मैंगलोर को महकाने वाले 'आमलेट भंडारी' होंगे रिटायर, पिछले 50 वर्षों में बनाई अलग पहचान
रामचंद्र भंडारी ने आज से लगभग 50 साल पहले एक बहुत बड़ा जोखिम उठाने का फैसला किया और वह था आमलेट की बिक्री का काम शुरू करना.
कर्नाटक का तटीय शहर मैंगलोर (मैंगलुरु) अपनी खूबसूरती के साथ-साथ कई और चीजों के लिए भी मशहूर है. अरब सागर और पश्चिमी घाट के बीच बसा मंगलौर सदियों से वाणिज्यिक गतिविधियों का केंद्र रहा है. यहां आप शाम को घूमने-फिरने के लिए निकलें तो नुक्कड़-चौराहों पर खाने-पीने के स्टॉल आपको अपनी ओर आकर्षित करेंगे. अगर आप अंडा खाने के शौकीन हैं तो आपको मैंगलुरु के किसी भी छोर पर अच्छे आमलेट के बारे में बात करेंगे तो वह आपको पलभर में 'आमलेट भंडारी' का नाम और पता बता देगा.
'आमलेट भंडारी' मैंगलुरु में खाने-पीने के मामले में मशहूर नाम है. यहां आपको 74 वर्षीय शिवगूड़ रामचंद्र भंडारी पूरी तल्लीनता के साथ आमलेट बनाते हुए दिखाई देंगे. इस उम्र में भी अंडा फोड़ने और फैटने के लिए मशीन की तरह चलती उनकी उंगलियां और चेहरे पर मंद मुस्कान आपको वहां ठहरकर आमलेट का जायका चखने के लिए जरूर मजबूर कर देगी.
mangalorean.com में प्रकाशित खबर के मुताबिक, मेंगलौर के मन्नागुड्डा इलाके में रामचंद्र भंडारी पिछले 54 वर्षों से आमलेट बना और खिला रहे हैं. उनकी दुकान 'आमलेट भंडारी' के नाम से पूरे मैंगलुरु में मशहूर है. उनके बनाए आमलेट का जायका भी कुछ जुदा है. ऐसा जायका आपको कहीं और नहीं मिलेगा. इसके पीछे लोग रामचंद्र भंडारी की लगन और अपने ग्राहकों के प्रति प्यार को वजह मानते हैं.
लेकिन आमलेट के शौकीनों के लिए यह खबर झटका देने वाली साबित हो सकती है, क्योंकि रामचंद्र भंडारी अब इस काम को बंद करने जा रहे हैं. उन्होंने नए साल अपनी दुकान बंद करने का फैसला लिया है. इसके पीछे वजह बताते हुए भंड़ारी कहते हैं कि अब उम्र हो गई है, लगातार खड़े होकर काम करते रहना उनके बस का नहीं है, इसलिए उन्होंने 1 जनवरी, 2019 से 'आमलेट भंडारी' को बंद करने का फैसला लिया है.
रामचंद्र भंडारी सुबह 8.30 बजे अपनी दुकान खोलते हैं और दोपहर को लंच के लिए कुछ समय के लिए दुकान बंद करते हैं. उसके बाद शाम को 3 बजे लेकर रात 11-12 बजे तक उनकी दुकान पर आमलेट खाने वाले शौकीनों का जमघट लगा रहता है.
कठिन थी डगर
रामचंद्र भंडारी ने ऑटोमोबाइल इंजीनियरिंग में डिप्लोमा लिया था और डिप्लोमा हासिल करने के बाद कई वर्षों तक उन्होंने ऑटोमोबाइल फील्ड में काम किया. उनके पिता की जनरल स्टोर की दुकान थी. उन्हें नौकरी रास नहीं आई नौकरी छोड़ कर पिता के काम को संभाल लिया. लेकिन उनके मन में कुछ नया करने की हलचल थी. इसी के चलते उन्हें आज से लगभग 50 साल पहले एक बहुत बड़ा जोखिम उठाने का फैसला किया और वह था आमलेट की बिक्री का काम शुरू करना.
चूंकि रामचंद्र भंडारी गौड़ सारास्वत ब्राह्मण परिवार से ताल्लुक रखते हैं, और उस समय गौड़ सारास्वत ब्राह्मण परिवारों में अंडा खाना, छूना तो दूर देखना तक पाप माना जाता था. उनके इस फैसले का उनके समुदाय और परिजनों ने ही काफी विरोध किया था. लेकिन वह किसी विरोध के आगे झुके नहीं और उन्होंने आमलेट बनाने का काम निरंतर जारी रखा. और धीरे-धीरे वह पूरे शहर में 'आमलेट भंडारी' के रूप में मशहूर हो गए.
आमलेट का जायका विथ सोडा
रामचंद्र भंडारी में 1964 में आमलेट बनाने का काम शुरू किया था. वह बताते हैं कि आमलेट में ब्रेड के पीस डालने की शुरूआत उन्होंने ही की थी. जिस समय उन्होंने आमलेट बनाना और बेचना शुरू किया था, उस समय आमलेट होटलों में ही परोसा जाता था. उनके आमलेट के दिवानों की लिस्ट में विधायक से लेकर मंत्री, डॉक्टर, इंजीनियर समेत तमाम युवा हैं. भंडारी के आमलेट का जायका उसके साथ मिलने वाला सोडा और ज्यादा बढ़ा देता है. रामचंद्र भंडारी आमलेट के साथ एक ग्लास सोडा पानी भी देते हैं.
कुछ समय पहले तक भंडारी के कामकाज में उनकी पत्नी एस. विजयलक्ष्मी भी उनका हाथ बंटाती थीं, लेकिन बुढ़ापे में जोड़ों के दर्द की समस्या के चलते वह अब दुकान पर नहीं आती हैं. रामचंद्र की इकलौती बेटी पद्मा भंडारी अपना घर बसा कर अपने परिवार में रह रही हैं.
बिजनेस के साथ समाजसेवा
रामचंद्र भंडारी अपने शहर के एक जानेमाने समाजसेवक भी हैं. वह 50 से अधिक बार रक्तदान कर चुके हैं और रिश्तेदार, परिजन या फिर समाज में किसी की मृत्यु होने पर भंडारी अंतिम यात्रा का पूरा इंतजाम अपनी तरफ से ही करते हैं. किसी निर्धन व्यक्ति की मृत्यु होने पर भी उनके शव संस्कार का काम वह खुद ही करते हैं.