दुनिया में सबसे ज्यादा दूध उत्पादन करने में भारत नंबर वन है. बावजूद इसके हमारे यहां डेरी किसानों के हालात अच्छे नहीं हैं. हम दूध उत्पादन में तो सबसे आगे हैं, लेकिन प्रति पशु दूध उत्पादन में सबसे पीछे. अगर प्रति पशु दूध उत्पादन की बात करें तो हमारे यहां दूध उत्पादन का औसत महज तीन लीटर प्रति पशु है, जबकि यही औसत ऑस्ट्रेलिया में 16 और इजराइल में 36 लीटर प्रति पशु है. हम दूध उत्पादन में सबसे आगे इसलिए हैं कि हमारे पास 300 मिलियन पशु हैं. 

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पशु और पशु पालकों के उत्थान के लिए यहां काम तो बहुत हो रहे हैं, लेकिन उन कामों का नतीजा जरूरतमंदों तक नहीं पहुंच पा रहा है. ऑस्ट्रेलिया में खुद का बड़ा इंस्टीट्यूट चला रहे पंजाब के परम सिंह, जो कि खुद एक किसान परिवार से आते हैं, को भारत के किसानों की दशा अक्सर परेशान करती थी. परम सिंह को भारत के किसानों की सेवा का ऐसा जुनून चढ़ा कि उन्होंने अपना कारोबार बंद कर किसानों की उन्नति के लिए अपना सबकुछ दाव पर लगा दिया. 

एक सपने ने बदली सोच

परम सिंह पंजाब के गुरदासपुर जिले के बटाला शहर के रहने वाले हैं. 12वीं तक की पढ़ाई उन्होंने वहीं की और अमृतसर से बीटेक की डिग्री हासिल की. आगे की पढ़ाई के लिए वह 2003 में ऑस्ट्रलिया गए. 2005 में यूनिवर्सिटी के टॉप स्टूडेंड का अवार्ड मिला. पढ़ाई में रुचि थी और इसी में करियर बनाना था. इसलिए मास्टर करने के बाद यूनिवर्सिटी में ही ट्यूटर की जॉब मिल गई. 6 महीने के बाद सीधा लेक्चरर नियुक्त हो गए. 2-3 साल यूनिवर्सिटी में पढ़ाने का काम किया. 

दोस्तों के साथ 2008 में वाकेशनल इस्टीट्यूट खोल लिया. परम के कॉलेज को 2010 में स्टेट का बेस्ट कॉलेज का अवॉर्ड में मिला. परम बताते हैं कि एक रात उन्हें ऐसा सपना आया कि उन्हें समाज के लिए कुछ करना है. सपने की बात सुबह पत्नी को बताई और फैसला कर लिया कि पैसे के पीछे नहीं भागना. समाज के लिए कुछ करना है.

 किसानों की सेवा के लिए बेच दिया कॉलेज

परम बताते हैं कि जब समाज सेवा की बात सोची तो सपना देखा कि 2030 तक 100 मिलियन लोगों की मदद करना है. और इस काम के लिए उन्होंने अपना कॉलेज बेचने का फैसला किया. 2014 में उन्होंने अपना कॉलेज बेच दिया और दोस्तों को उनका हिस्सा देकर उनके पास जो भी पैसा बचा उसमें से 50 फीसदी हिस्सा भारत में लगाने का फैसला किया. 

इस फैसले में उनकी पत्नी सुखदीप कौर ने भी पूरा सहयोग दिया. परम अपने परिवार के साथ ऑस्ट्रेलिया में ही रहते हैं और महीने में 20 दिन भारत में बिताते हैं और गांव-गांव घूमकर किसानों के उत्थान के लिए कुछ ना कुछ सोचते रहते हैं.

Mooo farm

राष्ट्रीय कौशल विकास योजना (National Skill Development Corporation) में उदय नाम से एक कंपनी रजिस्टर्ड करा ली. उद्य के बैनर तले 11 क्षेत्रों में गांव-देहात के नौजवानों के अंदर कौशल विकसित करने का काम कर रहे हैं. 2016 में किसानों के लिए काम करने का अपने लक्ष्य तय किया.

