तेल एवं गैस क्षेत्र के नियामक हाइड्रोकार्बन महानिदेशालय (डीजीएच) ने सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनी ओएनजीसी से उसके सबसे शीर्ष 47 क्षेत्रों के बारे में विस्तृत आंकड़े मांगे हैं ताकि उसके उत्पादन और उत्पादन बढ़ाने की परियोजनाओं पर नजर रखी जा सके. एक आधिकारिक आदेश में यह कहा गया है. 

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इससे पहले 2018 के आखिरी महीनों में नीति आयोग के उपाध्यक्ष राजीव कुमार की अध्यक्षता में एक उच्चस्तरीय समिति ने ओएनजीसी के मुंबई हाई, वसई पूर्व जैसे बड़े क्षेत्रों और सात अन्य क्षेत्रों को निजी और विदेशी कंपनियों के हवाले करने पर विचार किया था. लेकिन सरकार और कंपनी के भीतर से विरोध के स्वर उठने के बाद इस योजना को शुरुआती दौर में ही रोकना पड़ा. 

इस समिति की अंतिम रिपोर्ट 29 जनवरी को सौंपी गई जिसमें इस प्रस्ताव को दबा दिया गया और राष्ट्रीय तेल कंपनियों के लिये उनके क्षेत्र विशेष के बारे में उसके विकास के लिये अलग तरह का मॉडल चुनने की आजादी दिये जाने की सिफारिश की गई. यह सिफारिश 59 तेल एवं गैस क्षेत्रों से उत्पादन बढ़ाने को लेकर दी गई है. इनमें ओएनजीसी के 47 क्षेत्र हैं जबकि 12 आयल इंडिया लिमिटेड (आयल) के हैं. ये दोनों कंपनियां ही देश के मौजूदा तेल- गैस उत्पादन में 95 प्रतिशत योगदान करतीं हैं. 

इस रिपोर्ट में राष्ट्रीय तेल कंपनियों से उन्हें नामांकन आधार पर दिये गये सभी क्षेत्रों के बारे में उत्पादन बढ़ाने संबंधी जानकारी देने को कहा गया है. इस रिपोर्ट को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में हुई मंत्रिमंडल की बैठक में 19 फरवरी को मंजूरी दी जा चुकी है. 

इसके बाद हाइड्रकार्बन महानिदेशालय ने 20 मार्च को तेल एवं प्राकृतिक गैस निगम (ओएनजीसी) और आयल इंडिया लिमिटेड (आयल) को जुलाई 2019 के दूसरे सप्ताह तक राष्ट्रीय तेल कंपनियों के सभी नामांकन आधार पर दिये गये 59 क्षेत्रों के बारे में सभी आंकड़े सौंपने को कहा है. 

डीजीएच ने कहा कि राष्ट्रीय तेल कंपनियों को नामांकन आधार पर दिये गये सभी 59 क्षेत्रों के बारे में आंकड़े सौंपने की समयसारिणी को पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्रालय के सचिव की अध्यक्षता में हुई सात मार्च की बैठक में अंतिम रूप दिया गया. 

इस पूरी कवायद का मकसद तेल एवं गैस का उत्पादन बढ़ाना है. प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 2022 तक कच्चे तेल आयात पर निर्भरता को 10 प्रतिशत घटाकर 67 प्रतिशत पर लाने का लक्ष्य तय किया है. लेकिन इसके बावजूद देश में गिरते घरेलू उत्पादन और बढ़ती मांग के चलते आयात निर्भरता 83 प्रतिशत तक पहुंच गई है.