One Nation One Election: केंद्रीय कैबिनेट ने 'वन नेशन-वन इलेक्शन' के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है. 'वन नेशन, वन इलेक्शन' को पीएम मोदी ने देश की जरूरत बताया है. उन्होंने कहा है कि 'वन नेशन, वन इलेक्शन' के पीछे कोई राजनीतिक मकसद नहीं है.

COMMERCIAL BREAK
SCROLL TO CONTINUE READING

लेकिन, क्या आप जानते हैं कि देश में पहली बार लोकसभा के चुनाव हुए थे तो उसके साथ ही अन्य राज्यों में विधानसभा के चुनाव भी हुए थे. आपको बताते हैं कि देश में कब से कब तक एक साथ चुनाव हुए और 'वन नेशन, वन इलेक्शन' के लागू होने से भारत को क्या फायदा होगा.

1951-52 में हुए थे पहली बार चुनाव

भारत की आजादी के चार साल बाद यानि 1951-52 में पहली बार देश में लोकसभा चुनाव हुए. इस दौरान लोकसभा के साथ ही सभी अन्य राज्यों में विधानसभा के चुनाव भी हुए थे, ये प्रक्रिया लगातार चार लोकसभा चुनावों तक जारी रही. 1957, 1962 और 1967 में भी एक साथ लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनाव कराए गए थे. हालांकि, 1967 से 1969 के बीच ये सिलसिला टूट गया और कई विधानसभाओं को भंग करना पड़ा.

1971 में समय से पहले हुआ आम चुनाव

साल 1971 में देश में समय से पहले लोकसभा के चुनाव कराए गए. पहली, दूसरी और तीसरी लोकसभा ने पूरे पांच साल का कार्यकाल किया, लेकिन चौथी लोकसभा का कार्यकाल पूरा होने से पहले ही चुनाव का ऐलान कर दिया गया. इंदिरा गांधी के फैसले की वजह से समय से 15 महीने पहले (1971) में लोकसभा के चुनाव कराए गए. तब से ही देश में एक साथ चुनाव कराने की प्रक्रिया खत्म हो गई, हालांकि कुछ राज्यों में अभी भी लोकसभा चुनाव के साथ विधानसभा चुनाव होते हैं.

फिर आई देश में वन नेशन-वन इलेक्शन की मांग

साल 2024 आते-आते एक बार फिर देश में 'वन नेशन, वन इलेक्शन' की मांग ने जोर पकड़ लिया है. अगर संसद में 'वन नेशन, वन इलेक्शन' से जुड़ा बिल पास होता है तो देश को कई बड़े लाभ हो सकते हैं. जैसे कि देश को चुनावों पर होने वाले खर्च में कटौती से छुटकारा मिलेगा. इसके अलावा जनता को बार–बार चुनाव की मार को नहीं झेलना पड़ेगा. यही नहीं, आचार संहिता के लागू होने से सरकारी कामकाज भी बाधित नहीं होंगे.

पूर्व राष्ट्रपति कोविंद की कमेटी ने सौंपी रिपोर्ट

'वन नेशन, वन इलेक्शन' को लेकर पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में गठित समिति ने 14 मार्च 2024 को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को अपनी रिपोर्ट सौंपी थी. समिति का गठन 2 सितंबर 2023 को किया गया था. समिति ने 191 दिन तक राजनीतिक दलों तथा विभिन्न हितधारकों के साथ चर्चा के बाद 18,626 पन्नों की रिपोर्ट तैयार की थी. इसके बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में बुधवार को हुई मंत्रिमंडल की बैठक में कोविंद समिति की सिफारिशों को मंजूरी दे दी गई.