लॉकडाउन (Lockdown) के चलते किसानों को अपनी फसल जैसे-अनाज, फल-सब्जी को मंडी या अन्य शहरों में ले जाने में दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है. हालांकि केंद्र सरकार ने खेती-बाड़ी से जुड़े तमाम कामों को लॉकडाउन से मुक्त रखा है. फिर भी कई जगहों से किसानों को ट्रांसपोर्ट के साधन नहीं मिलने से अपने फलों को बहुत ही कम दामों पर बेचना पड़ रहा है.

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महाराष्ट्र से तो ऐसे कई मामले आए जिसमें किसानों के अपने अंगूर या दूसरे फलों को सड़कों पर ही डाल दिया. 

ऐसे हालात से निपटने के लिए सरकार ने 'बाजार हस्तक्षेप योजना-Market Intervention Price Scheme ' को फौरन लागू कर दिया था. इस योजना का फायदा उठाकर किसान अपने उन फल या सब्जियों का कम कीमत पर बेचने की मजबूरी से बच सकते हैं, जो जल्दी खराब हो जाते हैं.

कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर (Narendra Singh Tomar) ने बताया कि उन्होंने कुछ दिन पहले महाराष्ट्र के किसानों के बात की थी तो यह मुद्दा सामने आया कि लॉकडाउन के चलते किसानों को फल-सब्जियों के दाम नहीं मिल रहे हैं. 

कृषि मंत्री ने बताया कि इस समस्या को देखते हुए केंद्र से फौरन ही 'बाजार हस्तक्षेप योजना' लागू कर दी.  बाजार हस्तक्षेप योजना (Market Intervention Price Scheme) को इसलिए लागू किया गया है कि जल्द खराब होने वाली फसलों (Perishable Fruits and Vegetable) के किसानों को अच्छे दाम मिल सकें.

 

बाजार हस्तक्षेप योजना

बाजार हस्तक्षेप योजना (MIS) के तहत खेती और बागवानी (horticultural commodities) के ऐसे उत्पादों की राज्य सरकार खरीद करती है, जो जल्दी खराब हो जाती हैं, जैसे कि फल-सब्जियां.

MIS योजना के मुताबिक, जिन फल या सब्जी का मूल्य बाजार मूल्य से 10 परसेंट कम हो या फिर पैदावार 10 परसेंट से ज्यादा बढ़ जाए तो राज्य सरकारें इस योजना का लागू करके किसानों को होने वाले नुकसान को कम कर सकती हैं.

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एक तय समय के लिए फल-सब्जियों के बाजार हस्तक्षेप तय किए जाते हैं और फिर पहले से तय की गई मात्रा में फल-सब्जियों की खरीद की जाती है.

राज्य सरकार किसानों से उनकी फल-सब्जियों बाजार मूल्य पर खरीदकर स्टोर करती है. इस योजना के तहत किसानों की फसल खरीद पर राज्य सरकार को होने वाले नुकसान की भरपाई केंद्र और राज्य, दोनों सरकार मिलकर उठाती हैं.

कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने बताया कि बाजार हस्तक्षेप योजना (MIS) के तहत फसल खरीद पर होने वाले आर्थिक नुकसान का आधा हिस्सा केंद्र सरकार और आधा हिस्सा राज्य सरकार वहन करती है. पूर्वोत्तर राज्यों में केंद्र सरकार की नुकसान में भागीदारी 75 परसेंट की होगी.