharma: भारतीय शास्त्रीय संगीत को पूरी दुनिया में लोकप्रियता के नए आयाम देने वाले सितार वादक पंडित रविशंकर का जन्म 1920 में हुआ था. तीन सर्वोच्च भारतीय नागरिक पुरस्कारों से सम्मानित, शंकर का 92 वर्ष की आयु में दिसंबर 2012 को कैलिफोर्निया में निधन हो गया. रविशंकर को बचपन से ही संगीत में रुचि थी. पंडित जी 10 साल की उम्र से ही अपने भाई के डांस ग्रुप का हिस्सा थे. शुरुआत में उनका झुकाव डांस पर था. पर 18 साल की उम्र में उन्होंने सितार सीखना शुरू किया और इसके लिए मैहर के उस्ताद अलाउद्दीन खान से दीक्षा ली. पंडित रविशंकर का अपने सितार से गहरा जुड़ाव था. वे दुनिया में कहीं भी शो करने जाते तो प्लेन में उनके लिए दो सीटें बुक की जाती थीं. एक सीट पंडित रविशंकर के लिए, दूसरी उनके सितार सुरशंकर के लिए.
काम के लिए मिला कई सम्मान
पंडित रविशंकर ने उस्ताद अलाउद्दीन खां से सितार सीखना शुरू किया. इसके लिए वो मैहर गए. उन्होंने अपने गुरु की बेटी अन्नपूर्णा देवी से पहली शादी की. 20 साल बाद रविशंकर और अन्नपूर्णा अलग हो गए. अन्नपूर्णा से अलग होकर वो नृत्यांगना कमला शास्त्री के साथ रहे. राबिन्द्र शंकर चौधरी को लोग पंडित रविशंकर के नाम से जानते हैं. पंडित रविशंकर एक भारतीय सितार वादक और संगीतकार थे. उन्होंने अपनी कला के माध्यम से एशिया सहित पूरे विश्व में खूब नाम कमाया. उनकी खूबसूरत कला के लिए भारत सरकार ने 1999 में भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान, भारत रत्न से सम्मानित किया गया था.
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मां के आंचल में हुई परवरिश
रविशंकर का जन्म एक बंगाली परिवार में हुआ था. उनके पिता श्याम शंकर चौधरी अंग्रेजों के अधीन एक स्थानीय बैरिस्टर के रूप में सेवा करने के बाद एक वकील के रूप में काम करने के लिए लंदन चले गए थे. उन्हें उनकी मां ने पाला था और आठ साल की उम्र तक वह अपने पिता से नहीं मिले थे. 1930 में वह एक संगीत मंडली का हिस्सा बनने के लिए पेरिस चले गए और बाद में अपने भाई उदय शंकर की नृत्य मंडली में शामिल हो गए.
रविशंकर का सितार से था अटूट रिश्ता
जब वे 18 वर्ष के थे तब कोलकाता में एक संगीत कार्यक्रम में उन्होंने अमिया कांति भट्टाचार्य को शास्त्रीय वाद्य यंत्र बजाते सुना. प्रदर्शन से प्रेरित होकर, पंडित रविशंकर ने फैसला किया कि उन्हें भी भट्टाचार्य के गुरु उस्ताद इनायत खान के तहत सितार सीखना चाहिए. इस तरह सितार उनके जीवन में आया और अंतिम सांस तक उनके साथ रहा. रवि शंकर 1986 से लेकर 1992 तक राज्यसभा के सदस्य भी रहे. यही नहीं रवि शंकर को तीन बार ग्रैमी अवार्ड मिल चुका है.
बहुत दिनों तक आकाशवाणी में किया काम
अपने गुरु उस्ताद इनायत खान से सितार बजाना सीखने के बाद, वे मुंबई चले गए. जहां उन्होंने इंडियन पीपुल्स थिएटर एसोसिएशन के लिए काम किया. वहां उन्होंने 1946 तक बैले के लिए संगीत तैयार करना शुरू किया. इसके बाद वे नई दिल्ली रेडियो स्टेशन ऑल-इंडिया रेडियो (एआईआर) के निदेशक बने, जो 1956 तक इस पद पर रहे. आकाशवाणी में अपने समय के दौरान, शंकर ने ऑर्केस्ट्रा के लिए रचनाएं की.
स्टेज पर आखिरी परफॉर्मेंस
तबीयत खराब होने के बाद भी रविशंकर ने 4 नवंबर 2012 को कैलिफोर्निया में अपनी बेटी अनुष्का के साथ आखिरी बार परफॉर्म किया. प्रस्तुति से पहले उनकी तबियत इतनी खराब थी कि ऑक्सीजन मास्क पहनना पड़ा था. उनके खराब स्वास्थ्य की वजह से ये कार्यक्रम पहले 3 बार टाला जा चुका था. देश-विदेश के तमाम पुरस्कारों के अलावा उन्हें तीन बार ग्रैमी पुरस्कार भी मिले. भारत में उन्हें सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से भी नवाजा गया है. 1986 से 1992 तक वे राज्यसभा के मनोनीत सदस्य भी रहे. 12 दिसंबर 2012 को अमेरिका के सैन डिएगो के एक अस्पताल में उनका निधन हो गया.
कई गाने हुए लोकप्रिय
रविशंकर शर्मा के कई गाने काफी लोकप्रिय हुए. जिनमें 'आज मेरे यार की शादी है', 'डोली चढ़ के दुल्हन ससुराल चली', 'मेरा यार बना दुल्हा…' और बाबुल की दुआएं लेती जा काफी फेमस हुए. गोयल ने फिल्म वचन में काम दिया और उन्होंने आशा भोंसले के साथ गाया गाना “चंदा मामा दूर के पुआ पकाए पूर के”. यह गाना जबरदस्त हिट हुआ. पहली फिल्म में रवि की आवाज को हर किसी ने पसंद किया लेकिन बॉलीवुड में मुकाम हासिल करने में उन्हें 5 साल लग गए.
इस गाने ने बदली जिंदगी
1960 में गुरुदत्त की क्लासिक फिल्म ‘चौदहवीं का चांद’ आई और इसके बाद रवि ने फिल्म इंडस्ट्री में बतौर संगीतकार अपनी जगह कायम कर ली. रवि को अपने शानदार करियर और काम के लिए दो बार फिल्म फेयर पुरस्कार से नवाजा गया। पहली बार 1961 में फिल्म ‘घराना’ के सुपरहिट म्यूजिक के लिए रवि को फिल्म फेयर मिला तो दूसरी बार 1965 में फिल्म ‘खानदान’ के लिये उन्हें फिल्म फेयर दिया गया. रवि ने अपने चार दशक लंबे करियर में करीब 200 फिल्मों और गैर फिल्मी गानों में संगीत दिया.
12:00 PM IST