अगर 100 मिलियन लोगों की मदद करनी है तो इसके लिए कृषि क्षेत्र से बढ़कर और क्या हो सकता है. इसके लिए मू-फार्म (Mooo farm) की स्थापना की. 1 साल के अंदर 4 हजार डेरी किसानों को अपने साथ जोड़ा है.

कैसे करते हैं काम

परम सिंह ने अपने साथ नए प्रयोगों के लिए नौजवानों को जोड़ा है. कृषि पर काम करने के लिए उन्होंने अपने साथ कृषि वैज्ञानिकों और पशु चिकित्सकों को अपने साथ जोड़ा. एक वैन तैयार की और किसानों के साथ काम करना शुरू किया. शुरू में चार चीजों पर फोकस किया. एनीमल ब्रीडिंग, फीडिंग और फार्म मैनेजमेंट पर उन्होंने काम करना शुरू किया. किसानों को पशु पालन के वैज्ञानिक तरीकों से रूबरू कराया. पशुओं के स्वास्थ्य, उनकी देखरेख, उनकी नस्ल तथा उनके खानपान संबंधी जानकारी देनी शुरू की. पशु और पशु पालकों की समस्त जानकारी को एक ही मंच पर लाने के लिए मू-फार्म ऐप तैयार किया.

किसानों को हो रहा है फायदा

मू-फार्म के जरिए परम पंजाब के 10 हजार किसानों से संपर्क स्थापित कर चुके हैं. मू-फार्म की टीम रोजाना किसानों से संपर्क स्थापित करती है और उसका विवरण मू-फार्म पर अपलोड किया जाता है. इससे किसानों में अपने पशुओं के स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता बढ़ रही है. खुद किसानों का कहना है कि मू-फार्म से जुड़कर पशुपालन पर होने वाला उनका खर्च कम हुआ है और दूध उत्पादन बढ़ा है. 

परम सिंह ने बताया, "हमारे प्रशिक्षक किसानों के कौशल स्तर को बढ़ाने के लिये सामग्री दे रहे हैं, जिसे ग्राम स्तर के उद्यमियों के माध्यम से पहुंचाया जा रहा है. हम उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान, आंध्र प्रदेश, हरियाणा और ओडिशा पर ध्यान दे रहे हैं." 

दुनिया की सबसे बड़ी कैटल डायरेक्टरी

मू-फार्म को दुनिया की सबसे बड़ी कैटल डायरेक्टरी तैयार करना है. जब भी हम किसी किसान को अपने साथ जोड़ते हैं तो किसान और उनके पशु की हर जानकारी जैसे पशु की जन्म तारीख, उसकी नस्ल आदि की सारी जानकारी मू-फार्म ऐप से जोड़ते हैं. किसान अपनी ज्यादा से ज्यादा जानकारी मू-फार्म पर शेयर करें, इसके लिए हर जानकारी के लिए किसान को प्वाइंट दिए जाते हैं. 

 

'द कलर ऑफ मिल्क' अभियान

परम सिंह ने भारतीय पशु पालकों की स्थिति में सुधार लाने के लिए 'कलर ऑफ मिल्क' अभियान शुरू किया है. इस अभियान के तहत वह लोगों से सवाल पूछ रहे हैं कि आपके दूध का रंग कैसा है, जवाब मिलता है सफेद. अब सवाल उठता है कि आपका दूध कितना सफेद है. यानी आप जो दूध जिस खुशी से पी रहे हैं क्या उसका देने वाला किसान भी उतना ही खुशहाल है. या फिर जो हम दूध पी रहे हैं उसकी गुणवत्ता क्या है. इसी बात को ध्यान में रखते हुए उन्होंने यह अभियान शुरू किया है. 

दो लाख किसानों को देंगे ट्रेनिंग

मू-फार्म किसानों की आय में कम से कम 20 प्रतिशत की वृद्धि करने के लिये 2020 तक भारत के दो लाख डेयरी किसानों को प्रशिक्षित करेगी. वह पशु पोषण जैसे क्षेत्रों में किसानों के कौशल को बढ़ाने के मदद करेगी.